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संत महाकवि –रैदास १६ फरवरी ,
रवि दास जयंती
sant maha kavi raidas
संत महाकवि –रैदास जयंती
आज अवतरण दिवस है उस महान संत शिरोमणि और आध्यात्मिक विभूति का जिन्होंने कट्टर ब्राह्मणवाद से प्रभावित जातिवादी व्यवस्था के कुटिल विषम जाल को काटने और मुस्लिम शासकों द्वारा फैलाये विष को निष्फल कर मानव –मानव में दया ,करुणा,प्रेम ,सौहार्द ,क्षमा और समानता लिए प्रेरणा बनकर समतामूलक समाज की प्रतिष्ठा की. ऐसे संत कवि रविदास ने 14 वीं सदी में माघ पूर्णिमा रविवार को काशी की पुनीत भूमि पर जन्म लिया .
स्वाभाव से परोपकारी दयालु और उदार संत रैदास ने अपनासमस्त जीवन विषम सामाजिक व्यवस्था को एक
रस बनाने में व्यतीत किया। ईश्वर भजन और संतों की संगति से उन्हें आनंदानुभूति होती थी। वे मानते थे कि जैसे
जल और लहर बाह्य दृष्टि भिन्न है ,वैसे ही विभिन्न धर्म धर्मान्तरों के विभिन्न ईश्वरीय रूप आंतरिक रूप से एक ही है।
समस्त प्राणियों के ह्रदय में ईश्वर नित्य,निराकार रूप में व्याप्त रहते है। ईश्वर सत्य है ,अवर्चनीय है ,एकरस है –
प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी ,जाकी अंग अंग बास समानी
प्रभुजी ,तुम दीपक हम बाती। जाकी ज्योति जले दिन राति
उन्होंने अपने उपदेशो में कहा है -संसार से अनासक्त रहकर ,अपना सर्वस्व प्रभु चरणों में समर्पित कर ही ईश्वर
प्राप्ति की जा सकती है। उनका विश्वास खंडन-मंडन से अधिक आत्मिक उत्थान पर था।
वे कहते थे प्रभु की बूअक्ति छोड़कर किसी अन्य का आश्रय लेने वाला कभी सुख नहीं पा सकता। उन्होंने अपने पद कहा भी है –
हरि सा हीरा छाड़ि कै ,करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिगे ,सत भाषै रैदास
मनुष्य जन्म से नहीं कर्म एवं उच्च विचारों से महान बनता है –संत महाकवि रैदास पर यह कथन अक्षरश: चरितार्थ होता है ,जो अपने समय में चर्मकार कुल में उत्पन्न होकर अपना पैतृक व्यवसाय करते हुए भी संत शिरोमणि से विभूषित हुए .वे जितने कवि थे ,उतने ही समाज सुधारक भी .उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से सन्देश दिया कि मनुष्य ,मनुष्य है –-नीच अथवा अछूत कह देने मात्र से कोई अंतर नहीं पड़ता .ईश्वर ने जाति नहीं ,सिर्फ मनुष्य बनाया है –
जाति-जाति में जाति है,जो केतन के पातरैदास मनुष न जुड़ सके जब तक जाति न जा ,
जन्म जात मत पूछिए का जात अरु पात
रविदास पूत समप्रभ के काउ नाहि जात कुजात
रैदास कबीर के समकालीन थे .कबीर ने स्वयं रैदास के लिए कहा था –संतन में रविदास संत
उनके काव्य में कबीर की भांति ही आडम्बर के विरुध्द स्वर मुखरित होता है .कबीर की तरह ही मूर्ति पूजा और तीर्थ यात्रा के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति के उपायों का खंडन किया .कबीर की तरह ही अनपढ़ किन्तु आध्यात्मिक चेतना से परिपूर्ण थे .उनका मानना था कि मनुष्य ईश्वरीय अंश है .पवित्र ह्रदय ईश्वर तुल्य है .
उनके काव्य में ज्ञानाश्रयी और प्रेमाश्रयी दोनों का अपूर्व समन्वय देखा जा सकता है। आत्मनिवेदन ,दैन्यभाव और सहजता रैदास के काव्य की प्रमुख विशेषता थी .वे भी हिन्दू –मुस्लिम जैसे सांप्रदायिक विचारों के विरोधी थे .-यह वह समय था जब भारत धर्मान्दमुस्लिम शासकों के भय से भयाक्रांत था .हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य चरम पर था .ऐसे समय में सर्वधर्म सम भाव का उद्घोष करते हुए संत कवि रैदास के कहा –
रैदास कनक और कंगन माहि जिमी अंतर कछु नाहितैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि
हिन्दू तुरक नहीं भेदा ,सभी मह एक रक्त और मासादऊ एकहू दूजा नाहि ,पेख्यो सोई रैदासा
कृस्न,करीम ,राम ,हरि ,राघव ,जब लग एक न पेखावेद ,कतेब ,कुरान ,पुरानन ,सहज एक नहीं देखा
वे कहते थे अहंकार का त्याग करके ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है .आकर में बड़ा होकर भी हाथी शक्कर नहीं उठा सकता ,जबकि मामूली सी चींटी सहजता है शक्कर पा लेती है –
कह रैदास तेरी भक्ति दूरि है ,भाग बड़े सो पावैतजी अभिमान मेटी आपा पर पिपिलक हवे चुनि खावे
माना जाता है कि मीराबाई ने रैदास को अपना गुरु माना था .मीरा के पदों में इसका वर्णन मिलता है –
गुरु रैदास मिले मोहि पूरे ,धुरसे कलम भिड़ीसत गुरु सैन दिए जब आके रलीगुरु मिलिया रविदास जी ,दीन्ही ज्ञान की गुटकीचोट लगी निज नाम हरि की म्हारे हिवडै खटकी
वर्णाश्रय अभिमान तजि ,पद रज बंदहि जासु की
संदेह ग्रंथि खंडन निपन ,बानि विमुल रैदास की
गुरु ग्रन्थ साहिब में रैदास के पदों का भी संकलन है .
संत कवि रैदास का जीवन चरित उनकी शिक्षायें श्रेष्ठ समाज की परिकल्पना को यथार्थ में आदर्श समाज स्थापित कर सकता है।
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