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rajendra prasad -bihar ke gandhi

February 27, 2017
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rajendra prasad -bihar ke gandhi

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भारत के प्रथम राष्ट्रपति

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पुण्य तिथि -२८फरवरी ,१९६३

डॉ.राजेन्द्र प्रसाद
सागर  अपनी उग्रता  के लिए  पहचाना  जाता है  तो  झील अपने  शांत -गंभीर  स्वभाव  के लिए   , सूर्य  अपनी  प्रचण्डता   के  लिए  तो चंद्रमा  अपनी शीतलता के लिए।

किसी का भी गुण  उसकी पहचान बन जाता है ,फिर वह वस्तु  हो या व्यक्ति।  मनुष्य  भी अपने  उग्र या शांत  स्वाभाव  से  पहचाना  जाता  है।  डॉ. राजेन्द्र  प्रसाद   स्वतंत्र  भारत  के  राष्ट्रपति  से अधिक  अपने  शांत  , सौम्य और  गंभीर  और  सादगी  पूर्ण  व्यक्ति  के रूप में  पहचाने  जाते  है।

डॉ. राजेंद्र  प्रसाद  अपनी पारिवारिक   पृष्ठभूमि , शिक्षा  और  प्रतिभा  से चाहते  तो ऐश्वर्य  पूर्ण जीवन व्यतीत  कर सकते थे , किन्तु उन्होंने  अपनी वैयतिक  सुख  का त्याग  कर देशभक्ति  और स्वतंत्रता  आंदोलन का हिस्सा  बनना स्वीकार किया।  सादगी  और सेवा भाव  उनके व्यक्तित्व  की शोभा को और बढ़ा  देते है। 

अपने  इन्ही  चारित्रिक  विशेषताओं  से वे गाँधी  जी  प्रिय बन  सके और अपने समकालीन    प्रतिष्ठित  हस्तियों  से सम्मान  पाया।  किसी के प्रति कोई  राग  द्वेष  नही – मुख  चंद्रमा के सदृश खिला  हुआ  और अंतर मन  निर्मल।  सादगी ऐसी कि  प्रथम दृष्टा  सहज  ही विश्वास  नही कर पाता  की सामान्य  सा दिखने वाला  यह शख्स  देश का राष्ट्रपति हो   सकता है।  मित भाषी  और वाणी   की संयमता  का गुण  सहज ही  उन्हें आदरणीय  बना देता था।
                        १९५० में जब स्वतन्त्र  भारत का अपना संविधान लागू हुआ डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए।  स्वतंत्र  भारत  के प्रथम  राष्ट्रपति  बनने  से पूर्व  उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन  में  भाग  लेकर  भारतीय  राष्ट्रीय   कांग्रेस  के अध्यक्ष , संविधान  निर्माण  में  अहम  भूमिका निभाई।
नील की खेती के विरोध में गांधीजी द्वारा चलाये गए चम्पारन आंदोलन के दौरान राजेंद्र प्रसाद गांधीजी के संपर्क में आये और ऐसे संपर्क में आये कि  वे सदैव के लिए गांधीजी के अनुयायी बन गए ।

गांधीजी के संपर्क में आने के बाद जो सबसे पहला परिवर्तन आया ,वह था अस्पर्श्यता को लेकर। वे पहले स्वयं को कुलीन समझकर निम्न वर्ग के हाथों से छुआ हुआ खाना नहीं खाते  थे किन्तु गांधीजी  द्वारा प्रेरित किये जाने के पश्चात् उन्होंने अपने पारंपरिक सिद्धान्तों के साथ समझौता करना सिख लिया था।
१३अप्रैल १९१९ को अमृतसर( जलियावाला बाग़  कांड) में हुए वीभत्स नर संहार से राजेंद्र प्रसाद इतने क्षुब्ध हुए कि  इसके बाद उन्होंने  बिहार की जनता को अंग्रेजी  सरकार के विरोध में असहयोग आन्दोलन  से जोड़ने के लिए अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर दिया। गांव -गांव घूमकर विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार ,खादी पहनने और चरखा चलाने के लिए  लोगों को जागरूक किया।
राजेन्द्र प्रसाद जी का गांधीजी के प्रति समर्पण और समर्पित अनुयायी होने का प्रमाण तब मिला जब चौरी चौरा की हिंसक घटनाओं से क्रुद्ध होकर गांधीजी ने आन्दोलन  वापस ले लिया था। गांधीजी के इस निर्णय से कई राजनीतिज्ञ नाराज होकर गांधीजी से पृथक हो गए थे ,किन्तु राजेन्द्र  प्रसाद जी ने तब भी गांधीजी का साथ नही छोड़ा।
जब गांधीजी नमक  सत्याग्रह कर रहे थे ,उस समय राजेन्द्र  प्रसादजी गांधीजी के समर्थन में बिहार में नमक सत्यग्रह का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वे छह महीने जेल में रहे।
अक्टूबर १९३४ को बम्बई में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मनोनीत किये गए। इसके बाद १९३९ में एक बार फिर उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्षका दायित्व सौप गया ,जब सुभाष चन्द्र  बोस ने अपने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
देश १५, अगस्त १९४७ को स्वतन्त्र  हुआ किन्तु संविधान सभा का गठन १९४६ में ही कर लिया गया था और संविधान सभा का अध्यक्ष भी डॉ. राजेन्द्र  प्रसाद को ही बनाया गया।
स्वतन्त्रता  प्राप्ति के पश्चात् २६ जनवरी १९५० को स्वतन्त्र  भारत का संविधान लागू करने के साथ ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद को देश का प्रथम राष्ट्रपति चुन लिया गया और १२ वर्षों तक इस पद को गरिमा प्रदान करते रहे।  
वे उर्दू ,फारसी ,हिंदी ,बंगाली ,और गुजराती भाषा के जितने अच्छे जानकर थे ,उतने ही अच्छे लेखक भी थे।
बापू के कदमों में ,इंडिया डिवाइडेड ,सत्याग्रह एट चम्पारण ,,गांधीजी की देन ,भारतीय संस्कृति ,खादी का अर्थशास्त्र आदि पुस्तकों का लेखन उन्हें एक  रूप में स्थापित  करता है। हिंदी में लिखी उनकी आत्म कथा प्रसिद्द पुस्तकों में से एक है।
बिहार में आयी बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा के कठिन समय में प्रसादजी ने  तत्परता और समर्पण भाव से पीड़ितों की सेवा और सहायता कर प्रसादजी ने अपने मानवतावादी होने का प्रमाण तो प्रस्तुत किया ही साथ ही वर्तमान राजनीतिज्ञों के लिए भी प्रेरणा का मार्ग प्रशस्त किया।
असाधारण प्रतिभा ,माधुर्यपूर्ण स्वाभाव ,चारित्रिक पवित्रता ,त्याग और समर्पित सेवा भावना और अपनी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए देश ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न(१९६२) से सम्मानित किया।

जीवन सन्ध्या उन्होंने सदाकत आश्रम में व्यतीत की ,जो पटना के समीप ही स्तिथ है। यही  पर उन्होंने २८ फरवरी ,१९६३  को अपनी अंतिम साँस छोड़कर पञ्च तत्व में विलीन हो गए। 

पृष्ठभूमि –
नाम –राजेंद्र प्रसाद सहाय 
उपनाम –बिहार के गाँधी 
पहचान- स्वतन्त्र भारत के राष्ट्रपति
जन्म स्थान  –जीरादेयू 
जन्म तिथि – ३ दिसम्बर ,१८८४ 
पूण्य तिथि –२८ फरवरी ,१९६३ 
पिता –महादेव सहाय 
पत्नी –राजवंशी
 कार्यकाल -२६जंवरी १९५० से १३ मई ,१९६२ 
शिक्षा –बी.ए. /लॉ /डॉक्टरेट 
पुरस्कार –भारत रत्न

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