lok manya-bal gangadhar tilak
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
जन्म दिवस -२३ जुलाई
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भारतीय विभूतियों के आकाश का वह देदीप्य मान नक्षत्र है जो भारत की आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने का दिशा बोध कराता रहेगा। आज २३ जुलाई को इस महान देश -भक्त का भारत की धरा पर अवतरण हुआ था।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक न सिर्फ एक,कुशल राजनीतिज्ञ बल्कि ,समाज सुधारक ,आध्यात्मिक क्षेत्र के प्रकाण्ड -विद्वान् , विचारक -चिंतक , पुस्तकों के लेखक और उग्र विचारधारा के प्रवर्तक ,जैसे बहुमुखी प्रतिभा से आलोकित व्यक्तिव के धनी थे।
गुलामी की जंज़ीरों में जकड़े हुए भारतवासियों की नसों में उबाल लाने के लिए जिसने कहा था –
अपने हितों के लिए यदि हम स्वयं जागरूक नहीं होंगे तो दूसरा कौन होगा ?हमें इस समय सोना नहीं चाहिए ,हमें अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
इस महान पुरुष के व्यक्तित्व का आकलन उसके कथन से नहीं ,उसके कार्यों से ही किया जा सकता है
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के व्यक्तिव को जानने के लिए उनके जीवन के इतिवृत के पृष्ठों को पलट कर देखना होगा।
कहते है ,पूत के पाँव पालने में ही नज़र आ जाते है। इस तथ्य को बाल तिलक ने बचपन में प्रमाणित कर दिया था
बचपन में एक बार जब अध्यापक ने मूंगफली के छिलकों के लिए कक्षा के सभी बच्चों को सजा देनी चाही तो तिलक ने सजा पाने से स्पष्ट मना कर दिया और कहा कि जो अपराध मैंने किया ही नहीं उसकी मैं सजा नहीं पाउँगा।जो यह प्रमाणित करता है कि तिलक बचपन से ही निर्भीक ,न्याय प्रिय ,और स्पष्टवादी थे।
एक अन्य घटना का यहाँ उल्लेख किया जाना समीचीन होगा जो तिलक के चुनौतियों से खेलने का उदहारण
है -तिलक की गणित विषय में बहुत रूचि थी और अक्सर कठिन -जटिल सवालों को सुलझाने में लगे रहते थे। उनके मित्र ने उनसे पूछा कि तुम सरल जवाबों की बजाय कठिन सवाल को क्यों चुनते हो ?तब तिलक ने उत्तर देते हुए कहा कि कठिन चुनोतियो का सामना करके ही जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है।
तिलक भारतीय-सभ्यता -संस्कृति के प्रबल समर्थक थे। सादा जीवन उच्च विचार रखने वाले तिलक ने कभी पाश्चात्य पहनावा स्वीकार नहीं किया। वे हमेशा सादा रेशमी धोती पहना करते थे। प्रतिदिन व्यायाम करते थे। तिलक की स्पष्ट वादिता के लिए इन्हें मि.ब्लंट और शारीरिक सौष्ठव के कारण मि.डेविल कहा जाता था।
तिलक ने जो योग्यता प्राप्त की ,उस योग्यता से वे कोई भी सरकारी पद प्राप्त कर सकते थे किन्तु राष्ट्र सेवा को सर्वोपरि मानते हुए सरकारी सेवा में जाना स्वीकार नहीं किया। एल एल बी की डिग्री पूरी कर लेने के बाद वे आगरकर ,चिपलूणकर और एम.बी.नामजोशी के साथ राष्ट्र सेवा में जुट गए। तिलक का मानना था कि समाज सुधार से पहले स्वाधीनता की ज्यादा ज़रुरत है। हालाँकि इस विचारधारा के कारण उन्हें विरोध भी सहन पड़ा था। शिक्षा में सुधार के लिए न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की ,जिसका उद्देश्य देशवासियों की अंतः चेतना जाग्रत करना था।आगे चलकर इसे डेकन एजुकेशन सोसाइटी में तब्दील कर दिया गया।
देशवासियों में जन -जागृति लेन के लिए उन्होंने समाचार पत्रों को माध्यम बनाया और केसरी तथा मराठा पत्रों का प्रकाशन किया। जिसमे ब्रिटिश शासकों की नीतियों पर प्रहार किया जाता था।तिलक ने ब्रिटिश सरकार को हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक बतलाया। इस कारण उन्हें हिंदूवादी और मुस्लिम विरोधी होने के आरोपों का सामना करना पड़ा।
तिलक सामाजिक कार्यों में भी बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लेते थे। १८९६ में अकाल और १९०२ में फैले प्लेग के समय तिलक ने जैसी तत्परता दिखलाई उससे उनके सामाजिक हितों का प्रहरी होना प्रमाणित हो जाता है।
तिलक जहाँ नारी शिक्षा और हिंदी को राष्ट्र भाषा बनने के हिमायती थे ,वही बाल-विवाह और छूआ -छूत के विरोधी भी थे।
प्लेग के दौरान अंग्रेज अधिकारी सहायता की आड़ लेकर अमानवीय कृत्य भी कर रहे थे। तिलक ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश अधिकारियों के द्वारा किये जा रहे दुर्व्यहार को प्रमुखता के साथ छापा।
इसी बीच चापेकर बंधुओ ने अंग्रेज इंस्पेक्टर रैंड की हत्या कर दी। तिलक पर चापेकर बंधुओ को उकसाने और राज द्रोह के लेख छापने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया। अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर इस गिफ्तारी पर प्रतिक्रियाए हुई और तिलक के साथ नरमी बरतते हुए उनकी रिहाई की सिफारिशें की गयी। ,इस पर तिलक को रिहा कर दिया गया।
१८९९ में लार्ड कर्जन के शासनकाल में बंगाल का बटवारा कर दिया गया ,इसका देश व्यापी विरोध हुआ।
यही से कांग्रेस भी दो खेमों गरम और नरम में बंट गयी। लाला लाजपत राय ,विपिन चन्द्र पाल और बाल गंगाधर तिलक गरम दल में आ गए। गरम दल बाल पाल लाल की तिकड़ी कहलाती थी।
बंगाल बटवारे पर तिलक के उग्रवादी विचारों के कारण उन पर राज द्रोह का आरोप लगाकर उन्हें देश से , निष्कासित कर मांडले जेल भेज दिया गया। इसी जेल में उन्होंने गीता रहस्य और द आर्कटिक होम ऑफ़ द आर्यन पुस्तकें लिखी। १९१४ को तिलक को मांडले जेल से रिहा कर दिया गया।
भारत लौट कर वे स्वराज प्राप्ति के लिए चलाये जा रहे श्री मती एनी बेसेंट के होम रूल आंदोलन से जुड़ गए। जगह -जगह जाकर सभाएं आयोजित करते ,जन-समुदाय को सम्बोधित करते।
स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है ,मैं इसे लेकर रहूंगा ,इस संकल्प को पूरा करने में लगे इस महान देश भक्त को १ अगस्त १९२० को मृत्यु ने अपने अंक में भर लिया।
उस महान देश भक्त का तिलक आज भी भारत माता के ललाट पर दमक रहा है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जीवन का संक्षिप्त परिचय –
बचपन का नाम -केशव
प्रचलित नाम -बाल गंगाधर तिलक
सम्मानित उपाधि -लोक मान्य /हिन्दू राष्ट्र वाद का जनक
जन्म -२३ जुलाई ,१८५६
जन्म स्थान चिखली गाँव /जिला -रत्नागिरी (महाराष्ट्र )
पिता -गंगाधर रामचन्द्र तिलक
माता -पार्वती बाई
पत्नी -तापी (परिवर्तित नाम -सत्य भामा )
संतान -दो पुत्र ,तीन पुत्रियां
शिक्षा -बीए आनर्स (१८७६ )
एल एल बी (१८७९ )
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