international organ donation day -in hindi

international organ donation day
१३ अगस्त -अंग दान दिवस पर विशेष

मैंने संकल्प किया है अंगदान करने का …
क्या आप भी करेंगे ?
मैंने संकल्प किया है अंगदान करने का …
क्या आप भी करेंगे ?
कोई भी
सब कुछ तो नहीं कर सकता किन्तु हर कोई कुछ जरूर कर सकता है।
अंग दान /देह- दान कर हम मरकर भी हम अपने मानव जीवन को सार्थक कर सकते है। हमारा मृत शरीर भी किसी को नई ज़िन्दगी दे सकता है।
सभी धर्मों में दान की बड़ी महत्ता बतलाई गयी है। दान भी कई प्रकार का होता है। जितने भी प्रकार के दान है उनमे एक दान है -अंग दान। महर्षि दधीचि के अस्थि दान से से सभी भली भांति परिचित है। इस आध्यात्मिक सत्य से भी सभी परिचित है कि जिस किसी ने भी जन्म लिया ,उसकी मृत्यु अवश्यमभावी है।माटी के बने इस शरीर को एक दिन माटी में ही मिल जाना है। मनुष्य खाली हाथ आता और खाली हाथ ही जाता है। ना यह शरीर साथ जाता है और ना शरीर का कोई अंग साथ जायेगा। आप जो सम्पति छोड़कर जायगे उसे तो आपके परिजन अपने पास रख लेंगे किन्तु आपके मृत शरीर को कोई रखने को तैयार नहीं होंगा। बेकार हो गया है यह ,सडांध मारने लगेगा कुछ देर बाद ,जला आओ इसे ,दफना दो इसे।
जला दिया ,दफना दिया ,किसको क्या मिला ? कुछ नहीं।
मनुष्य शरीर मरने के बाद भी व्यर्थ नहीं होता। किसी को एक नई ज़िन्दगी दे सकता है। किसी के अँधेरे जीवन में उजाला भर सकता है।
कोई भी सब
कुछ तो नहीं कर सकता किन्तु हर कोई कुछ जरूर कर सकता है।अंग दान /देह- दान कर हम मरकर भी हम अपने मानव जीवन को सार्थक कर सकते है। हमारा मृत शरीर भी किसी को नई ज़िन्दगी दे सकता है।
नेत्र – दान कर मृत्यु के बाद भी हम अपनी आँखों से दुनिया को देख सकते है।
मृत्यु के बाद भी हमारा दिल धड़कता रहेगा ,अपने सीने में न सही किसी और के सीने में सही
मृत्यु के बाद भी हमारी अस्थियां ,लिवर ,गुर्दे ,पैन क्रियास ,फेफड़े ,त्वचा ,अस्थिबंध ,शिराएँ प्रत्यारोपित होकर किसी बच्चे को उसका पिता ,किसी माँ-बाप को उसका बेटा ,किसी बहिन को उसका भाई ,किसी स्त्री को उसका पति लौटा सकते है।
आज चिकित्सा विज्ञानं इतना उन्नत हो चुका है कि मृत शरीर में भी उसने उपयोगिता खोज ली है। मृत्योपरांत किया गया अंग/देह-दान जहाँ किसी को नव-जीवन प्रदान कर सकता है ,वही मेडिकल कॉलेज के छात्रों को शरीर विज्ञानं के बारे में और अधिक जानने में उपयोगी हो सकता है क्योकि शरीर विज्ञानं के अध्ययन के लिये मृत शरीर अर्थात केडेवर की ज़रुरत पड़ती है। मृत शरीर अर्थात केडेवर के बिना शरीर विज्ञानं का अध्ययन संभव नहीं। चार छात्रों के लिए एक मृत शरीर अपेक्षित होता है किन्तु लोगों में स्वेच्छा से देह-दान की प्रवृति न होने के कारण पर्याप्त केडेवर नहीं मिल पाते ,जिसके कारण लावारिश शवों के केडेवर से काम चलना पड़ता है।
लोगों में अंग/देह-दान के प्रति जागरूकता नहीं होने के कारण दो लाख गुर्दा रोगियों में से मात्र चार -पांच हज़ार रोगियों का ही गुर्दा प्रत्यारोपण हो पाता है। चार-पांच हज़ार ह्रदय रोगियों में से सौ -डेढ़ सौ ह्रदय रोगियों का ही ह्रदय प्रत्यारोपण हो पाता है। इसी तरह एक लाख नेत्र रोगियोंके लिये मात्र चार-पांच हज़ार कार्निया उपलब्ध हो पाते है।
भारत में अंग/देह-दान के प्रति जागरूकता नहीं होने के कारण अंग/देह-दान करने वालों की संख्या नगण्य ही कही जा सकती है। इसका प्रमुख कारण है -धार्मिक -अंध विश्वास और कानूनी जटिलता।
देह-दान के प्रति जागरूकता के अभाव में विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में देह-दान का प्रतिशत बहुत कम है। देहदान को प्रोत्साहन देनेवाली एक सामाजिक संस्था के आंकड़ों के अनुसार प्रति दस लाख पर मात्र ०.१६ व्यक्ति अंग/देहदान करते है। इस संख्या में देह-दान का इतना कम होना भारत जैसे देश के लिए एक विचारणीय प्रश्न है ,जहा दानवीरता ,करुणा, दया ,उदारता की समृद्ध परंपरा रही है। एक से बढ़कर एक दान-वीर भारत की धरती पर पैदा हुए है।
सर्वेक्षण के अनुसार अकेले भारत में ५ लाख से ज्यादा रोगियों की मौत मुख्य क्रियाशील अंगों के कार्य करना बंद हो जाने से होती है। अंग दान दाताओं के अभाव में ऐसे रोगी हर दिन -हर घडी भयावह मौत को अपनी ओर बढ़ता देखते रहते है। लेकिन हम संवेदनशील मनुष्यों की थोड़ी सी अच्छी सोच उन्हें फिर से एक नई ज़िन्दगी जीने की उम्मीद दे सकती है। निराशा के गहन अंधकार में आशा की किरण देख सकते है।
आओ ,अंगदान दिवस पर संकल्प ले -जीते जी तो कुछ अच्छा नहीं कर पाए ,मृत्यु के बाद तो कुछ अच्छा किया जा सकता है- अंग दान का संकल्प लेकर। अंगदान से प्राप्त अंग प्रत्यारोपित रोगी के लिए अंगदान दाता ईश्वर के बाद ,दूसरा ईश्वर जितना ही पूजनीय हो जायेगा।
यद्यपि भारत सरकार ने इस दिशा में तत्परता दिखलाते हुए १९९४ में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (H.T.O.)पारित और २०११ में पुनः संशोधन भी किया।
चिकित्सा विज्ञानं के क्षेत्र में जो विकास हुआ है ,उसका अधिकतम लाभ ज़रूरतमंदों तक पहुँचाने के लिए के आवश्यक है कि अंग/देह दान के प्रति जागरूकता लेन के लिए अभियान चलाये जाये ,सरकारी स्तर पर भी और सामाजिक संस्थाओं के द्वारा भी। स्वयं नागरिकों को भी धार्मिक अंधविश्वासों के घेरे से बाहर निकल कर वैज्ञानिक दृष्टि कोण विकसित करना होगा।
किसी भी आयु ,जाति धर्म या संप्रदाय का व्यक्ति अंगदान कर सकता है। स्वाभाविक मृत्यु की स्थिति में कार्निया ,ह्रदय वाल्व ,अस्थि जैसे ऊतकों का उपयोग किया जाता है, किन्तु मस्तिष्क मृत्यु की स्थिति
में यकृत ,गुर्दे , आँत, फेफड़े और अग्नाशय का ही उपयोग हो सकता है। ह्रदय, अग्नाशय ,यकृत ,गुर्दे और फेफड़े जैसे अंगों का प्रत्यारोपण उन रोगियों के लिए किया जाता है ,जिन रोगिओं के इन अंगों ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया हो ,जिसके बिना ज़िन्दगी की संभावना शेष नहीं रह जाती , ऐसे रोगियों को अंग दानदाताओं द्वारा दिए गए अंगदान से नव जीवन प्राप्त हो सकता है। लेकिन कैन्सर ,एच आई वी ,मधुमेह और गुर्दे या ह्रदय जैसे गंभीर रोगों से ग्रसित मनुष्य मनुष्य का अंगदान चिकित्सा विज्ञानं के अनुसार उपयोगी नहीं होता।
इस post को अधिक से अधिक परिचितों /मित्रों। स्वजनों में share करें ताकि लोगों में अंगदान को लेकर एक चेतना जाग्रत हो ,यह सन्देश जितना गुणात्मक रूप से फैलेगा ,उतना ही इस दिन को मनाने की सार्थकता होगी। लोगों में अंगदान को लेकर जो भ्रान्ति है ,अन्धविश्वास है ,वह दूर होगा।
यह लेख स्वयं को तो प्रेरित करेगा ही साथ ही अन्य के ह्रदय में भी पुनीत भावना उत्पन्न करेगा -लाखों -हज़ारों को नहीं तो कम से कम एक ह्रदय में ही सही और एक ह्रदय में यह भाव जगा सकें तो मेरा लेख और आपका share करना सार्थक हो जायेगा।
No Comments