hindi poems

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अपनों से नहीं ,
गैरों से मोह्हबत करो
मरेंगे जब
लाश को कफ़न तो
ये ही मय्यसर कराएंगे
ज़नाज़े में जाएंगे
कब्र में दफनायेंगे
अपनों के पास कहाँ फुर्सत होगी
बुरे वक़्त में गैर ही काम आएंगे

निकलने लगे आँख से आँसू
पलकों में छिपा लेना
उठे जब दर्द सीने में तो
आह होठों में दबा लेना
जब वो नज़र आ जाये मुस्करा देना
गुज़र जाए जब वो
उठकर नज़र आसमान में
आँसूं बहा देना
दर्द क्या है सीने में
खुदा को बता देना
तपती दोपहर में मेरा ही
गम छाया सिर पर
बनकर छाया
मेरा ही गम
छाले पड़े पैरों की चप्पल बन गए
सूखे हलक में जब चुभने लगे कांटे
तो आंसू होठों को तर कर गए
गम मेरे साथ -साथ बहुत दूर तक गए
थका ना पाए मुझको , बेचारे खुद थक गए
साथ न चला कोई मेरे
खुद को खुद का सहारा बना लिया
जीने की कोशिश में तो हम ता उम्र लगे रहे
थक गयी ज़िन्दगी ,बस हम ही चलते गए
लाख कोशिश की आँधियों ने रोकने की मुझे
मगर दम पर अपने मंज़िल अपनी पा ही गए
हर आहट से ऐसा लगता था
दस्तक हुई दरवाजे पर
दरवाजा खोला
गम सामने खड़ा मुस्करा रहा था
? मैंने पूछा -क्यों भाई ,कैसे आये
गम बोला -मैं कहाँ आया
तुमने ही तो मुझे बुलाया
अब समझ पाया था मैं
आदमी जैसा सोचता है
वैसा ही पाता है
वैसा ही हो जाता है
और अच्छा वक़्त
नज़दीक से गुज़र जाता है
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