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geeta adhyay saar-9/b in hindi

July 4, 2016
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geeta adhyay saar-9/b in hindi-अध्याय नौ (दूसरा भाग )

श्री हरि
अध्याय नौ(दूसरा भाग )

 

Hindi Hindustaniइस अध्याय में कुल ३४ श्लोक है 

इस अध्याय को राज विद्या राज गुह्य योग कहा गया है 

आठवें अध्याय में भगवान् ने अर्जुन को  ब्रह्म ,अध्यात्म ,कर्म ,अधिभूत ,अधिदैव ,अधियज्ञ के बारे में विस्तार से समझाया  था 

इस नवें अध्याय में भगवान ने प्रभाव सहित विज्ञानं महासर्ग -महा प्रलय , दैवी प्रकति का आश्रय लानेवाले भक्तों ,कार्य कारण रूप से भगवत्स्वरूप विभूतियों ,सकाम-निष्काम उपासना और पदार्थों व क्रियाओं को भगवद अर्पण का फल बताकर भक्ति के अधिकारियों और भक्ति का वर्णन करते हुए भगवान् का तिरस्कार करने वाले एवं आसुरी-राक्षसी व मोहिनी प्रकृति का आश्रय लेनेवालों का वर्णन किया है 

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भगवान  श्री कृष्ण  कहते  है  कि   वेदो  में  वर्णित  सकाम  कर्म  करने वाले  साधक  अनेक  प्रकार  से  मुझे  पूजकर इंद्रलोक  को  प्राप्त  कर  स्वर्ग  का  सुख  भोगते   है ,  और  संचित   पुण्य  कर्मो  का फल  भोगकर  पुनः  मृत्यु  लोक  मे  आते  है , अर्थात   वेदो  मे  बताए  हुए  सकाम  कर्म  करने  वाले  मनुष्य  आवागमन को  प्राप्त होते  है।  किन्तु  जो  भक्तजन  अनन्य  भाव  से  चिंतन  करते  हुए  मेरी  उपासना  करते  है, उन  नित्ययुक्त  भक्तो  का योग क्षेम   मैं  स्वयं  वहन करता  हू। 
 भगवान  यह  भी कहते  है  कि  जो  भक्त  श्रद्धापूरवक अन्य  देवी  देवताओ  की  पूजा करते   एक प्रकार से  वे  मेरी ही पूजा   करते है क्योकि सब यज्ञों का भोक्ता और स्वामी परब्रह्म परमात्मा मैं  ही हूँ। ऐसे मनुष्य जो मेरे अधियज्ञ स्वरूपको नहीं जानते ,,उनका ही आवागमन होता है ,किन्तु मुझ परब्रह्म को पूजने वाले पुनर्जन्म से मुक्त परमधाम अथार्त मुझे ही प्राप्त होते है। 
जो मनुष्य प्रेंम भक्ति से फल ,फूलपत्र ,जल ,या कोई भी पूजन सामग्री मुझे अर्पण करता है मैं  उसके उस प्रेम उपहार को स्वीकार भी करता हूँ और उसका भोग भी करता हूँ। मैं सभी  प्राणियों के प्रति समभाव रखता हूँ। मेरा कोई अप्रिय नहीं। जो श्रद्धा और प्रेम से मेरी उपासना करते है ,वे मेरे समीप रहते है और मैं  उनके समीप रहता हूँ।
 यदि कोई बड़े से बड़ा दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरी उपासना करता है ,तो उसे भी साधु ही मनना चाहिए। 
यह निश्चित सत्य है कि  मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता।  अतिरिक्त स्त्री ,वैश्य ,क्षूद्र ,पापी आदि जो कोई मेरा शरणागत हो जाता है ,वह परमधाम को प्राप्य होता है। 
भगवान् अर्जुन को यही सलाह देते है कि  तुम भी मुझ में मन लगाओ ,मेरे भक्त बनो ,पूजा करो ,प्रणाम करो। मुझे अपना परम लक्ष्य मानकर अपने आप को मुझसे युक्त करके तुम मुझे ही प्राप्त होओगे। 

दसवाँ अध्याय  अगले अंक में  ….
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जय श्री कृष्णा  ….... राधे –राधे 

 

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