Hindi Hindustani
Important Days

swami vivekanand-puny tithi,4july

January 11, 2017
Spread the love

swami vivekanand-puny tithi,4july

Hindi Hindustani

swami vivekanand-puny tithi,4july

puny tithi,4july

 ४ जुलाई 

 


स्वामी विवेकान्दजी की पुण्य तिथि पर विशेष 

Hindi Hindustani










४ जुलाई ,१९०२ 
४ जुलाई स्मरण करता है ,उस युवा सन्यासी का जिसने प्रमाणित किया कि महत्वपूर्ण यह नहीं कि जीवन कितना लम्बा जिया गया ,महत्वपूर्ण यह है कि जीवन कितना सार्थक जिया गया। निरर्थक लम्बे जीवन से कहीं ज्यादा अच्छा है छोटा किन्तु सार्थक जीवन। 
पुण्य भूमि भारत की धरा पर अवतरित होकर ३९ वर्ष की अल्पायु में ही धर्म की  सटीक व्याख्या कर उन तथाकथित तार्किक प्रबुध्द वर्ग की बुद्धि मलिनता का प्रक्षालन कर सत्य का साक्षात्कार कराया।  उनका तेजोमय मुख मंडल आज भी देदीप्यमान नक्षत्र की भांति हृदयाकाश में प्रदीप्त है। दैहिक रूप से न सही ,उनकी अमर वाणी आज भी भारत के युवाओ का मार्ग प्रशस्त कर रही है। आइये ,आज उस पुण्यात्मा की पुण्य तिथि पर उनके प्रेरक कथन का स्मरण करें –

४ जुलाई ,इसी दिन निर्वाण  हुआ था तेजस्वी ओजस्वी ,वैचारिक क्रांति के अग्रदूत और राम कृष्ण परम हंस के उत्तराधिकारी राष्ट्र युवा संत स्वामी विवेकानन्द का ,जिनकी प्रखर वाणी ने १८९३ में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मलेन में प्रबुद्ध श्रोताओं  को अपने उद्बोधन से अभिभूत कर विश्व समुदाय का ध्यान भारत की आकर्षित किया ।

Hindi Hindustaniस्वामी विवेकानंद ,जिन्होंने भारत के गौरव को  भौगोलिक  सीमाओं  के पार  पहुँचाकर   आध्यात्मिक  श्रेष्ठता  के पद  पर  आसीन  करने  में  अहम भूमिका निभाई ,   स्वामी विवेकानंद ,जो निर्धन और दरिद्रों  के सेवा करने के लिए ही भारत की धरती पर अवतरित हुए थे ,जिन्होंने   मानव सेवा को ही परमात्मा  की सेवा माना और इसे ही अपने जीवन का ध्येय बनाया। जिसने इस अवधारणा को स्थापित  किया कि समस्त  प्राणी  परमात्व  का  ही अंश  है। जिसने सपनो  का  एक ऐसा  संसार बनाना चाहा  जिसमे  न धर्म  का भेद  हो , न जाति  का। स्वामीजी ने  आध्यात्म और भौतिकता  के मध्य समन्वयक  बनकर समता के सिद्धान्त का  प्रति  पादन किया ।इस  युवा  संत ने  हिन्दू  धर्म  को  विश्व को  सहिष्णुता  तथा  सार्वभौम  स्वीकृत  दोनों  की  शिक्षा  देने वाला प्रमाणित किया ।  इसी युवा राष्ट्र संत ने  हिन्दू धर्म को विदेशी धरती पर खड़े होकर स्वयं को भारत भूमि पर जन्म लेने को अपना सौभाग्य और गर्वित  होने का उद्घोष किया था। भारत की स्तुति में कहा था कि  भारत विश्व की वह थाती है जो विश्व को वह दे सकती है ,जिसकी विश्व को सबसे अधिक आवश्यकता है। पश्चिम के पास यदि भौतिकता है ,तो पूरब  के पास आध्यात्मिकता काअकूत भण्डार।   उन्होंने   भारत  भूमि को  विभिन्न  धर्म  विजातीय  शरणाथियों की  शरणागत स्थली  बतलाया।  धर्म  और दर्शन की पुण्य  भूमि  से उपमित   किया।  उन्होंने  भारत  को मानव  जीवन  के सर्वोच्च आदर्श  और  मुक्ति  का द्धार  बतलाया।  उन्होंने  पुरज़ोर  शब्दों  में  उद्घोष  किया था-  अध्यात्म  ज्ञान  और भारतीय  दर्शन  के अभाव   में  समस्त  विश्व  अनाथ  हो  जाएगा। भारत  के संदर्भ  में   उनका  यह कथन कि भारत  धरा पर  मानवता   का द्वारक  है,   अपनी जन्म भूमि के बारे उद्भासित विचार उन्हें राष्ट्र संत होने के पद पर आसीन करता है।
Hindi Hindustani  स्वामी  विवेकानंद  ने कहा  था कि  मुझे  ऐसे  बहुत  से  युवा  परिवाजक चाहिए  जो भारत को गांव -गांव  तक  पहुँचकर  दीन  दुखियों  की  सेवा  में  स्वयं  को समर्पित  कर सके।
उन्होंने  उस धर्म  को निरर्थक  घोषित  किया जो न  मानव  सेवा  कर सके और न उद्धार
पीड़ित  मानव  के प्रति  उनकी करुणा  इस  कथन  में  चीत्कार  करती  हुई प्रकट होती है।

मंदिरो में देवी देवताओ  की प्रतिमाओ  को विस्थापित  कर उस  स्थान  को दरिद्र  , क्षुधा पीड़ितों को  स्थापित  कर दिया  जाए.

शिक्षा  के सम्बन्ध  में  उन्होंने कहा था – शिक्षा  का उदेश्य  पुस्तकीय  ज्ञान  पूर्वक  उनके  मस्तिष्क  में  भरना  नही , अपितु  सर्वागीण  विकास  करना चाहिए।  शिक्षा  ऐसी हो जो बालक  को आत्म निर्भर  बना सके।स्वामीजी चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जो चरित्र का निर्माण कर सकें ,मनोबल को  दृढ बना सकें ,बुद्धि का विकास कर सकें और स्वावलंबी बना सकें। लौकिक व्   पारलौकिक शिक्षा आचरण और संस्कारों द्वारा प्रदत  हो ना कि  पुस्तक द्वारा। शिक्षा का उद्देश्य सिंह जैसा सहासी बनाने और  भविष्य का निर्माण करने वाला होना चाहिए।

स्वामीजी के स्पंदन शक्ति युक्त विचार शून्य स्नायुओ में संजीवनी शक्ति भर देती है। स्वामी जी का यह कथन कितना सटीक है –   अगर  आपके  सामने  कोई समस्या  नही  है ,परेशानी नही  है , तो निश्चित  मानिये कि  आप   गलत  मार्ग  पर  चल रहे है ,क्योकि  अच्छे  मार्ग  पर  चलने  का लक्षण  ही समस्या  और परेशानी है।  समस्या  और परेशानियों  अच्छे कार्य  में  ही आती है , बुरे  कार्यो में  नही।
 मनुष्य का  बाह्य  स्वरुप  उसके  आंतरिक विचारों का ही प्रतिबिम्ब होता है और  आंतरिक  विचार  ही कार्य रूप में परिणत होता है।  मनुष्य  जैसा  सोचता  है ,विचार करता है ,वैसा ही हो जाता है, स्वयं को असमर्थ -असक्षम मानने  पर असमर्थ -असक्षम और समर्थ -सक्षम मानने  पर समर्थ -सक्षम हो सकता है। स्वामी जी ने स्वयं को कमजोर मानने को पाप माना है।

Hindi Hindustani
राष्ट्र को आवश्यकता है -फौलादीमांसपेशियों और व्रज के समान  स्नायुओ की  … जितना विलाप करना था ,कर लिया। 
अब विलाप करना  छोड़कर मनुष्य बनो। .आत्म -निर्भर मनुष्य 

स्वामीजी दुखों  का कारण  मानते  हैं -मनुष्य के भीतर के भय और उन कामनाओं को जो पूर्ण नहीं हो सकी। भय दुर्बलता का चिह्न है। भविष्य की आशंका और साहस की कमी से ही मनुष्य असफल होता है।  जीवन में सफल होने के लिए स्वामी जी कहते थे कि  जीवन का एक ही लक्ष्य बना लो ,उस लक्ष्य का पाना ही जीवन का उद्देश्य बन जाये ,अन्य सभी लक्ष्य को भूल जाओ। जन्म ,मृत्यु ,बुढ़ापा और रोग ये सब सार्वभौमिक सत्य है। इन सब से भयभीत नहीं होना चाहिए।  आत्मा के अतिरिक्त अन्य कोई गुरु नहीं। जितना मनुष्य की आत्मा मनुष्य को सीखा  सकती है ,उतना और कोई नहीं।
 स्वस्थ विचारों से ही  स्वस्थ शरीर का निर्माण होता है।  अपने आप को शक्तिशाली और अपने आप को विश्वास दिलाओ कि  मुझे कोई भय नहीं। सही मायने में जीना उसी का सार्थक है जो दूसरों के लिए जीता  है। ,,अपने लिए जीना तो पशु प्रवृति है।
जीवन का उद्देश्य बतलाते हुए स्वामीजी ने कहा था – खड़े हो जाओ ,शक्तिशाली बनो ,सारा उत्तरदायित्व अपने कंधे पर डाल लो  अपने भाग्य के निर्माता स्वयं को मानो। सफलता का आनंद उठाने के लिए कठिनाइयों का होना अनिवार्य है। जीवन की राह भाग्य प्रदत्त नहीं होती ,जीवन राह स्वयं बनानी पड़ती है। लोग क्या कहेगे इस बात की चिंता मत करो। बस ,अपने कर्तव्य पथ पर बढते  रहो। चाहे जो हो जाये अपनी मर्यादा का कभी उल्लघन मत करों। समुंद्र अपनी मर्यादा लाँघ  देता है ,लेकिन तुम मत लाँघना। ,समुंद्र  से भी ज्यादा विशाल बन जाओगे।
मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान की विजय है। ,सतत ,निरंतर सात्विक विचारों में डूबे रहना ही कलुषित विचारों के दमन का उपाय है। महान कार्यो का परिणाम और प्रभाव तत्काल प्राप्त होता ,धैर्य की आवश्यकता होती  है ,पवित्र भावना  से कर्तव्य करते रहो। कर्म की पवित्रता सभी विघ्न -बाधाओं को रौद डालेगी ,इतना निश्चित मानो।  यह संसार एक व्यायाम शाला है ,जहाँ मनुष्य स्वयं को शक्तिशाली बना सकता है 

No Comments

    Leave a Reply

    error: Content is protected !!
    error: Alert: Content is protected !!