shahid bhagat singh
shahid bhagat singh
शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह-shahid bhagat singh
शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह
शमा को जलाते सभी ने देखा है
मगर किसने देखा है
शमा के बीच धांगे का जिगर जलता है
यह बात बहुत कुछ देश के क्रांतिकारियों पर अक्षरशः चरितार्थ होती है।विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि देश को आज़ादी काँग्रेसी नेताओं के संघर्ष ,त्याग और बलिदान से प्राप्त हुई थी। स्कूली विद्यार्थी भी यही समझते है , जानते है। काँग्रेसी नेताओं के जीवन पर आधारित लंबे चौड़े पाठ पाठ्यक्रम में शामिल किये गए। उनके प्रयासों को महिमा मण्डित करके प्रस्तुत किया गया। उन्हें स्वतन्त्रता आंदोलन के नायक के रूप में स्थापित किया गया किन्तु विद्यार्थियों को यह ना पढ़ाया गया और ना बताया गया कि सच्चे क्रांतिकारी के लक्षण क्या होते है ,सच्चे क्रांतिकारी कैसे होते है ,,सच्चे क्रांतिकारी कौन थे ?
स्वतन्त्रता की जो ईमारत आज की पीढ़ी देख रही है ,उस पर लगे कंगूरे को श्रद्धा और सम्मान के साथ देख रही है किन्तु इस पीढ़ी को शायद यह मालूम नहीं इसकी नींव में जो ईंटें दबी हुई है ,जिस पर स्वतन्त्रता की ईमारत खड़ी है ,वे ईंटें कौन थी ?
कंगूरों की जन्मतिथि -पुण्यतिथि कब आती है ,सबको पता है ,जिसे पता नहीं ,उन्हें बता दिया जाता है किन्तु ईंटें कब दुनिया में आई ,कब चली गई पता नहीं चलता।
कंगूरों को इतिहास के पन्नों में बड़े-बड़े बंगले दिए गए और ईंटों को झुग्गी -झोपड़ी में जगह दे दी गयी। जिन पर कभी किसी पारखी की नज़र पड़ जाती है, तो वे लोग अनजान लोगों को बता देते है कि भाई ,इसने भी स्वतन्त्रता के हवन – कुंड में एक आहुति दी थी।
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे उन क्रांतिकारियों की जिन्होंने भीड़ में खड़े होकर भाषण नहीं बल्कि अपने प्राण दिए।
२८ सितम्बर को शहीदे आज़म भगत सिंह का जन्म दिन था लेकिन अफसोस हममे से अधिकांश को यह पता नहीं केलेंडर में २८ सितम्बर क्यों महत्वपूर्ण है ?
इतिहास और केलेंडर के पन्नों में २८ सितम्बर इस लिए महत्त्व पूर्ण है क्योकि आज के दिन ही भारत माता वह सपूत जन्मा था, जिसने अपनी जवानी अपनी भारत माता को गुलामी की जंज़ीरों से मुक्त करने के लिए हँसते -हँसते अपने प्राण न्योछावर कर दी ।
भगत सिंह जानते थे कि स्वतन्त्रता हमारा अधिकार है और अधिकार हाथ फैला कर नहीं मांगे जाते बल्कि छीने जाते है। माँगता वह है जो कमजोर होता है।
भगत सिंह ने जान लिया था कि स्वतन्त्रता की देवी सुंदर आदर्श और सिद्धान्तों के फूल चढ़ाने से प्रसन्न नहीं होती ,रक्त के तरल द्रव चढ़ाने से प्रसन्न होती है।
भगत सिह ने प्रमाणित कर दिया कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आपने कितनी लंबी ज़िन्दगी जी है ,महत्वपूर्ण यह है कि ज़िंदगी कितनी सार्थक जी है।
भगत सिंह ने ज़िन्दगी से नहीं , मौत से मुहब्बत की। मौत के ख़ौफ़ से भागे नहीं बल्कि आगे चलकर मौत को गले लगाया। कितना जांबाज़ रहा होगा भारत माता का यह सपूत।जितनी आग उनके सीने में थी ,उतनी आग उनके विचारों में भी थी।
उसे यह फ़िक्र है हरदम ,
नया तर्ज़े -ज़फ़ा क्या है
हमें यह शौक
देखे सितम की इन्तहा क्या है
दहर से क्यों खफा रहे ,
चर्ख का क्यों गिला करें
सारा जहाँ अदू सही ,
आओ मुकाबला करें
कुछ दम का मेहमान हूँ ,
ए -अहले महफ़िल
चिरागे सहर हूँ ,
बुझना चाहता हूँ
मेरी हवाओं में रहेगी ,
ख्यालों की बिजली
यह मुश्त -ए -खाक होगी है फानी ,
रहे,रहे ना रहे
उनकी जाबांजी का अनुमान उनकर विचारों से लगाया जा सकता है
ज़िन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती है … दूसरों के कन्धों पर तो ज़नाज़े उठाये जाते है
इंसान को मारा जा सकता है लेकिन उसके विचारों को नहीं
राख का एक एक जर्रा मेरी गर्मी से गतिमान है ,चलायमान है ,मैं वो दीवाना हूँ जो क़ैद में होकर भी आज़ाद है
स्वतन्त्रता सभी का एक कभी ना ख़त्म होने वाला अधिकार है और श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है
देश भक्तों को लोग अक्सर पागल कहते है और प्रेमी ,पागल तथा कवि एक ही चीज के बने होते है
क्रांति की तलवार विचारों की धार से तेज़ होती है
निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रन्तिकारी सोच के दो अहम् लक्षण है
मेरे सीने में जो ज़ख्म है
वो सब फूलों के गुच्छे है
हमें तो पागल ही रहने दो
हम पागल ही अच्छे है
मेरा एक धर्म है देश की सेवा
यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत ज़ोरदार होना होगा ,असेम्बली में बम फेंकने का हमारा मक़सद भी यही था
बुराई इस लिए नहीं बढती कि बुरे लोग बढ़ गए है ,बल्कि इसलिए बढती है कि बुराई को सहन करनेवाले लोग बढ़ गए है
मैं महत्वकांशा ,आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हूँ किन्तु ज़रुरत पड़ने ये सब त्याग भी सकता हूँ और वही सच्चा बलिदान है
भगत सिंह ने जैसा कहा वैसा ही कर दिखाया
इंकलाब ज़िन्दाबाद
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