Hindi Hindustani
hindu festival

parashuram-vishnu anshavatar

April 28, 2017
Spread the love

parashuram-vishnu anshavatar

Hindi Hindustani

परशुराम जयन्ती की हार्दिक शुभकामना

भगवान परशुराम


 

Hindi Hindustani

 

 

 

 

परशुराम जयन्ती पर विशेष 

अश्वथामा बलि व्यासो हनूमांश्च विभीषण

 
कृप:परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन
सप्तैतान  संस्मरेंनिंत्यम मार्कण्डेयमथाष्टमम
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित

 

इन अष्ट चिरंजीवियों में एक भगवान परशुराम भी है 
महर्षि जमदग्नि  द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न इंद्र के वरदान स्वरुप जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से चार पुत्र (रुक्मवान ,सुखेण,वसु,विश्वानस ) के पश्चात् पांचवी संतान के रूप में  वैशाख शुक्ल अक्षय  तृतीया को  भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। नाम करण के समय नाम रखा गया था -राम। परशु जो कि एक शस्त्र है ,उन्हें भगवान शिव से प्राप्त हुआ था .इस कारण इनका नाम राम से –परशुराम हो गया.  भारतीय पञ्चांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाई जाती है। 


भगवान परशुराम जो समन्वय है –शास्त्र और शस्त्र का .. रक्षा और संहार का … विष्णु और शिव का ।  भगवान परशु राम ने क्षत्रियों के बढ़ते अत्याचार और धर्म की रक्षार्थ २१ बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया ,जो आततायी और धर्मविमुख हुए क्षत्रियों से धर्म की रक्षा का प्रतीक है। भगवान परशुराम ने धर्म रक्षा के लिए ही परसा धारण किया था।  
.

पौराणिक मान्यता के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के २४ अवतारों में में से १९ वे तथा दशावतार में छठा  अवतार माने जाते है .भगवान परशु राम का उल्लेख रामायण ,महाभारत ,भगवद पुराण और कल्कि पुराण में वर्णित है .जमदग्नि के पांच पुत्र थे 

.
ब्राहमण होते हुए भी क्षत्रिय कर्म क्यों किया भगवान परशुराम ने ?

पौराणिक कथानुसार कन्नोज के राजा गाधि की सत्यवती नाम की एक पुत्री थी .जिसका विवाह भृगु पुत्र 

ऋचीक  के साथ हुआ .विवाहोपरांत एक बार भृगु ऋषि ने पुत्रवधू सत्यवती से वर मांगने के लिए कहा ,

तब सत्यवती ने अपनी माता के लिए पुत्र की माता होने का वरदान माँगा .भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो 

चरु पात्र  प्रदान किये और कहा एक तुम्हारे लिए दूसरा तुम्हारी माता के लिए .
पहला पात्र तुम्हारी माता के लिए है।
.भृगु ऋषि ने पहला  चरु पात्र देते हुए कहा कि ऋतु स्नान के पश्चात् यदि तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन कर पुत्र प्राप्ति की कामना करेगी तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। 
भृगु ऋषि ने दूसरा चरु पात्र देते हुए कहा – यह तुम्हारे लिए है .तुम यदि गुलर वृक्ष का आलिंगन करोगी तो तुम्हे भी पुत्र की प्राप्ति होगी। 
.सत्यवती ने यह बात अपनी माता को बतलाई तो सत्यवती की माता ने समझा कि भृगु ऋषि ने अवश्य ही अपनी पुत्रवधू को श्रेष्ठ संतान प्राप्ति का वर दिया होगा ,यदि पुत्री सत्यवती वाले चरु का प्रयोग मै करुँगी तो मुझे श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होगी ,इस प्रलोभन में सत्यवती की माता ने चरु बदल दिए। 

भृगु ऋषि को अपनी योगशक्ति से यह सब ज्ञात हो गया . उन्होंने अपनी पुत्रवधू को यह सब बतलाते हुए कहा कि तुम्हारे  गर्भ से उत्पन्न  संतान में ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रियों के गुण होगे .और तुम्हारी माता के गर्भ से उत्पन्न संतान में क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण के गुण होगे। 
इस पर सत्यवती ने भृगु ऋषि से याचना की ,मेरे गर्भ से उत्पन्न संतान ब्राहमण का आचरण करे ,क्षत्रिय का गुण मेरी संतान से उत्पन्न संतान को दे दीजिये।
 भृगु ऋषि ने कहा –ठीक है ,ऐसा ही होगा। 
समय आने पर सत्यवती ने जमदग्नि को जन्म दिया।
वयस्क होने पर जमदग्नि का विवाह प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से हुआ .रेणुका ने अपने गर्भ से पांच पुत्रों को जन्म दिया .जमदग्नि और रेणुका के पांचवे पुत्र का नाम था –परशु राम। भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया का माना जाता है.
भृगु ऋषि के वरदान के कारण ही परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी कर्म से क्षत्रिय बने। 

क्यों किया था भगवान परशु राम ने अपनी माता का वध ?
Hindi Hindustaniयह एक ऐसा प्रश्न है जो संशय और दुविधा उत्पन्न करता है। शास्त्र निति से इस प्रश्न का हल खोजा  जा सकता है। भगवान परशु राम  विष्णु के ही अंशावतार थे।दशरथ पुत्र  राम  भी विष्णु के ही अवतार थे। राम परम पितृ भक्त थे और परशु राम भी। पितृ आज्ञा का पालन करने के लिए ही भगवान राम ने १४ वर्ष वनवास स्वीकार किया था और परशु राम ने भी पितृ आज्ञा का पालन करने के लिए ही माता का वध करने के लिए विवश हुए थे। दोनों ही उद्धरण से एक ही प्रेरणा आती है कि  दायित्व का निर्वाह करने के लिए कोमल भावनाओं का त्याग कर कठोर बनना पड़ता है ,तभी धर्म ,नियम और दायित्व निभाया जा सकता है।   
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में रेणुका जमदग्नि के स्नान हेतु नदी तट पर जल लेने गई। उस समय चित्ररथ अप्सराओं के साथ जल विहार कर रहा थे। रेणुका मन्त्र मुग्धा होकर आसक्ति भाव से इस दृश्य को देखने में इतनी खो गई कि उसे पता ही नहीं चला कि कितना समय गुजर गया. 
रेणुका को इतना विलम्ब क्यों हो गया ? वह अब तक जल लेकर क्यों नहीं लौटी ? संशय निवारण के लिए जमदग्नि ने योग दृष्टि से सब देख जान लिया कि रेणुका का मन विकार भाव से कलुषित हो गया है । 
 कुछ क्षण पश्चात् रेणुका को बोध हुआ .वह जल लेकर आश्रम लौटी और जमदग्नि से विलम्ब के लिए याचना की. क्रुद्ध जमदग्नि ने अपने पुत्रों को अपनी माता रेणुका सिर धड से अलग का आदेश दिया .किन्तु प्रथम चार पुत्र माता का वध करने का साहस नहीं जुटा सके। जमदग्नि ने क्रोधाग्नि से अपने चरों पुटों को भस्म कर दिया। उसके पश्चात् जमदग्नि ने पितृ भक्त परशु राम को पितृ आज्ञा का पालन करने को कहा तो परशुराम ने माता रेणुका का परसे से शिरोच्छेद कर दिया। पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर जमदग्नि ने परशुराम से वर मांगने के लिए कहा .परशुराम ने अपनी माता और भाइयों को पुनर्जीवित कर देने का वर माँगा .जमदग्नि ने वचन पूर्ण करने के लिए पत्नी और पुत्रों को पुनर्जीवित कर दिया .

क्यों बने भगवान परशुराम क्षत्रियों के शत्रु ?क्यों करना पड़ा भगवान परशु राम को पृथ्वी पर  २१ बार क्षत्रिय विहीन ? 
पौराणिक कथानुसार हैहय वंश में उत्पन्न कार्तवीर्य अर्जुन जिसे अपने गुरु दत्तात्रेय से वरदान में सहस्त्र भुजाओ की शक्ति प्राप्त थी . जिसके कारण वह सहस्त्रबाहु नाम से जाना गया ,अत्यंत बलशाली था .उसे अपने भुजबल पर अत्यंत अहंकार था .

एक बार वह शिकार खेलते हुए अपने सैनिकों के साथ जमदग्नि के आश्रम पहुँच गया..जमदग्नि के पास 

देवराज इंद्र द्वारा प्रदत्त कामनापूर्ण कपिला कामधेनु गाय थी .जमदग्नि ने राजा सहस्त्रबाहुका राजसी ढंग से अतिथि स्वागत –सत्कार किया राजा सहित सैनिकों  के भोजन का प्रबंध किया .राजा सहस्त्रबाहु यह सब देखकर चमत्कृत हुआ कि एक सामान्य से ऋषि की झोपड़ी के यह सब कैसे संभव हो सकता ?सहस्त्रबाहु ने इसका रहस्य जाना चाहा तो जमदग्नि ने बतलाया कि उनके पास जो कामधेनु गाय है ,उसी की महिमा का यह चमत्कार है। इंद्र प्रदत्त कामधेनु कपिला गाय का चमत्कार सुनकर सहस्त्रबाहु के मन में कामधेनु कपिला  गायको पाने का प्रलोभन आ गया .सहस्त्रबाहु ने जमदग्नि से कामधेनु गाय देने की बात कही किन्तु जमदग्नि ने कामधेनु गाय देने से इंकार कर दिया ,इस पर सहस्त्रबाहु बलपूर्वक कामधेनु गाय को छिनकर ले गया .

 
परशुराम के आश्रम लौटने पर जमदग्नि सारा वृतांत सुनाया .यह सुनकर परशुराम क्रुद्ध हो उठे और सहस्त्रबाहु के राज्य पर आक्रमण कर दिया .दोनों के मध्य युध्द हुआ .इस युध्द में भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। 
 

अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने परशुराम की अनुपस्तिथि में आश्रम 

 
पहुंचकर ध्यानस्थ जमदग्नि का वध कर दिया और जमदग्नि का शीश काटकर अपने साथ ले गए. . 
 
परशु राम जब आश्रम पहुंचे तो माता रेणुका को विलाप करते देखा .विलाप का कारण पूछने पर माता रेणुका 
 
ने सारा घटनाक्रम सुनाया .परशुराम क्रुध्द हो उठे और शपथ ली कि वह पूरी पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर डालेंगे। 
क्रुद्ध भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु के समस्त पुत्रों का वध कर डाला और पिता जमदग्नि  का 
शीश माता रेणुका को सौप  दिया .भगवान परशुराम की माता अपने पति जमदग्नि के साथ सती हो गई .इसके बाद भी भगवान परशुराम ने २१ बार पृथ्वी को क्षत्रियों से रिक्त किया .
 स्वयं महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर भगवान परशुराम का कोप शांत किया। अंत में क्षत्रियों से अधिकृत पृथ्वी ब्राह्मणो को दान स्वरूप भेंट कर भगवान परशुराम  महेन्द्र पर्वत पर चले गए. 
 

No Comments

    Leave a Reply

    error: Content is protected !!
    error: Alert: Content is protected !!