मनुष्य की आँखें फले ही छोटी –छोटी हो ,लेकिन हर मनुष्य अपनी इन छोटी –छोटी आँखों में बड़े-बड़े सपने संजोये रखता है .इन सपनों को हम मनुष्य की इच्छा …मनोकामना ….मनोरथ …अभिलाषा या फिर महत्वाकांशा भी कह सकते है . मनुष्य है तो इच्छाओं का होना स्वाभाविक हैंऔर मनुष्य में यह इच्छा या महत्वाकांशा होनी भी चाहिए क्योकि यही इच्छा या महत्वाकांशा मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करती है .
motivational thought
सपनों की हकीक़त
जैसे –जैसे मनुष्य अपनी इच्छा या महत्वाकांशा को मूर्त रूप देने के लिए अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता है .बाधाएं सामने आकर खड़ी होने लगती है .कई बार तो इन बाधाओ का आकार इतना बड़ा होता है कि एक बार तो ऐसा लगने लगता है कि इससे पार पाना नामुमकिन है,इससे लड़ना –भिड़ना व्यर्थ होगा .जैसे फूंक मार कर पहाड़ को रास्ते से नहीं हटाया जा सकता ,वैसे ही इस बाधा को पार नहीं किया जा सकता .हमे लगता है इस पहाड़ बराबर बाधा को हम फूंक जैसे प्रयासों से हटा नहीं पाएंगे .इस प्रकार की सोच रखनेवालों के लिए बेन होगन कहते है कि –
“यदि आप उन्हें हटा नहीं सकते, तो उनसे अधिक मेहनत करें।”
और यदि हम सफल नहीं हुए तो –
इस सवाल के जवाब में डब्ल्यू क्लेमेंट स्टोन कहते है कि-
“चाँद पर निशाना लगाओ। यदि आप चूक भी गए, तो आप एक सितारे को तो गिरा ही सकते हैं।”
अक्सर हम अपना प्रयास इसलिए प्रारंभ नहीं करते कि अपने प्रयास में विफल हो जाने पर लोग खिल्ली उड़ायेंगे .यदि आप ऐसा सोचते है तो आपको चाणक्य का यह प्रेरक कथन स्मरण कर लेना चाहिए -“इस बात को व्यक्त मत होने दीजिए कि आपने क्या करने का विचार किया है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ़ रहिये ।”
याद रखिये -“ सफलता सपनों के लिए प्रयास करनेवालों के पीछे चलती है। भले ही बाधाएँ आएँ या समय ज्यादा लग जाएँ, देर से सही पर सफलता जरूर मिलती है।”
कलाम साहब की बात सुनिए ,कितनी सुंदर बात कही है उन्होंने –
विस्तृत आकाश की ओर देखो ,आप अकेले नहीं है ,समग्र ब्रह्माण्ड आपके साथ है .जो स्वप्न देखते है और स्वप्न को यथार्थ में बदलने का प्रयास करते है .समस्त ब्रह्माण्ड उसके पीछे खड़ा है ,आप अकेले नहीं है .
know yourself….अपने आप को पहचानो …..ब्रह्माण्ड समस्त शक्तियां आपमें समाहित है . – स्वामी विवेकानंदजी ने कहा है –
“ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियां पहले से हम में समाहित हैं। लेकिन हम उसे देखने के बजाय अपने हाथों से अपनी आँखें मूँद लेटे है और विलाप करते है कि कितना गहन अंधकार है .
चार्ली मुंगेरके कथन को इसमे शामिल कर लीजिये –
आप जिस बड़ी सफलता को पाना चाहते है ,उससे पहले स्वयं को उतना बड़ा बनाइये अर्थात अपने को उतना ही योग्य बनाइये
महान विचारक और दार्शनिक कन्फ्यूशियस के कथन का मर्म समझिये –
“जीतने की इच्छा, सफल होने की इच्छा, अपनी पूर्ण संभावना तक पहुंचने का आग्रह…ये वे चाबियां है जो कामयाबी के दरवाजे को खोलती है ”
बस, आवश्यकता है अपने आप पर भरोसा करने की …..दृढ संकल्पित रहने की …..जोश में होश रखते हुए धैर्य के साथ निरंतर …निरंतर प्रयासरत रहने की ,,हार कर भी हार न मनाने की .
उपर्युक्त सारी बातों का सार स्प्रीटे लोरियान के इस कथन में समाहित हो जाता है
“दुनिया की हर महान कहानी तब बनी जब किसी ने हार नहीं मान कर हर परिस्थिति में बढ़ते रहने का फैसला किया।” रीड मोरे
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