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mahatma bhartri hari ke anmol vachan

March 4, 2017
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महात्मा भर्तृहरि  के प्रेरक  विचार

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 महात्मा भर्तृहरि  के प्रेरक  विचार

 महात्मा भृतहरि के विचार जीवनोपयोगी व  व्यावहारिक है ,क्योकि  उन्होंने स्वयं राजसी विलासता को भोगकर सांसारिकता को निस्सार अनुभव किया ,सांसारिक वैभव मात्र भ्रम है। उसी जीवनानुभव को उन्होंने काव्य रूप में अभिव्यक्त किया। संकलित वाक्य काव्यांशों का सरल रूपांतर है-  

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Hindi Hindustaniअच्छी बातें उन्ही के साथ की जानी  चाहिए जो जिज्ञासु हो,ग्राहयी हो, पात्र हो  अन्यथा मौन रहना ही ज्यादा श्रेयस्कर है।
 

विषय सुख के मोह से ही व्यसन उत्पन्न होते है और दुःख का कारण  बनते है। यह जानकार भी मनुष्य विषय सुख का त्याग नहीं करता और कष्ट पाता है। विषय सुख के लिए किया गया उद्यम मृग तृष्णा की भाँति  भ्रम के पीछे दौड़ाना है।

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 धन का लोभ दुःख का कारण  है। इसे पाने के प्रयास में वास्तविक सुख बहुत पीछे  छूट जाता है। जहाँ आत्म संतुष्टि मिल जाये ,उसी का भोग वास्तविक सुख है।

तृष्णा  कुमति  की  जननी  है।  तृष्णा  से  कभी संतुष्टि  नही मिलती, तृष्णा का पीछा  करना व्यर्थ  है – पानी  बिलोकर  माखन  पाने  की आशा  करने  जैसा  मूर्खता  पूर्ण।

Hindi Hindustaniलोभ  मनुष्य  को  अपनी  अँगुली   के इशारे  पर  नचाता  रहता  है।  आत्म  – सम्मान  को  कुचल  देता है। लोभ के कारण मनुष्य  जिनके  सामने  झुकना  नही  चाहते   उसके   सामने  भी  झुकना पड़ता  है।

समय  गतिशील  है , गुजरता रहता है , उम्र  बीतती  जाती है , ,शरीर  शीर्ण   हो जाता  है।  मनुष्य  को चाहिए  की समय  रहते  सावधान  हो जाए , मोह  माया  से मुक्त  हो जाए।  आता  नही दुबारा  गुजरा   हुआ जमाना। कर लिया सो काम ,भज लिया वह राम।

Hindi Hindustaniमोह ही दुःखों का मूल है ,बुढ़ापे ने घेर लिया  ,शरीर शीर्ण हो गया। मान – सम्मान घट गया लेकिन काया अब भी मृत्यु के नाम से कॉप जाती है।

कामना का दामन सीमित कर ही सुख पाया जा सकता है। कामना पूर्ति  में मनुष्य इतना व्यस्त हो जाता है कि  जीवन के वास्तविक सुख के क्षण निकल भागते है।

Hindi Hindustaniमनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ माने गए है -मोक्ष ,धर्म ,अर्थ और काम, किन्तु अकर्मण्य मनुष्य आलस्य के कारण  इनमे से एक का भी लाभ नहीं उठा पाता  और दुर्लभ मनुष्य जीवन व्यर्थ गवां देता है। अकर्मण्य मनुष्य आलस्य के कारण  लोक-परलोक दोनों से वंचित रह जाता है।

मनुष्य बूढा हो जाता है किन्तु लालसा और वासना सदैव युवा बनी रहती है। जीवन का अंत आ जाता है किन्तु लालसाओं और वासनाओं का कोई अंत नहीं होता ।

हमने सारे प्रयत्न कर डाले ,कठिन परिश्रम भी किया ,बहुतेरे कष्ट पाए किन्तु जिसे पाने के लिए के लिए दुर्लभ मनुष्य पाया ,वह न पा सके।

Hindi Hindustaniसभी पराधीनता से जकड़े है ,किसी को सुख नहीं ,बस सभी भगाते रहते है। मनुष्य की यह कैसी दुर्गति ? किसी भी व्यक्ति या वस्तु के अधीन रहकर कभी सुख नहीं पाया जा सकता।

Hindi Hindustaniमनुष्य जिन विषयों के पीछे भाग रहा है ,वे सब एक दिन मनुष्य का साथ छोड़ देंगे। इसलिए मनुष्य को सोचना चाहिए कि  जो चीज हमारे साथ स्थायी  रूप से साथ नहीं रहेगी ,उसके पीछे भागे ही क्यों ? जिस चीज का साथ छूटना निश्चित है ,तो मनुष्य को स्वयं ही उसे छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य को सुख और शांति ही मिलेगी और अंत समय दुःख न होगा।

मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है ,तब ही वह संसार के राग -द्वेष को समझ पाता  है. राग -द्वेष से पीछा छूटने  पर ही शांति  प्राप्त होती है। शांति से तृष्णा का शमन होगा ,क्योकि तृष्णा ही मनुष्यों को विषयों की ओर  ले जाती है। जैसे स्त्री प्रसंग से कामज्वर प्रबल होता है ,वैसे ही विषयों से इन्द्रियाँ प्रबल होती है।

Hindi Hindustaniवासना से पीड़ित मनुष्य की स्तिथि बिलकुल वैसी ही होती जैसे कृशकाय ,कान पूँछ रहित लंगड़ा कुत्ता जिसके ज़ख्मों  से मवाद बह रहा है।बूढा और  भूख से व्याकुल है किन्तु काम से सताया कुतिया के पीछे दौड़ रहा है। वासनाओं को संयमित कर ही कामनाओं को नियन्त्रित  किया जा सकता है। मनुष्य काम वासना के फेर में पड़कर अच्छे-बुरे में अंतर करने  का विवेक खो देता है।

Hindi Hindustaniकामदेव के बाणों से तो  भिखारी भी नहीं बच पाता ,जिसके पास न वस्त्र है और न कोई घर। कामदेव पर काबू पाना कठिन है किन्तु दृढ आत्मसंयम से कामदेव पर काबू पाना आवश्यक है।

कामासक्त को मांसपिण्ड के उरोज स्वर्णकलश ,कफ -बलगम से भरा मुख चंद्रमा सा और जंघाएँ  कदली स्तम्भ जान पड़ते  है ,जो कि अपशिष्ट पदार्थ विसर्जन का माध्यम है, किन्तु कामासक्त मनुष्य इस तुच्छ सुख को पाने के लिए पाप कर्म करने को उद्यत हो जाता है।

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