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September 20, 2023
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गीत-3, ,महादेवी वर्मा,

मैं नीरभरी दुःख की बदली!

गीत-3

1

मैं नीरभरी दुःख की बदली!

स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा,

क्रन्दन में आहत विश्व हँसा,

नयनों में दीपक से जलते

पलकों में निर्झरिणी मचली!’

भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत-3 से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  अपने जीवन की  बादलों से तुलना करते हुए कहती है  कि उनकी आँखों में प्रति क्षण  आँसू विद्यमान  हैं, ठीक वैसे ही जैसे बादल जल  से भरे रहते हैं। महादेवीजी कहती हैं कि विरह से उत्पन्न दुःख ने उसके जीवन में स्थायित्व बनालिया है, जिस  तरह बादलों में कम्पन  व गतिशीलता रहती है,वैसी ही स्थिति महादेवीजी अपने अंतर में अनुभव करती है   । महादेवीजी   कहती हैं, जिस प्रकार बादलों की आवाज से पूरा विश्व  प्रसन्न होता  है, उसी प्रकार मेरी विरह  पीड़ा से संसार को  प्रसन्नता की अनुभूति होती है । महादेवीजी   कहती है कि उसकी आँखों से प्रियतम की विरह वेदना के कारण हर क्षण  अश्रु प्रवाहित होते  रहते हैं,  फिर भी नेत्रों में अपने प्रियतम से मिलने की आशा  विद्यमान  रहती है।

2

 मेरा पग पग संगीत भरा,

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,

नभ के नव रँग बुनते दुकूल,

छाया में मलय-बयार पली!

भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  कहती है कि जैसे बादल मन्द गति से बहता रहता  है और उसके  गर्जन में संगीत  व्याप्त होता है, मेरा जीवन भी प्रियतम की स्मृतियों से भरा हुआ है। महादेवीजी कहती हैं कि मेरे जीवन में प्रियतमकी  मधुर स्मृतियाँ बसी हुई हैं, जिस प्रकार बादलों की परिणति उसके बरसने में है,उसी प्रकार प्रियतमकी  मधुर स्मृतियाँ नेत्रों से अश्रु बनकर प्रवाहित होने में है । महादेवीजी  कहती है कि बादलों के बरसने के उपरान्त आकाश में निकला इन्द्रधनुष उसके आँचल के समान लगता है और मलय पर्वत की शीतल हवा के समान बहने वाली वायु से ऐसा लगता है कि वह इसी आँचल की छाया में पली है और वही उसका उद्गम स्थल है। प्रियतम की स्मृतियाँ मेरे जीवन में भी नवीन रंग  और मलय पर्वत की शीतलता लाती हैं।

3

मैं क्षितिज-भृकुटी पर घिर धूमिल,

चिन्ता का भार बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी

नव जीवन-अंकुर बन निकली!

भावार्थ-

महादेवी वर्मा रचित गीत -3 से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  कहती है कि जल के भार से नभ में झुके हुए बादलों को देखकर ऐसा प्रतीत है कि वे उसकी भौहें हो और उसके  दुख को व्यक्त कर रहे हैं। उसी प्रकार प्रिय मिलने की आशा से वह भी हमेशा चिंतित रहती है। महादेवीजी का कहना है कि जैसे बादल पानी के बोझ को सहन न कर पाने के कारण पृथ्वी पर बरसते हैं और संसार में नवजीवन का संचार  करते हैं, उसी प्रकार चिंतित महादेवीजी के नयनों से बहते आंसू उनके जीवन में नवजीवन का संचार करते हैं है।

4

पथ को न मलिन करता आना

पद-चिह्न न दे जाता जाना,

मेरे आगम की जग में

सुख की सिरहन हो अन्त खिली!

भावार्थ-

महादेवी वर्मा रचित गीत -3 से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  कहती है कि आकाश में बादल छा जाने से आकाश मलिन नहीं होता, और उसके जाने के बाद उसका कोई चिह्न शेष नहीं रहता, किन्तु  बादल के आकाश में छा जाने की  कल्पना  मात्र से पूरे विश्व में खुशी की लहर दौड़ जाती है।

उसी प्रकार, महादेवीजी ने अपने पूरे जीवन में कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे उसके जीवन मार्ग पर कोई कलंक लगा हो। वह भी निष्कलंक इस संसार में आई थी ,उसी निष्कलंकता बिना कोई चिह्न छोड़कर संसार से चली जाएगी  । महादेवीजी भी संसार अपने  आगमन का स्मरण कर सिरह  जाती है ।

5

विस्तृत नभ का कोई कोना,

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मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली!

मैं नीर भरी दुःख की बदली!

भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत-3 से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  कहती है कि जिस प्रकार आकाश के विस्तृत भाग में फैले हुए बादल को का  स्थायित्व नहीं होता , उसी प्रकार मेरा  भी इस संसार में स्थायित्व नहीं । महादेवीजी कहती हैं कि महादेवीजी का कहती है कि जैसे बादल केवल उसके बनने और बरसने तक रहता है, उसी प्रकार कवयित्री की पहचान और इतिहास केवल यह है कि वह कल आई थी और आज जा रही है; यही उसका पूरा जीवन है।

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