lata mangeshakar-bulbul-e- hindustan
बुलबुल –ए –हिंदुस्तान –लता मंगेशकर
6 फरवरी …. इस दिन को हर हिन्दुस्तानी संगीत प्रेमी इस दिन के रूप में याद रखेगा कि इस दिन
संगीत की देवी …स्वर साम्राज्ञी …स्वर कोकिला ….बुलबुल-ए-हिंदुस्तान …अर्थात लता मंगेशकर इस
दिन इस दुनिया से रुखसत हुई थी …जब भी संगीत की चर्चा चलेगी ,उसमे लताजी का ज़िक्र ज़रूर
होगा .क्योकि लताजी के बिना संगीत अधूरा है ….लताजी उसकी पूर्णता है .
क्या लताजी की पहचान यही कि उनकी आवाज़ में जो मधुरता थी ,वह किसी अन्य गायिकाओं में नहीं थी या फिर उन्होंने हजारों लोकप्रिय गीत गाये ?नहीं ,यह कहना तो उनके व्यापक व्यक्तित्व को कम करके आंकना होगा .लताजी का संगीत को जो सबसे अधिक योगदान रहा, वो था चित्रपट संगीत को जन सामान्य तक पहुँचाने का .जब फिल्मों में पार्श्व गीत का प्रारंभ हुआ तब गीत संगीत शुद्ध शस्त्रीय संगीत पर आधारित हुआ करता था .जिसका रसास्वादन सिर्फ संगीत की समझ रखनेवाले ही लिया कर सकते थे .संगीत में रूचि रखनेवालों की संख्या सिमित हुआ करती थी .संगीत शास्त्र के आधार पर गाने वाले को ही महान विभूति समझा जाता था .प्रारंभिक अवस्था का कोई भी पुराना फिल्म का गीत –संगीत सुन लीजिये ,प्रमाण मिल जायेगा .
लताजी वह शख्सियत है जिन्होंने शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत को एक धरातल पर ला रखने का मार्ग प्रशस्त किया । लताजी का गायन न शास्त्रीय है और न सुगम, बस संगीत है। लताजी का गया गीत न सिर्फ कानों में रस घोलता है बल्कि आत्मा के तारों को भी झंकृत करता है .फिर वह चाहे संगीत शास्त्र का ज्ञाता हो या फिर सामान्य सा मनुष्य .लताजी का गायन खेत में हल चलते किसान या पत्थर तोड़ते मज़दूर को भी उतना ही प्रभावित करता है ,जितना किसी संगीत मर्मज्ञ को .
लता जी के ‘गानपन’ ने शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत के मध्य के बंटवारे को समाप्त किया है।
शुद्ध संगीत से पृथक समझे जानेवाले चित्रपट संगीत को शुद्ध संगीत के समकक्ष रखकर चित्रपट
संगीत को न सिर्फ लोकप्रिय बनाया बल्कि संगीत को सीमित दायरे से निकाल कर संगीत को और
व्यापक बनाया .सैकड़ो-हजारों संगीत प्रेमियों की संख्या को बढाकर लाखों करोड़ों कर दिया .यह लताजी के स्वर का ही चमत्कार था .
लताजी का अद्वितीय स्वर हर किसी के अंतर्मन को छू जाता था । प्रसिद्ध गायक दीनानाथ
मंगेशकर की शास्त्रीय गायकी को उनकी बेटी की आवाज ने ही दुनिया को हिन्दुस्तानी संगीत की
पहचान दिलाई । जब लताजी ने बतौर गायिका फिल्म संगीत में पदार्पण किया ,तब नूरजहाँ ,शमशाद
बेगम ,सुरैया का अपना जमाना था, परंतु कालांतर में लताजी उन सबकों पीछे छोड़कर सबसे आगे
निकल गई।लता अनुपमा है ….अद्वितीय है ….लता का कोई सानी नहीं। लता ने चित्रपट संगीत को
लोकप्रिय बनाने में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ,वह अविस्मर्णीय रहेर्गी । लताजी के आगमन से
पूर्व गायकी का परम्परागत जो ढर्रा चला आ रहा था ,वह बदल गया । यह सब लताजी के कारण
हुआ। चित्रपट संगीत के विविध प्रकारों को आम आदमी ने समझा ..महसूस किया और गुनगुनाया ।
लता ने नयी पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया तथा आम आदमी में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा
करने में योगदान दिया। आम श्रोता शास्त्रीय गायन व लता के गायन में से लता की ध्वनि मुद्रिका को पसंद करेगा।
आम आदमी को राग के प्रकार, ताल आदि से कोई मतलब नहीं होता। उसे केवल मस्त कर देने वाली
मिठास चाहिए। लता के गायन में वह गानपन सौ फीसदी मौजूद है। लता के गायन की एक और
विशेषता है-स्वरों की निर्मलता। नूरजहाँ के गानों में मादकता थी, परंतु लता के स्वरों में कोमलता और
मुग्धता है। यह अलग बात है कि संगीत दिग्दर्शकों ने उसकी इस कला का भरपूर उपयोग नहीं किया
है। लता के गाने में एक नादमय उच्चार है। उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप
द्वारा सुंदर रीति से भरा रहता है। दोनों शब्द एक-दूसरे में विलीन होते प्रतीत होते हैं। कुछ जानकर
कहते है कि लता ने मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या द्रुतलय के गाने अच्छे तरीके
से गाए हैं किन्तु लता ने करुण रस के गाने ज्यादा अच्छे नहीं हैं, ।ऐसा कहना अथवा मानना ठीक
वैसा ही है जो सुंदर चाँद में कलंक ढूँढते है ,समुन्द्र में खरापन और सूरज में जला देने वाली गर्मी
देखते है .कुछ संगीत दिग्दर्शकों ने तो अपनी इस मानसिकता के कारण ही उनसे ऊँचे स्वर में गवाया
है।
शास्त्रीय संगीत व चित्रपट संगीत में तुलना करना निरर्थक है। शास्त्रीय संगीत में गंभीरता स्थायी भाव
है, जबकि चित्रपट संगीत में तेज लय व चपलता प्रमुख होती है। चित्रपट संगीत व ताल प्राथमिक
अवस्था का होता है और शास्त्रीय संगीत में परिष्कृत रूप। चित्रपट संगीत में आधे तालों, आसान लय,
सुलभता व लोच की प्रमुखता आदि विशेषताएँ होती हैं। चित्रपट गायकों पर आरोप लगाया जाता है कि
उन्हें शास्त्रीय संगीत की गहराई का ज्ञान नहीं होता , संगीत गायकों को शास्त्रीय संगीत का व्याकरण
ज्ञात नहीं होता ।किन्तु लताजी ने संगीत शास्त्र के ज्ञाताओं का यह भ्रम तोड़कर यह प्रमाणित किया
कि उनके पास संगीत शास्त्र का ज्ञान और कौशल भरपूर है।
लता के तीन-साढे तीन मिनट के गान और तीन-साढे तीन घंटें की शास्त्रीय महफिल का कलात्मक व
आनंदात्मक मूल्य एक जैसे हैं। उसके गानों में स्वर, लय व शब्दार्थ का संगम होता है। गाने की सारी
मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर आधारित होती है और रंजकता का संबंध रसिक को आनंदित
करने की सामर्थ्य से है। लता का स्थान अव्वल दरजे के खानदानी गायक के समान है। किसी ने
पूछा कि क्या लता शास्त्रीय गायकों की तीन घंटे की महफिल जमा सकती है? प्रश्न करने वाले से
पूछा जाना चाहिए कि क्या कोई उच्च कोटि का शास्त्रीय गायक तीन मिनट में चित्रपट का गाना
इतनी कुशलता और रसोत्कटता से गा सकेगा? शायद नहीं।
खानदानी गवैयों ने चित्रपट संगीत पर लोगों के कान बिगाड़ देने का आरोप लगाया है। लताजी के
चित्रपट संगीत ने लोगों के कान सुधारे हैं। हमारे शास्त्रीय गायक आत्मसंतुष्ट वृत्ति के हैं। वे कर्मकांड
को आवश्यकता से अधिक महत्त्व देते हैं, जबकि लताजी के चित्रपट संगीत ने लोगों को अभिजात्य
संगीत से परिचित करवाया है।
लोगों को सुरीला व भावपूर्ण गाना चाहिए। लताजी ने यह काम चित्रपट संगीत के माध्यम से कर
दिखाया । लताजी के गान में एक अलग ही लचक है। लताजी के गानपन की मान्यताएँ, मर्यादाएँ,
गरिमा आदि विलक्षण हैं। लताजी ने नवाचार की गुंजाईश को पुष्ट किया। लताजी अपने गानपन में
शास्त्रीय रागदारी को साथ लेकर आमजन के ह्रदय तक पहुंची। संगीत का क्षेत्र विस्तृत है और ऐसे
चित्रपट संगीत की बेताज साम्राज्ञी लता है। उनकी लोकप्रियता अन्य पार्श्व गायकों से अधिक है। उसके
गानों से लोग पागल हो उठते हैं। आधी शताब्दी से अधिक समय तक लोगों के मन पर उसका प्रभुत्व
रहा है और आगे आने वाले युग तक रहेगा । यह एक चमत्कार है जो कि संगीत शास्त्रीय समझ रखने वाले गिने चुने लोगों से निकलकर शास्त्रीय संगीत की समझ न रखनेवाले ह्रदय तक भी पहुंचा ,इसका श्रेय सिर्फ ..सिर्फ और लताजी को ही जाता है।
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