lamhein-hindi poem
ये लम्हे भी बड़े अजीब होते है
कभी दामन फूलों से
तो कभी काँटों से भर देते है
कोई लम्हा ठंडी हवा का अहसास करा जाता है
धूप में बादल का टुकड़ा बन छा जाता है
कभी कोई लम्हा नश्तर सा चुभ जाता है
भरे हुए ज़ख्मों को हरा कर जाता है
कभी अपना
तो कभी बेगाना सा लगता है
कभी जाना –पहचाना
तो कभी अनजाना सा लगता है
निकालकर न फेंकों ज़िन्दगी से ऐसे लम्हों को
हर लम्हा नसीहत देकर जाता है
ज़िन्दगी का मक़सद बन जाये समेट लो ऐसे लम्हों को
ऐसे लम्हों को सम्भाल लो ,संवार लो
हो सकें तो बाँट लो
हर लम्हे को जिओ ,भरपूर जिओ
क्योकि बीता हुआ लम्हा लौटकर नहीं आएगा
जो आज है ,अभी है ,वही हमारा है
कल वही अतीत बन जायेगा
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