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कौन है मूर्ख और कौन है बुध्दिमान ?
मूर्ख है वह जो काम पहले करता है और सोचता बाद में है
मूर्ख है वह जो जो अपनी गलतियों को बहाने से छुपाने की कोशिश करता है
मूर्ख है वह जो अज्ञानी होकर भी अहंकार करें
मूर्ख है वह जो जल्दी किये जानेवाले काम को तो देरी से करता है और गैर ज़रूरी काम को करने में उतावली दिखलाता है
मूर्ख है वह जो परिणाम के बारे में विचार किये बिना कार्य करता है
मूर्ख है वह जो मानता है कि पैसा ही सब कुछ है
मूर्ख है वह जो –की गई गलती को सुधारने के बजाय ,गलती को दुहराता है
मूर्ख है वह जो कर्म किये बिना ,रातों रात धन्ना सेठ बन जाना चाहता है
मूर्ख है वह -जो अयोग्य अथवा अपात्र को ज्ञान देता है
मूर्ख है वह जो ज़रूरी काम को छोड़कर ,अनुपयोगी काम पर अपनी उर्जा और समय ख़राब करता है
मूर्ख है वह जो मित्र और हितैषियों के प्रति भी
छल-कपट की मंशा रखता है
मूर्ख है वह जो प्राप्य को छोड़कर
अप्राप्य की कामना रखता है अथवा कोशिश करता है
मूर्ख है वह जो स्वयं सिर से पैर तक अवगुणों से ढका है किन्तु स्वयं के दोष न देखकर दूसरों में दोष ढूढ़ता है ,निंदा करता है
मूर्ख है वह जो अयोग्य और शक्ति हीन होकर भी अपने से अधिक योग्य या शक्ति शाली से बैर या द्वेष रखता है
मूर्ख है वह जो भविष्य में किये जाने वले काम का ढिढोरा पहले से पीटना शुरू कर देता है और बड़ी-बड़ी डींगें हांकता है
मूर्ख है वह जो अच्छे -बुरे की पहचान किये बिना सभी को शक कि नज़र से देखता है
मूर्ख है वह जो अमानत में खयानत करता है अर्थात जिनके प्रति वह उत्तरदायी है ,उनका हिस्सा उन्हें देने में बेईमानी करता है या हड़प कर जाने की मंशा रखता है
मूर्ख है वह जो अपने आत्म-सम्मान का विचार किये बिना बिना बुलाये ही किसी के घर या उत्सव में पहुँच जाता है
मूर्ख है वह जो अनावश्यक अधिक बोलता है ,विशेष रूप से तब ,जिस विषय के बारे में उसे ज्ञान नहीं होता या आधा -अधूरा ज्ञान होता है
मूर्ख है वह जो बिना सोचे -समझे बोलता है
मूर्ख है वह जो उस पर विश्वास करता है जो विश्वास करने योग्य ही नहीं है
मूर्ख है वह जो कमजोर होकर भी ताक़तवर के सामने क्रोध प्रकट करता है
मूर्ख है वह-जो आय से अधिक खर्च करता है या क़र्ज़ लेकर घी खाता है
बुध्दिमान कौन ?बुध्दिमान है वह –जो जीवन में आनेवाली कठिनाइयों के लिए ईश्वर या भाग्य को दोष न देकर ,अपने बुध्दि बल से कठिनाइयों से मुक्ति पाने कि युक्ति सोचने लगता है
बुध्दिमान है वह –जो अपनी खामियों और दोषों पर नज़र रखता है और उसमे सुधार करता रहता है
बुध्दिमान है वह –जो सुख में अति उत्साही और दुःख में अवसाद नहीं करता ,बल्कि दोनों स्थितियों में सम बना रहता है
बुध्दिमान है वह –जो मानता है कि पैसा कुछ तो है लेकिन सब कुछ नहीं
बुध्दिमान है वह – जो अपने सामर्थ्य के अनुसार कार्य करता है
बुध्दिमान है वह –जो भौतिक पथार्थों के संग्रह को ही जीवन का उद्देश्य न जानकार ,धर्म का त्याग नहीं करता
बुध्दिमान है वह –जो अप्राप्य को प्राप्त करने के लिए अपनी शक्ति और समय का अपव्यय नहीं करता
बुध्दिमान है वह –जो नीति द्वारा करणीय माना गया है ,उसी कर्म को करता है तथा जिसे त्याज्य बतलाया गया है,उसका त्याग करता है या कुविचार आ भी जाये तो अपनी दृढ इच्छा शक्ति से उस विचार का दमन कर देता है
बुध्दिमान है वह –जो दोष जनित प्रवृतियां(क्रोध ,अति सुख ,अभिमान ,लज्जा , धृष्टता और मनमानी )जीवन उद्देश्य से परे खींचकर ले जाने पर भी उनकी ओर आकर्षित नहीं होता
बुध्दिमान है वह –जो भविष्य की आशंका से अनीति या अधर्म का आश्रय न ले
बुध्दिमान है वह –जो किसी अन्य को तुच्छ नहीं समझता ,उपेक्षा नहीं करता ,तिरस्कार नहीं करता
बुध्दिमान है वह –जो दूसरे के मन की बात को शीघ्रता से भांप ले
बुध्दिमान है वह –जो दूसरों की अच्छी एवं उपयोगी बातों को ध्यान पूर्वक सुनता है
बुध्दिमान है वह –जो दूसरो में दोष निकलने में समय व्यर्थ करने के बजाय अपनी ही गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करता है
बुध्दिमान है वह –जो धन,बल ,भुज बल और बुध्दि बल से संपन्न होकर भी निरभिमानी बना रहता है
बुध्दिमान है वह –जो कर्ज लेकर सुख भोगने की अपेक्षा अपनी आय के अनुसार ही खर्च करता है
बुध्दिमान है वह –जो रिश्तों (माता-पिता ,पत्नी- बच्चे ,भाई-बहिन ,अन्य परिजन और मित्रों ) के प्रति संतुलन बनाकर चलता है
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