inter national women day
नारी -कल ,आज और कल
नारी -कल ,आज और कल
8 मार्च ,महिला दिवस पर विशेष
नारी –कल ,आज और कल
(भारत के सन्दर्भ में )
८मार्च ,अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस –दुनिया भर में विभिन्न संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किये जायगे-संगोष्ठियां होगी ,स्लोगन लिखे जायेगे ,पोस्टर लगाए जायेगे ,रैलियां निकली जाएगी।इतिहास के पन्नो से सशक्त नारियों के उद्धरण गवाही के रूप में पेश किये जायेगे … टेबल ठोक -ठोक कर यह प्रमाणित करने की कोशिश की जाएगी कि नारी कोई अबला नहीं सबला है ,अशक्त नहीं सशक्त है ,कमजोर नहीं ताकतवर है। उसके त्याग और बलिदान की गाथाएं गायी जाएगी। कुल मिलकर यह साबित किया जायेगा कि नारी पुरुष से रत्ती भर भी कम नहीं ,वह पुरुष के समतुल्य है ,समकक्ष है। फिर लैंगिक आधार पर उसके साथ भेदभाव क्यों? क्यों नहीं उसे वह अधिकार प्राप्त है, जो पुरुष को प्राप्त है ? न्याय का मुद्दा उठाया जायेगा।अधिकारों की माँग की जाएगी। सरकारों पर दोषारोपण होंगे ,कानून में खामियां निकाली जाएगी ,नए कानून बनाये जाने की आवाज़ बुलंद की जाएगी। इस तरह ८ मार्च का दिन बीत जायेगा। अगले दिन से ही समाचार पत्रों ,टेलीविजन ,सोशल मीडिया फिर वही खबरें पढने-सुनने को मिलेगी ,जो युगों से पढ़ते-सुनते आ यह है -घरेलू हिंसा ,दहेज़ के कारण हत्या-आत्महत्या ,गैंग रेप ,एसिड अटैक ,अनैतिक देह व्यापर और यौन उत्पीडन की यही ख़बरें अगले ७मार्च तक सुनते -सुनाते रहेगे। फिर एक दिन के लिए यानी ८मार्च को महिलाओं के अधिकार और न्याय की बातें होगी … यह सिलसिला युगों से चलता आ रहा है और शायद चलता रहेगा। इन बातों पर विराम कब लगेगा ,पता नहीं।
लेकिन ,एक बात है जो समझ से परे है ,क्यों बार-बार हर साल यह बात उठाई जाती है कि नारी भी पुरुष के समान शक्तिशाली ,सक्षम और समर्थ है ,वह पुरुष के समतुल्य है .. समकक्ष है ?नारी आज से नहीं ,विगत कुछ वर्षों से नहीं बल्कि सृष्टि के आदि से ही शक्ति के रूप में प्रमाणित है-शिव का अर्द्धनारीश्वर रूप क्या इसका प्रमाण नहीं ? शक्ति का मूर्त रूप ही नारी है। भारत के प्राचीन धर्मग्रन्थ इस तरह के प्रमाणों से भरे पड़े है।
नारी को शक्ति रूप में प्रमाणित करने की दरकार नहीं ,यह तो सिद्ध सत्य है। रात्रि के अंधकार को सूर्य भगाता है,क्या इसके लिए प्रमाण की आवश्यकता होगी ?नहीं न ,वैसे ही नारी को शक्ति रूप में स्थापित करने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। नारी शक्ति का प्रमाण हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। वह कौनसा क्षेत्र या कार्य है ,जिसे पुरुष कर सकता है और नारी नहीं ?आज विज्ञानं ,उद्योग ,व्यवसाय ,साहित्य,सिनेमा ,खेल ,शिक्षा ,अध्यात्म में नारी की सहभागिता देखी जा सकती है। और जो दीख रहा है ,उसके लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता ?
यह निर्विवाद रूप से सत्य है किवर्षों से उपेक्षित ,अपमानित और लैकिक भेद भाव की शिकार नारी का जो स्थान आज है ,वह पूर्व में न था। नारी ने अपना यह स्थान या सम्मान पुरुष के सामने याचना कर …. गिड़गिड़ाकर नहीं पाया अपितु अपनी काबिलियत से पाया ,झोली फैलाकर भीख में नहीं ,छीनकर लिया । वरना इसी नारी को पुरुष ने अपनी दासी बनाकर मनमाने ढंग से इस्तेमाल करने की वस्तु बनाकर रखा था ,इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। आज नारी चहार दीवारियों में कैद नहीं है। अब वह बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं ,अब वह पुरुष की भोग्या वस्तु नहीं ,अब वह पुरुष की दासी या पैरों की जूती नहीं। आज उसे कानूनी संरक्षण प्राप्त है। (कुछ इने -गिने सम्प्रदाय इसके अपवाद हो सकते है )वर्तमान में नारी का जो सशक्तीकरण हुआ है ,वह अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को पहचान कर उसे मूर्त रूप में परिणत कर ही प्राप्त हुआ है।
वर्तमान परिप्रेक्षय पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है कि पूरे देश में सभी नारियों की दशा अच्छी है ,ऐसा भी नहीं है ..पूरी तरह बुरी है ,ऐसा भी नहीं है। नारी की स्तिथि आर्थिक ,पारिवारिक और शिक्षा के आधार पर अलग -अलग है। आर्थिक रूप से सम्पन्न और शिक्षित नारी अवश्य ही सशक्त स्तिथि में है किन्तु उसमे भी शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नारी भी कही -कही पति नाम के पुरुष की मानसिक और शारीरिक यन्त्रणा झेल रही है।
शहरों और छोटे नगरों की शिक्षित मध्यमवर्गीय नारी दोहरी मार झेल रही है। एक ओर नॉकरी और दूसरी ओर गृहणी की ज़िम्मेदारी। दफ्तर में बॉस या सहकर्मी की अवसर तलाशती आँखों का सामना करना पड़ता है तो दफ्तर से घर बीच लोकल ट्रेन -बस में असामाजिक तत्वों के प्रति असुरक्षा की आशंका से घिरा रहने की त्रासदी झेलनी पड़ती है। …. और कभी-कभी तो वही पति जिसके लिए वह खट रही है ,पिस रही है ,उसी पति के द्वारा चरित्र पर संदेह करनेवाला व्यवहार भीतर तक निचोड़ देता है। एक बार तो मन करता है सब कुछ छोड़ छाड़कर पुराने ज़माने की घरेलू पत्नी बनकर पति -बच्चों और परिवार के लिए ही समर्पित होकर रह जाये। लेकिन आधुनिक जीवन शैली और पति की सीमित आय के चलते सारी विषमताओं के बावज़ूद स्तिथियों से समझौता करना मज़बूरी बनकर आ खड़ा होता है। क्या नाम देंगे आप इसे –नारी की स्वतन्त्रता या परतन्त्रता ?
निम्न श्रमिक वर्ग की नारी का जीवन तो किसी नारकीय जीवन से थोड़ा भी कम नहीं। आर्थिक परेशानी से उबरने के लिए दिनभर मज़दूरी या घरेलू काम करने के बाद मिले पैसे पर भी उसका अधिकार नहीं रहता। व्यसनी पति उसे भी छीनकर ले जाता है। विरोध करने पर गाली के अलावा मार भी सहन करनी पड़ती है। कही -कही तो उसे द्रोपदी तक बना दिया जाता है। आगे का सच लिखने पर शायद आप मुझे और मेरी कलम को धिक्कारने लगेंगे।
शहरी नारियों की अच्छी स्तिथि को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि सब कुछ ठीक हो गया है। ग्रामीण परिवेश में नारी आज भी आर्थिक और सामाजिक रूप से परम्पराओं की जंज़ीरों में जकड़ी हुई है। वह पुरुष पर ही पराश्रित है। घर की चहार दीवारियों से निकालकर निर्भीक और उन्मुक्त भाव से उड़ने की आज़ादी आज भी नहीं मिल रही है। बाल्यकाल का प्रभात और वृद्धावस्था की संध्या के मध्य जीवन कब और कैसे गुजर जाता है ,पता ही नहीं चलता। शायद उनके लिए यही ज़िन्दगी है ,यही नियति है।
यह तो स्पष्ट परिलक्षित है कि पूर्व की तुलना में आज नारी की स्तिथि में सुधार हुआ है ,बदलाव आया है।उसने पुरुष द्वारा नारी को दोयम दर्जे में रखेजाने के पाखंड को तोड़कर आइना दिखा दिया है। वर्तमान नारी हर क्षेत्र में अपना परचम लहराते हुए उद्घोष करते हुए कह रही है –
हम किसी से कम नहीं
पुरुष तेरा ज़ुल्म सहना अब नहीं
बहुत हो चुका ,अब नहीं , कभी नहीं
आज यदि नारी अपनी कार्य क्षमता का प्रदर्शन पुरुष के समान कर कर रही है तो सिर्फ और सिर्फ शिक्षा की बदौलत। शिक्षित होकर ही वह अपने को इतनी समर्थ और सक्षम बना सकी है। लेकिन आज नारी जिस स्थान पर पहुँची है ,इसे समग्र की पूर्णाहुति नहीं माना जा सकता। शिक्षा को शहरों से निकालकर दूरदराज के गांवों तक पहुँचाने का भगीरथ प्रयास अभी बाकी है, ताकि आज की पढ़ी-लिखी बालिका कल की समर्थ -सक्षम नारी बन सके ,ठीक वैसे ही जैसे शहर की आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से भरी नारी।
गांवों तक शिक्षा की अब तक किरण ही पहुंची है ,अज्ञानता का अंधकार अब भी शेष है। यदि बालिका शिक्षा का लक्ष्य पूर्ण हो सका तो इसमे लेशमात्र भी संदेह नहीं कि भावी युवतियां अपने अधिकारों के प्रति कहीं ज्यादा जागरूक हो सकेगी और अपने ऊपर होनेवाले जुल्म ,अत्याचार और शोषण के विरूद्ध लड़ सकेगी। गार्गी ,मैत्रैयी ,अरुधंति जैसी विदुषियां आज भी गांवों में है ,बस उन्हें अवसर दिए जाने की आवश्यकता है।
नारी अधिकारों के संरक्षण के लिए किये गए सरकारी और कानूनी प्रयासों से के कारण नारी की स्तिथि में धनात्मक सुधार अवश्य हुआ है लेकिन यह प्रयास अभी नाकाफी है।अपरिमित शक्ति धात्री का शक्ति प्रदर्शन अभी शेष है। नारियों के प्रति सामाजिक स्तर पर पुरुषों की सोच में परिवर्तन की आवश्यकता अब भी शेष है। लैंगिक आधार पर विषमता के अवशेष यत्र – तत्र देखे जा सकते है। नारी सशक्तीकरण और मुक्ति के प्रयास संतुष्टिजनक भले ही कहे जा सकते है किन्तु समग्र नहीं क्योकि विभिन्न स्तरों पर नारी आज भी भेदभाव की शिकार है ।
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