कड़वा -सच
inspiration-motivational quotes in hindi
तू भला है तो बुरा हो नहीं सकता ए जौक
है बुरा वो ही कि जो तुझको बुरा जनता है
और अगर तू ही बुरा है तो वह सच कहता है
क्यों बुरा कहने का तू उसके बुरा मानता है
दाँत ,नाखून ,बाल और वक्ष अपनी जगह छोड़ने के बाद अशोभनीय हो जाते है ,उसी प्रकार शासक ,मंत्री ,ब्राह्मण ,मनुष्य ,स्त्री अपने कर्तव्य से विमुख होकर भ्रष्ट हो जाते है।
अत्यधिक मूर्ख भी सुखी है और अत्यधिक बुद्धिमान भी सुखी है किन्तु जो ना मूर्ख हो और ना बुद्धिमान वह जीवन में घटित होनेवाली हर छोटी -बड़ी बात से दुखी रहता है।
छद्म लोग संतरे की तरह होते है जबकि सज्जन तरबूज की तरह होते है।
बुद्धिमान वही है जो सुख -दुःख दोनों को समान रूप से स्वीकार करता है जैसे दिन और रात स्थाई नहीं होते वैसे ही सुख -दुःख भी स्थाई नहीं होते। सुख -दुःख चक्र की तरह घूमते रहते है।
बुद्धिजन समय का अधिकतम उपयोग करते है और मूर्ख आलस्य ,प्रमाद ,व्यसन और सोने में व्यर्थ करते है।
यदि मनुष्य महापुरुषों की भांति महान कर्म ना भी कर सके तो भी कोई हानि नहीं ,यदि वह दुर्जनों की भांति कोई एक भी दुष्कर्म ना करें। कोई दुष्कर्म ना करना भी किसी पूण्य से कम नहीं।
मैं उसे दोस्तों में नहीं गिनता जो धन -दौलत पास होने पर तो यारी रखे ,भाई -चारे की बात बढ़ -चढ़ कर करें। मैं दोस्त उसे मानता हूँ जो परेशानी की हालत में भी मेरा हाथ पकड़े रहें। -शेख सादी
कोई बुरा काम हो जाने के बाद मनुष्य जिस तरह पछताता है ,चितन करता है और अच्छा- अच्छा सोचने लगता है ,यदि पूर्व में ही बुद्धि को ऐसा ही बना लिया जाये तो दुःख या कष्ट ही क्यों भोगने पड़े।
धर्म ग्रंथों या धर्म गुरुओं के प्रवचन सुनकर ,श्मशान में शव को देखकर या गंभीर बिमारी की हालात में मनुष्य जिस तरह से अच्छे -अच्छे विचार मन में लाता है ,यदि यही विचार हमेशा दिल- दिमाग में रखे तो मनुष्य बहुत सारे अकृत्य कर्म करेंगा ही नहीं।
अच्छी बातें मूर्खो के लिए वैसी ही है जैसे अंधों के लिए चन्द्रमा की चांदनी।
मूर्खों को अच्छी बातों की शिक्षा देना वैसा ही जैसे दस्त लगे रोगी को स्वादिष्ट भोजन देना
वैर मरने तक ही रहता है , मृत्यु के बाद उसका अंत हो जाता है।
दुष्ट लोगों की विद्या विवाद के लिए ,धन अहंकार के लिए ,ताक़त दूसरों को कष्ट देने के लिए होती है किन्तु सज्जन के लिए विद्या का उपयोग ज्ञान फ़ैलाने ,धन दान देने तथा ताक़त का इस्तमाल दूसरों की रक्षा के लिए करते है।
दूसरों से अपनी निंदा सुनकर ना अपने से घृणा करें और ना निंदा करनेवाले के प्रति अन्यथा का भाव लाये बल्कि आत्म चिंतन करें। निंदा हमें अपने आपको सुधरने – सुधारने का अवसर देती है।
युक्तियुक्त बात यदि बच्चा भी कहे तो ग्रहण कर लेनी चाहिए किन्तु अनुचित बात महापुरुष भी कहे तो तिनके की तरह त्याग देनी चाहिए।
अच्छे लोगो को यदि उनके अच्छे कार्यों की प्रशंसा सुनने को ना मिले तो भी अच्छे लोगों को विचलित नहीं होना चाहिए। यही दुनिया अच्छे लोगों के मरने के बाद उसके अच्छे कार्यों का गुणगान करेंगी। सोने से ज्यादा सोने की भस्म ज्यादा कीमती होती है।
आपका वह मित्र जो अमीर हो जाने पर आपको छोड़कर चला गया है ,बर्बाद होने पर अपना दर्द सुनाने आपके ही पास आएगा।
अति महत्वकांशा आदमी को वैसा भी नहीं रहने देती जैसा वह पहले हुआ करता था अर्थात अति महत्वकांशा आदमी को बद से बदतर बना देती है.
दुनिया में जितनी भी आकर्षक चीजे है ,वे आँखों के रास्ते दिल में उतरती है ,फिर चाह पैदा करती है ,चाह से अभाव महसूस होता है और अभाव से दुःख पैदा होता है।
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