हमें मंज़िलों की परवाह नहीं जहां रुकेंगे वही मुकाम हो जायेगा
हालत के कदमों पर कलंदर नहीं गिरता
टूटे भी तो तारा ज़मीं पर नहीं गिरता
गिरते है समंदर में बड़े शौक से दरिया में
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता
सब कुछ मिल सकता है सच्ची गर चाह हो मान लो हारना गुनाह हो जिद की धूप में ना आराम की पनाह लो ना मुश्किलों की थाह लो चुभे चाहे जितने काँटे होंठों पे ना आह हो दिन हो या रात हो सुबह हो या शाम हो लक्ष्य पर ही आँख हो धूप हो या छाँव हो पैरोँ में छाले हो या घाव हो चलना हमारा काम हो फूलों की नहीं , पसीने की सुगंध लो ना रुकूँगा ,ना थमूँगा ऐसी कोई सौगन्ध लो रेत पर नहीं पत्थरों पर नाम हो सब कुछ मिल सकता है सच्ची गर चाह हो
No Comments