Hindi Hindustani
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hindi poems

May 9, 2016
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रंजिशों के दौर से
 कब तलक गुज़रेंगे हम 
क्या हो सकता नहीं ऐसा कि  
हवा भी चलती रहे 
और
 दिया भी जलाता रहे 

 

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न लब्जों शोर हो 

न अल्फाज़ो के जोर  हो
 ख़ामोशी की भी एक जुबां होती है  
 नहीं होती आवाज़ 
मगर 
असर छोड़ देती है 


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इंतज़ार करते है

 कोई फूलों का गुलदस्ता लाएगा 
इंतज़ार ,से कही अच्छा है 
खुद ही चमन खिला ले 
हाथो की लकीरें मिटाने से
कहीं अच्छा है 
 हथोड़े से पत्थर तोडना
आईने में खुद को
 देखने से अच्छा है 
खुद को आइना बना लेना 
अब तू नहीं 
दुनिया देखेगी अक्स तुझमे 
  

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शायरी में  शायर का दर्द छिपा होता है 
कहाँ किसी को इस बात का गुमाँ  होता है 
दिल का दर्द जब
 आँखों से अश्क़ बन कर बहता है 
कितना दर्द पी गया 
इस दर्द का एहसास 
ज़माने को 
शराब की खाली बोतलें देखकर होता है 

 
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जब भी आईने में देखता हूँ 
उसके सामने ठहर नहीं पाता हूँ
 कहता है आइना मुझसे
 तू वह नहीं है  
जो कभी खड़ा होता  था मेरे सामने  
गर्दन -सीना तानकर 
झुकी गर्दन ,झुकी नज़रें 
खामोश रहकर भी कह रही है 
कुछ तो हुआ है ऐसा 
तभी तो ,
नहीं खड़ा हो पा रहा है मेरे सामने 
गर्दन -सीना तानकर 

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