geeta adhyay saar-8 in hindi
geeta adhyay saar-8 in hindi
geeta adhyay saar-8 in hindi
आठवां अध्याय
इस अध्याय में कुल २८ श्लोक है
सातवें अध्याय में भगवान् ने अपने समग्र रूप के वर्णन में ब्रह्म ,अध्यात्म ,कर्म ,अधिभूत ,अधिदैव ,अधियज्ञ का प्रयोग किया था।
आठवें अध्याय में अर्जुन ब्रह्म ,अध्यात्म ,कर्म ,अधिभूत ,अधिदैव ,अधियज्ञ के बारे में विस्तार से समझाने का आग्रह करते है।
इस आठवें अध्याय में भगवान् ने अर्जुन की इस जिज्ञासा को कि ब्रह्माध्याय ,कर्म ,अधिभूत अधियज्ञ अधिदैव क्या है ?इन प्रश्नों का स्पष्टीकरण करते हुए बतलाते है कि मनुष्य अंत समय में परब्रह्म को कैसे जान सकता है?
भगवान् बतलाते है कि अविनाशी आत्मा ही ब्रह्म है। ब्रह्म का स्वाभाव अध्यात्म है। जीवों को उत्पन्न करनेवाली ब्रह्म की क्रिया-शक्ति ही कर्म है। नश्वर वस्तु अधिभूत है और अक्षरब्रह्म का विस्तार अधिदैव है। प्राणी की देह में व्याप्त परमात्मा ही अधियज्ञ है। अंत समय में परमात्मा का ध्यान करते हुए देह त्यागने वाले प्राणी परमात्मा को ही प्राप्त होते है। अंत समय में प्राणी जिस भाव का स्मरण करते हुए देह का त्याग करते है ,वह उसी भाव को प्राप्त होता है।
जो भक्त सर्वज्ञ ,अनादि सबक नियन्ता सूक्ष्मातिसूक्ष्म ,सबका पालन-पोषण करनेवाला अचिन्त्य रूप,सूर्य सदृश प्रकाशित ,अविद्या से पर परमात्मा का स्मरण करता है ,मन को दृढ कर योगबल द्वारा प्राणों को भौहों के मध्य स्तिथकर देह को त्यागता है वह मुझ परमात्मा को ही प्राप्त होता है। वह पुनर्जन्मके चक्र से मुक्त होकर परमधाम को पाता है।
भगवान् बतलाते है कि सृष्टि में सब कुछ आवर्ती है। ब्रह्माजी के दिन के प्रारम्भ में अव्यक्त अक्षर ब्रह्म यानि कि आदि प्रकृति से समस्त संसार की उत्पत्ति होती है तथा ब्रह्माजी की रात्रि आगमन पर समस्त जगत उस अव्यक्त में विलीन हो जाता है अर्थात प्राणी समुदाय बार -बार ब्रह्माजी के दिन में उत्पन्न और ब्रह्माजी की रात्रि में विलीन होता रहता यह क्रम सतत पुनरावृत होता रहता है किन्तु इस प्रकृति से पर ,दूसरी अविनाशी प्रकृति है ,जो सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होती अर्थात उसका विनाश नहीं होता है।इसी को अव्यक्त अक्षर अर्थात परम गति कहा गया है। यही परमधाम है और यह अनन्य भक्ति से ही प्राप्त होता है।
भगवान् आगे बतलाते है कि संसार से जाने के दो मार्ग है -शुक्ल अर्थात ज्ञान मार्ग और दूसरा है -कृष्ण अर्थात अज्ञान मार्ग। जो ब्रह्मविद साधकजन अग्नि,प्रकाश ,दिन ,शुक्ल पक्ष और उत्तरायण के छ मास वाले ज्ञान प्रकाश मार्ग द्वारा जाते है ,वे ब्रह्म को प्राप्त होते है। उन्हें पुनः संसार में नहीं आना पड़ता। इसके विपरीत धूम रात्रि ,कृष्ण पक्ष और दक्षिणायन के छ मासवाले अज्ञान मार्ग से जानेवाले सकाम कर्मयोगी स्वर्ग पहुंचकर पुनः संसार में आते है। तात्पर्य यह है कि शुक्ल अर्थात ज्ञान मार्ग द्वारा जानेवाले को लौटना नहीं पड़ता जबकि कृष्ण पक्ष अर्थात अज्ञान मार्ग से जानेवाले को लौटना पड़ता है। संसार से जाने के यही दो सनातन मार्ग है।इन दोनों मार्गों को तत्व से जाननेवाला कोई भी योगी भ्रमित नहीं होता। अतएव मनुष्य को चाहिए कि वह सदैव योगयुक्त रहे। अध्याय के अंत में भगवान् ने कहा कि इस आठवें अध्याय को समझकर योगी वेदों में तथा दान में पुण्यफल कहे गए है ,उन सबका उल्लंघन कर परब्रह्म परमात्मा के परमधाम को प्राप्त कर लेता है।
आठवां अध्याय समाप्त
नवाँ अध्याय अगले अंक में
यदि आपको यह पोस्ट पढ़कर लगता है कि इस पोस्ट को अपने स्वजनों ,परिचितों ,मित्रों से SHARE किया जाना चाहिए ,तो ऐसा अवश्य करे
जय श्री कृष्णा…… राधे-राधे
No Comments