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geeta adhyay saar -10 in hindi

July 6, 2016
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geeta adhyay saar –दसवाँ अध्याय

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श्री हरि.

दसवाँ अध्याय

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दसवें अध्याय को विभूति योग कहा गया है
इस अध्याय में कुल ४२ श्लोक है
पिछले अध्याय में महा सर्ग -महा प्रलय,आसुरी राक्षसी स्वभाववाले ,दैवीप्रकति का आश्रय लेनेवाले भक्तों ,सकाम-निष्काम उपासना के फल का वर्णन हुआ था




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इस दसवें अध्याय के प्रारम्भ में भगवान् ने पूर्व अध्याय के प्रकरण विभूति और योग का ही विस्तार करते हुए भगवद -भक्ति और कृपा का  प्रभाव तथा  महिमा बतलाई है। अर्जुन भगवान्  श्री कृष्ण से प्रकरण को और अच्छे से समझाने  का आग्रह करते है ,इस पर भगवान् अर्जुन की ज्ञान की प्यास को तृप्त करने के लिए आगे कहते है कि  –
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मैं सभी देवताओ और ऋषियों का  आदि कारण हूँ ,मेरी उत्पत्ति के बारे में वे भी नहीं जानते। जो मुझे अजन्मा अनादि और समस्त लोकों का स्वामी मानते है ,वे मनुष्य ज्ञानी और समस्त पापों से मुक्त होने वाले है। मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले अनेकानेक भाव ,यथा -बुद्धि ,ज्ञान ,भ्रम  का भाव ,क्षमा, सत्य, इन्द्रिय संयम ,मन संयम ,सुख- दुःख ,उत्पत्ति -प्रलय ,भय-अभय ,अहिंसा ,समता ,संतोष ,तप  ,दान ,यश -अपयश ,आदि मुझसे ही प्रकट होते है।

सातों ऋषि ,चरों सनकादिक ,चौदह मुनि मुझसे ही प्रकट हुए है। जो मनुष्य मुझ परमात्मा की इस विभूति और योगमाया को तत्व से जान लेता है ,वह अविचल भक्ति योग युक्त हो जाता है। बुद्धिमान भक्त यह जानकार मेरा भजन करते है कि  मैं  ही इस समस्त सृष्टि की उत्पत्ति और विकास का कारण हूँ। ऐसे  भक्तों को मैं  ब्रह्म ज्ञान और विवेक प्रदान करता हूँ तथा उनके अज्ञानजनित अंधकार को तत्व ज्ञान रुपी प्रकाश द्वारा नष्ट कर देता हूँ। 

अर्जुन  द्वारा यह पूछने पर कि मैं  किन्-किन्   भावों द्वारा आपका चिंतन करूँ ? ब्रह्म  ज्ञान का वास्तविक स्वरुप आपके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं जनता। आप मुझे योग शक्ति और विभूतियों के बारे में विस्तार से समझाए। 

इस पर भगवान् कहते है कि समस्त प्राणियों के अंतःकरण में स्तिथ आत्मा मैं  ही हूँ तथा समस्त भूतों का आदि ,मध्य और अंत भी मैं   हूँ। विष्णु ,सूर्य ,मरीचि ,चन्द्रमा ,सामवेद ,इन्द्र  मन ,चेतना ,शंकर ,कुबेर ,अग्नि ,सुमेरु पर्वत ,बृहस्पति ,स्कन्द ,समुंद्र ,भृगु ,ओंकार ,जप-यज्ञ ,हिमालय ,पीपल ,नारद ,चित्र-रथ ,कपिल मुनि ,उच्चै ,श्रवा नमक घोडा ,ऐरावत ,राजा ,ब्रज  ,कामधेनु ,कामदेव ,वासुकि ,शेषनाग ,वरुण ,अर्यमा ,यमराज प्रह्लाद समय ,सिंह ,गरुड़ ,वायु ,राम ,मगर ,गंगा ,सब मैं  ही हूँ। 

भगवान् कहते है कि  सबका नाश करने वाली मृत्यु और भविष्य में होने वाली उत्पत्ति का कारण  भी मैं  ही हूँ। कीर्ति ,श्री ,वाणी ,स्मृति ,मेधा ,धृति ,और क्षमा की अधिष्ठात्रियां माने  जानेवाली सात देवियाँ भी मैं  ही हूँ । 
सामवेद के मन्त्रों में बृहत्साम ,वैदिक छन्दों में गायत्री छन्द ,महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओ में वसंत ऋतु भी मैं ही हूँ। 

अंत में भगवान् कहते है कि  मैंने जिन विभूतियों का वर्णन किया है ,यह तो संक्षिप्त है ,मेरी दिव्य विभूतियाँ असीम है। जो भी वस्तु ,विभूति ,कांति ,और शक्ति युक्त है ,वह मेरे तेज से ही उत्पन्न है। मैं  अपनी योग माया के एक अंश से ही समस्त सृष्टि को धारण कर स्तिथ रहता हूँ।  
दसवां  अध्याय समाप्त 
ग्यारहवां अध्याय अगले अंक में प्रकाश्य 
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जय श्री कृष्णा …… राधे- राधे 

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