Hindi Hindustani
spritual

geeta adhyay saar-1

June 22, 2016
Spread the love

geeta adhyay saar-1

Hindi Hindustani

geeta adhyay saar-1

geeta adhyay saar-1 प्रथम अध्याय

Hindi Hindustani
।।.ऊ श्रीहरि।।

 

प्रथम अध्याय -इस अध्याय में कुल ४७ श्लोक है।

 

इस अध्याय को अर्जुन विषाद योग कहा गया है।

इस अध्याय में कौरव और पाण्डव सेना के प्रमुख-प्रमुख योद्धाओं के नामों ,शङ्खनादों,
अर्जुन द्वारा कायरता युक्त वचन तथा संजय द्वारा शोक आविष्ट अर्जुन की मनोदशा का वर्णन किया गया है।  

पूर्व दीप्ति -बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष के  अज्ञात वास की शर्त  पूर्ण कर पाण्डव हस्तिनापुर पहुँचे। कौरवों से अपने हिस्से का राज्य माँगा ,किन्तु दुर्योधन ने सुई की नोक के बराबर भी भूमि देने से इंकार कर दिया। तब अधिकार प्राप्ति के लिए युद्ध ही अनिवार्य विकल्प रह गया। कुरूक्षेत्र में दोनों ओर की सेनाएं आमने-सामने आ गयी।
Hindi Hindustaniउधर हस्तिनापुर में महर्षि व्यास ने जन्मांध धृष्टराष्ट्र  के सामने  दिव्य -दृष्टि द्वारा कुरूक्षेत्र में हो रहे युद्ध देखने का प्रस्ताव  रखा ,किन्तु धृष्टराष्ट्र ने असमर्थता प्रकट करते हुए कहा कि मैं जीवन के अंत समय में अपने कुल का नाश होते हुए नहीं देख सकता  ,लेकिन युद्ध के मैदान क्या कुछ हो रहा है ,यह जरूर जानना चाहता हूँ। इस पर  महर्षि व्यास ने सञ्जय को दिव्य-दृष्टि प्रदान कर धृष्टराष्ट्र को युद्ध की स्तिथि बताने का कार्य-भार सौपा। सञ्जय  ने पहले तो दोनों ओर की सेना और सेना-नायकों के बारे में बतलाया और फिर दोनों ओर से किये जा रहे शंख-नाद का वर्णन सुनाया। उसके बाद आगे का वर्णन करते हुए कहा कि –



Hindi Hindustaniअर्जुन ने सारथी बने भगवान श्री कृष्ण से अपने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य ले जाने के लिए कहा। तदनुसार भगवान श्री कृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य ले  जा कर खड़ा कर दिया। अपने रक्त -सम्बन्धियों को अपने ही विरूद्ध युद्ध के मैदान में  खड़ा देखकर अर्जुन करुणा और विषाद से भरकर कर्तव्य-विमुख हो गए। अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि  अपने रक्त -सम्बन्धियों के विरूद्ध हथियार उठाने में,मैं स्वयं को  असमर्थ अनुभव कर रहा हूँ। राज्य प्राप्ति के लिए  स्वजनों का वध करना कदापि उचित नहीं  जान पड़ता। स्वजनों का वधकर प्राप्त होने वाली विजय,राज्य,और सुख मुझे स्वीकार्य नहीं। स्वजनों का  वध कर यदि मुझे तीनों लोकों का राज्य प्राप्त हो,तो भी मैं  स्वजनों का वध नहीं करूंगा। धृतराष्ट्र के आततायी पुत्रों का वध करने पर पाप ही लगेगा। हमें इस पाप से निवृति का उपाय सोचना चाहिए ,ना कि  युद्ध करना चाहिए। 
आगे अर्जुन युद्ध से उत्पन्न दोषों का वर्णन करते हुए कहते है कि  कुल के नाश से तो कुल का सनातन धर्म नष्ट हो जायेगा। धर्म नष्ट होने पर पाप कुल को दबा देगा।पाप बढ़ने से स्त्रियाँ दूषित हो जाएगी ,इससे वर्ण-संकर उत्पन्न हो जायेगा। वर्ण -संकर कुल  को नरक में ले जायेगा,क्योकि वर्ण -संकर द्वारा  श्राद्ध और तर्पण न मिलाने से पितर  अपने स्थान से नीचे  गिर जाएंगे। जिनके कुल धर्म नष्ट हो जाते है ,उन्हें दीर्घावधि तक नरक भोगना पड़ता है। युद्ध का निर्णय कर हम पाप का निश्चय कर बैठे है और स्वजनों का नाश करने को तैयार हो 
गए है। कौरव मेरा ही वध कर दे ,यह ज्यादा श्रेयस्कर होगा। 
ऐसा कह कर  अर्जुन ने धनुष -बाण त्याग दिए और रथ के पीछे वाले भाग में बैठ गए। 
ओउम तत्सदिति श्री मद् भगवद् गीता सूपनिषत्सु  बरमविद्यां योगशास्त्रे 
श्री कृष्णार्जुन संवादे अर्जुन विषाद योगो नाम प्रथमोध्याय :

 

क्रमशः /cont. 
दूसरा अध्याय अगली पोस्ट में 
आत्मिक निवेदन :-इस POST को अपने स्वजनों से  अवश्य SHARE  करे 

You Might Also Like...

No Comments

    Leave a Reply

    error: Content is protected !!
    error: Alert: Content is protected !!