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gama -roostame hind ,roostame-zamaana

May 22, 2022
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Hindi Hindustani

दुनिया में युगों से मनुष्य जन्म लेता और मरता आ रहा है .कितने ही लोग आये और चले गए .लेकिन कुछ शख्सियत ऐसी भी हुई है जो आज भले ही इस दुनिया में न हो किन्तु प्रसंगवश उनका नाम याद हो आता है .

दुनिया उन्ही लोगों को याद करती है जो साधारण जीवन को असाधारण तरीकें से जीकर जाते है .वह अपने क्षेत्र में अद्वितीय रहे .वह क्षेत्र चाहे साहित्य का रहा हो या राजनीति का ,बात चाहे मानवता अथवा परमार्थ के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देनेवाले की हो  या युद्ध के मैदान में वीरता दिखलानेवालों की या फिर खेल और कला की ही क्यों न हो .अपने अपने क्षेत्र में अविलक्षण प्रतिभा रखनेवालों को उनके नाम से आज भी याद किया जाता है .

23 मई के दिन क्या महत्वपूर्ण हुआ था .इस पर बात चलने पर कुश्ती के खेल के अपराजित नायक गामा पहलवान world champion wrestler – gama का नाम स्मरण हो आता है .

वर्तमान युवा पीढ़ी और बच्चें देशी –विदेशी क्रिकेट खिलाडियों और फिल्म अभिनेताओं के बारे में तो खूब जानते होंगे किन्तु अपने समय के सबसे लोकप्रिय खेल कुश्ती और कुश्ती लड़नेवाले पहलवानों से वह अपरिचित ही होंगे या फिर थोडा बहुत ही जानते होंगे .

दुनिया जिसे गामा पहलवान के नाम से जानती है उनका वास्तविक नाम था – ग़ुलाम मुहम्मद बख्श और उनके पिता का नाम था  – मौहम्मद अज़ीज़ बख्श . ग़ुलाम मुहम्मद बख्श यानी कि गामा का जन्म 22 मई 1878 ई० को अमृतसर के जब्बोवाल गाँव के एक कश्मीरी गुर्जर परिवार में हुआ बताया जाता है . ग़ुलाम मुहम्मद की आयु जब  6 वर्ष की थी ,उनके पिता  की मृत्यु हो गयी .

पिता की मृत्यु के बाद पालन पोषण किया नाना नुन ने . नाना नून की मृत्यु के बाद मामा इड़ा पहलवान ने ग़ुलाम मुहम्मद बख्श का न सिर्फ पालन किया बल्कि  पहलवानी भी सिखलाई

10 वर्ष की उम्र में ही ग़ुलाम मुहम्मद बख्श पहलवानी शुरू कर दी थी।

जोधपुर के राजा जिन्हें कुश्ती देखने का अत्यधिक शौक था .राजा साहब ने सन 1888 में देश के नामी –गिरामी पहलवानों को आमंत्रित किया .

जोधपुर में आमंत्रित भारत के बड़े-बड़े नामी-गिरामी पहलवान जिनकी संख्या लगभग 450 थी .इन्ही पहलवानों के बीच उपस्थित था ग़ुलाम मुहम्मद बख्श .

ग़ुलाम मुहम्मद बख्श ने अपने  कला कौशल से राजासाहब को प्रभावित किया . ग़ुलाम मुहम्मद बख्श की गिनती लगभग 450 पहलवानों में प्रथम 15 श्रेष्ठ पहलवानों में की गई .यही नहीं जोधपुर राजा ने गामा को विजेता भी घोषित किया .

बाद में दतिया के महाराज ने राज्याश्रय दिया .

पहला मुकाबला 17 वर्ष की आयु में 1895 में तत्कालीन  नामी पहलवान रहीम बख्श सुल्तानी वाला से हुआ .इस मुकाबले में ग़ुलाम मुहम्मद बख्श नामी पहलवान रहीम बख्श सुल्तानी को पराजित नहीं पाया लेकिन उससे हाराभी नहीं .यह मुकाबला बिना हार –जीत के फैसले के समाप्त हो गया .

जिस रहीम बख्श सुल्तानी की देश भर में तूती बोलती थी .उससे पराजित न होना भी ग़ुलाम मुहम्मद बख्श के लिए जीत जितना ही साबित हुआ . ग़ुलाम मुहम्मद बख्श का नाम नक्षत्र की तरह चमकने लगा .कल का ग़ुलाम मुहम्मद बख्श अब गामा के नाम से पहचाना जाने लगा .

1898 से लेकर 1907 के बीच दतिया के गुलाम मोहिउद्दीन, भोपाल के प्रताप सिंह, इंदौर के अली बाबा सेन और मुल्तान के हसन बक्श जैसे नामी पहलवानों को पराजित किया.

सन 1910 रहीम बख्श सुल्तानीवाला को छोड़कर भारत के लगभग सभी नामी-गिरामी पहलवानों को पराजित कर भारतीय पहलवानों में  सिरमौर बन गया .

जैसे एक राजा अपने साम्राज्य का विस्तार कर चक्रवर्ती राजा बनाने की इच्छा रखता है वैसे ही गामा ने विश्व चैंपियन बननेका  लक्ष्य रखा .

 भाई इमाम बख्श के साथ लंदन गया .लेकिन लंदन में होने वाले टूर्नामेंट में छोटे कद के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया .लेकिन  आत्मविश्वास  से लबरेज गामा न हताश हुआ न निराश . उसने दुनिया के जाने-माने पहलवान फ्रैंक गॉच और स्टैनिस्लॉस ज़ैविस्को को चुनौती  दे डाली .  

अमेरिकी पहलवान बेंजामिन रोलर द्वारा चुनौती स्वीकार की गई लेकिन गामा ने अपने दावे को प्रमाणित करते हुए अमेरिकी पहलवान बेंजामिन रोलर को पराजित कर दिखाया .इसके बाद उसने 12 अन्य पहलवानों को पराजित कर  अपने नाम का लोहा मनवाया .

स्टैनिस्लॉस ज़ैविस्को ,गामा से द्वंद्व के लिए तैयार हुआ किन्तु निर्धारित तिथि को दंगल में उपस्थित नहीं हुआ .गामा पहलवान को विजेता घोषित कर दिया गया  और  रुस्तम-ए-ज़माना का  खिताब अपने नाम कर लिया .

अमेरिकी और यूरोपीय पहलवानों के विरुद्ध द्वंद्वों की विजय यात्रा ज़ारी रखते हुए गामा  अमेरिकी पहलवान बेंजामिन रोलर और फ्रैंक गॉच, ,स्विट्जरलैंड के मॉरिस डेरियस, जॉन लेम, जेस पीटरसन,जापान के टैरो मियाके , फ्रांस के मॉरिस देरिज़, रूस के  ‘जॉर्ज हॅकेन्शमित’ को

परास्त करता चला गया .

विदेश से लौटने के बाद गामा और रहीम बक्श सुल्तानी फिर से भिड़े . रहीम बक्श सुल्तानी परास्त हुआ और गामा रुस्तम-ए-हिंद बन गया .

सन 1940 को हैदराबाद के निज़ाम ने दंगल का आयोजन किया .

इस बार मुकाबला था पहलवान बलराम हीरामण सिंह यादव के साथ. लेकिन पहलवान बलराम हीरामण सिंह यादव भी अपनी स्थापित छवि के अनुसार गामा को पराजित नहीं करा सका .

गामा अगर जीता नहीं तो हारा भी नहीं .पहलवान बलराम हीरामण सिंह यादव के साथ हुआ दंगल का फैसला अनिर्णित रहा .लेकिन गामा ने पहलवान बलराम हीरामण सिंह यादव को छोड़कर दंगल में शामिल सभी पहलवानों को पराजित कर अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखा .

1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद  गामा पाकिस्तान चला गया .और 1952 में उसने  संन्यास ले लिया .

गामा के जीवन का अंतिम समय कठिनाइयों में व्यतीत हुआ .वह व्याधि और आर्थिक परेशानी से घिर गया .बताया जाता है कि उस समय के  उद्यमी  घनश्याम दास बिड़ला और बड़ौदा के राजा ने भी उनकी आर्थिक  मदद की . बाद में पाकिस्तान सरकार ने भी इलाज का खर्च वहन  किया .

23 मई 1960 को पाकिस्तान के लाहौर शहर में मृत्यु हो गई.

गामा भले ही इस दुनिया से चला गया किन्तु अपने पीछे कुछ करने का जूनून रखने वालों के लिए प्रेरणा छोड़ गया .

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