Florence Nightingale
फ्लोरेंस नाईटटिंगल
पहली स्थिति-
यदि हम से कोई पिता का नाम पूछे हम बिना समय गवाए तुरंत पिता का नाम बता देंगे ,फिर दादाजी का नाम पूछा जाय सहजता से पता देंगे फिर परदादा का नाम पूछा तो हम थोड़ी कठिनाई के बाद हो सकता अपने परदादा का नाम भी बता दे किन्तु जब कोई परदादा के पिता ,उनके दादा और परदादा के बारे में पूछने लगे तो हम अगले बगले- झांकने लगते है .
दूसरी स्थिति
यदि हमसे रानी लक्ष्मी बाई ,महात्मा गाँधी , लाल बहादुर शास्त्री ,सरदार वल्लभ भाई पटेल,जवाहर लाल नेहरु ,सुभाष चंद्र बोस चंद्रशेखर आज़ाद – भगत सिंह बालगंगाधर तिलक ,रवीन्द्र नाथ टैगोर,ए.पी.जे .कलाम के बारे में पूछा जाये तो हम तुरंत उनके बारे में बता देंगे .
प्रश्न-
क्या हम में से किसी ने कभी इस बारे में सोचा है ? क्यों हमें हमारे उन पूर्वजों के बारे में ज्ञात नहीं जिनके साथ हमारा खून का सम्बन्ध है और क्यों हमें उन लोगों के बारे में ज्ञात है जिनके साथ हमारा खून का रिश्ता तो क्या दूर –दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं ?
निष्कर्ष –जो लोग अपने और अपनों के लिए जी कर इस दुनिया से चले जाते है , दुनिया उन्हें जानती तक नहीं कि वें कब दुनिया में और चले गए . दुनिया उन्हें याद रखती है जो अपने से ज्यादा दूसरों के लिए जीते है .
आज हम ऐसी शख्सियत की बात करेंगे –जिसने अपना जीवन मानव सेवा की लिए समर्पित कर दिया .वह नाम – फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल (Florence Nightingale)का नाइटिंगेल जो “द लेडी विद द लैंप” के नाम जानी जाती है ,जिसने समृद्ध और उच्चवर्गीय परिवार में जन्म लेकर भी सेवा को अपने जीवन लक्ष्य बनाया . फ़्लोरेन्स को जन्म से ही जिस प्रकार कीआर्थिक रूप से समृद्ध पारिवारिक पृष्ठभूमि प्राप्त हुई थी ,वह चाहती तो अपना जीवन ऐश्वर्यपूर्ण ढंग से व्यतीत कर सकती थी .किन्तु उसने साध्वियों की तरह विलासता पूर्ण जीवन का त्याग कर मानव मात्र की सेवा को ही अपने जीवन ध्येय बना लिया .
1837 में फ्लोरेंस अपने माता-पिता: विलियम नाइटिंगेल, फ्रांसिस नाइटिंगेल और बहन पार्थेनोप ( Frances Parthenope Verney) के यूरोप की यात्रा पर गई.इस यात्रा के दौरान वह जिस भी देश में भी गई उस देश और शहर की जनसँख्या और हास्पिटल के आंकड़े संगृहीत करती . इस यात्रा के बाद फ्लोरेंस ने अपने परिवार को बतलाया कि ईश्वर ने उसे मानवता की सेवा का आदेश दिया है,
1844 में फ्लोरेंस ने निश्चय किया कि वह मानव सेवा के लिए नर्सिंग को ही कर्म क्षेत्र बनायेंगी
इसके लिए वह सैलिसबरी जाकर नर्सिंग की ट्रेनिंग लेना चाहती थी . लेकिन माता -पिता ने इसकी अनुमति नहीं दी .
लेकिन फ्लोरेंस माता-पिता को सहमत करने का प्रयास कराती रही . इसी मध्य 1849 में आये विवाह प्रस्ताव को भी अस्वीकार को भी फ्लोरेंस कर दिया .
माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध फ्लोरेंस लंदन, रोम और पेरिस के अस्पतालों के दौरे करती रही .
साल 1850 में फ्लोरेंस के माता-पिता को फ्लोरेंस के दृढ निश्चय का अनुभव हो चुका था कि उनकी बेटी किसी भी तरह विवाह के लिए सहमत नहीं होगी .
माता-पिता को फ्लोरेंस के निर्णय के समक्ष झुकाना पड़ा और उन्होंने फ्लोरेंस को नर्सिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए जर्मनी जाने की अनुमति दे दी.फ्लोरेंस के जर्मनी जाने के बाद बहन पार्थेनोप को 1852 में नर्वस ब्रेकडाउन हो गया .फ्लोरेंस को अपनी ट्रेनिंग छोड़कर वापस इंग्लैंड आना पड़ा.
1853में मानव सेवा का उसका स्वप्न साकार हुआ जब उसे लंदन के हार्ले स्ट्रीट हॉस्पिटल में नर्सिंग की प्रमुख बनने का अवसर मिला
1853 में क्रीमिया का युद्ध शुरू हो गया . समाचारपत्रों में इंगलैंड के सैनिक हॉस्पिटल की अव्यवस्था के समाचार प्रकाशित हो रहे थे ब्रिटेन के मंत्री सिडनी हर्बर्ट ने फ्लोरेंस 38 नर्सों के साथ तुर्की के स्कुतरी स्थित मिलिट्री हॉस्पिटल जाने को कहा.
तुर्की के बराक हॉस्पिटल पहुँच कर फ्लोरेंस ने हॉस्पिटल की दुर्दशा को अपनी आँखों से देखा .
फ्लोरेंस ने तुरंत ही अपनी साथी नर्सों के साथ मिलकर गन्दगी को हटाकर हॉस्पिटल को स्वच्छ करवाया .
इसके बाद फ्लोरेंस ने सभी सैनिकों के उचित आहार और वस्त्रों की व्यवस्था की .फ्लोरेंस के सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे थे क्योकि मरनेवाले सैनिकों की संख्या कम नहीं हो रही थी
1855 में ब्रिटिश सरकार ने एक सैनिटरी कमीशन बनाकर स्कुतारी के हॉस्पिटल की स्थिति का निरिक्षण करने के लिए भेजा .
कमीशन ने पाया कि बराक हॉस्पिटल एक सीवर के ऊपर बना था. जिसके कारण मरीज़ गंदा पानी पी रहे थे.तुरंत
साफ़-सफ़ाई के आदेश दिए गए . सैनिकों की मौत की संख्या घटने लगी .
फ्लोरेंस नाइटिंगेल हाथ में लैंप लेकर रात में घायल मरीज़ों की सेवा करती .
फ्लोरेंस के चित्र समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए .इन चित्रों ने फ्लोरेंसे को चर्चित बना दिया .
फ्लोरेंसे के प्रयासों से स्कुतारी के बराक हॉस्पिटल में सैनिकों की स्थिति में सुधर होंने लगा .
फ्लोरेंसे के प्रयासों की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी .
फ्लोरेंस ‘द लेडी विद द लैम्प’ के नाम से पहचानी जाने लगी .
क्रीमिया युद्ध के बाद फ्लोरेंस ब्रिटेन वापस आई, और अपनी पहचान छुपाकर मिस स्मिथ के छद्म नाम से रहने लगीं.
फ्लोरेंस ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया से मिली .और सैनिकों की दुर्दशा तथाउनकी मौत के कारणों से अवगत कराया
फ्लोरेंस ने महारानी विक्टोरिया से सेना के स्वास्थ्य के निरिक्षण के लिए एक जांच आयोग बनाए का सुझाव दिया .फ्लोरेंस के सुझाव पर महारानी विक्टोरिया ने विलियम फार और जॉन सदरलैंड को उसकी सहायता के लिए लगाया.
जांच शुरू हुई .जांच की रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि कि मारे गए 18 हज़ार सैनिकों में से 16 हज़ारसैनिकों की मौत युद्ध में घायल होने के कारण नहीं, बल्कि गंदगी और संक्रामक बीमारियों से हुई थी.यदि हॉस्पिटल में साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था होती तो सैनिकों के प्राण बचाये जा सकते थे .
1857 में जब रॉयल सैनिटरी कमीशन की रिपोर्ट तैयार हुई, फ्लोरेंस जानती थी कि आंकड़ों द्वारा लोग उसकी बात नहीं समझ पाएंगे.तब फ्लोरेंस ने ‘रोज़ डायग्राम’ के माध्यम से लोगों को समझाया कि जब सैनिटरी कमीशन ने काम करना शुरू किया, तो किस तरह सैनिकों की मौत की संख्या में कमी आई .
समाचार पत्रों ने फ्लोरेंस के मंतव्य को प्रकाशित किया .इन सब बैटन का यह प्रभाव हुआ कि ब्रिटिश सेना में मेडिकल, सैनिटरी साइंस और सांख्यिकी के विभाग बनाए गए.
1859 में फ्लोरेंस नाइटिंगेल की पुस्तक , ‘नोट्स ऑन नर्सिंग ऐंड नोट्स ऑन हॉस्पिटल्स’ प्रकाशित हुई .
फ्लोरेंस के नाम पर ब्रिटेन में नर्सिंग स्कूल की स्थापना हुई.नर्सिंग से जुड़े लोगों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा .
हॉस्पिटल में सफाई के महत्त्व को समझा जाने लगा .
दूसरों की ज़िन्दगी बचाने के लिये लड़ रही फ्लोरेंस स्वयं गंभीर रूप से बीमार हो गयी लेकिन अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए बीमारी की स्थिति में भी अपने कर्म में जुटी रही ,
1870 तक फ्लोरेंस के प्रयासों का प्रभाव परिलक्षित होने लगा था .
ब्रिटेन ने नेशनल हेल्थ सर्विस की दिशा में आगे क़दम बढ़ाया.
फ्लोरेंस का उद्देश्य अधिकाधिक लोगों की प्राण रक्षा करना और उन्हें स्वस्थ्य वातावरण प्रदान करना था.फ्लोरेंस चिकित्सकों को यह बात समझाने में सफल रही कि कीटाणुओं से रोगी की हालत गंभीर हो जाती है और उनकी मृत्यु का कारण बनती है ..
फ्लोरेंस नाइटिंगेल भारत में भी ब्रिटिश सैनिकों की सेहत को बेहतर करने के मिशन से जुड़ी हुई थी.
करुणा ,दया और उदारता की यह प्रतिमूर्ति 90 वर्ष की आयु में 1910 में यह संसार छोड़कर चली गई.लेकिन अपने पीछे प्रेरणा की अमिट लकीर खींच गई .
फ्लोरेंस जब जीवित रही ,अपने उद्देश्य के लिए जीती रही .
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फ्लोरेंस नाईटटिंगल का जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है – जीवन को एक उद्देश्य के लिए जिए .जब तक जिए ,एक उद्देश्य के लिए जिए
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