विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष
२२ ,अप्रैल
ईश्वर ने मनुष्य को अमूल्य निधि अर्थात स्वर्गिक सुख देनेवाली पृथ्वी का प्राणी बनाया । पृथ्वी
पर मानव रूप में जन्म लेना हम मनुष्यों के लिए ईश्वर प्रदत्त उपहार से ज्यादा वरदान है। पृथ्वी माता स्वरूपा है।इसी की कोख से हम जन्मे है ,इसी धरती का अमृत तुल्य जल पिया है ,इसी के आँचल में खेल कर बचपन बिताया है ,इसी का अन्न खाकर पोषित हुए है। हमने अपने नेत्रों से चाहे ईश्वर के दर्शन न किये हो ,किन्तु पृथ्वी के प्राकृतिक रूपों में ईश्वर के रूप को देखा जा सकता है।
फूलों के प्रश्वास से फैली सुगंध
श्यामल मेघों के मध्य से प्रकाशित दामिनी
पर्वतों और चटटानों के मध्य से प्रवाहित होते झरनों के कल-कल का संगीत
ईश्वर ने तो पृथ्वी को स्वर्ग जितना सुन्दर बना कर दिया था किन्तु हम मनुष्यों ने इसे नर्क बना दिया। अपशिष्ट पथार्थों का जल में विलय करपृथ्वी का जल ज़हरीला बना दिया ,धुँए से हवा को ज़हरीला बना दिया ,रासायनिक पदार्थों से भोजन को ज़हरीला बना लिया ,मनुष्य स्वयं तो ज़हरीला खा रहा है ,पी रहा है ,ज़हरीली साँस ले रहा है ,साथ ही उसने निर्दोष पशु -पक्षी और जलीय जीव -जंतुओं का जीवन भी विषाक्त बना दिया है। हेनरी डेविड थोरियू ने कितना सटीक कहा है -ईश्वर को धन्यवाद दो कि उसने मनुष्य को पंख नहीं दिए अन्यथा वह आसमान को भी बरबाद कर देता।
आज दुनिया के सामने कई सारे मुद्दे है ,जिनमे से कई ऐसे गंभीर मुद्दे है ,जिन पर सारी दुनिया आँखे मूंदी बैठी है।ऐसे मुद्दों में से एक है -पृथ्वी का क्षरण।पृथ्वी के संरक्षण के प्रति यदि समय रहते सावधान नहीं हुए तो हमें नहीं ,तो हमारी आने वाली पीढ़ियों को बहुत गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कीपृथ्वी मानव की क्रूरता का शिकार हो रही है। विकास के नाम पर स्थापित किया जा रहे उद्योग ,रेल और सडकों के लिए काटे जाने वाले जंगल ,जल और बिजली की आपूर्ति के लिए बनाये जा रहे बाँध पृथ्वीका सौन्दर्य नष्ट कर रहे है। जहाँ कभी खेत होते थे आज वहां आवासीय कॉलोनियाँ बन गयी है। जंगलों के पेड़-पौधों का स्थान शहरों ने ले लिया है। वन्य पशु-पक्षियों के आवास पर मनुष्य ने अतिक्रमण कर लिया। खनिज पथार्थों की पूर्ति के लिए धरती को पाताल तक खोद डाला। ना मालूम कितना दोहन किया जा रहा है प्रकृति का और ना मालूम कितना दोहन किया जाना बाकी है ? हवा,पानी ,मिटटी जो कभी मानव के लिए जीवनदायिनी हुआ करती थी ,मनुष्य ने अपने निजी स्वार्थ के लिए उसे भी विषाक्त बना दिया।मनुष्य ने स्वयं अपने हाथों से हवा,पानी ,मिटटी सब में ज़हर घोल दिया। साँस ले रहे ज़हरीली ,पानी पी रहे है ज़हरीला,मिटटी से पैदा हुआ अन्न खा रहे है ज़हरीला।
इस स्तिथि के लिए अगर अंगुली उठाई जाये तो वह अंगकी खुद हम मनुष्य की ओर ही उठेगी।पृथ्वी का हमने दोहन नहीं शोषण करना शुरू कर दिया। हमने पृथ्वी का इस हद तक शोषण किया ,इतना शोषण किया कि पृथ्वी ने अपने कुपित होने का संकेत दे दिया है। वार्मिंग ,अतिवृष्टि, अनावृष्टि ,सुनामी ,भूकम्प ,भू -स्खलन ,ज्वालामुखी विस्फोट होना ग्रीन हाउस प्रभाव से जलवायु का अत्यधिक गर्म होना ,ऋतु चक्र का बिगड़ना प्रकृति के मानव से गुस्सा होने का ही इशारा है।
सुजलाम सुफलाम् शस्य श्यामलाम ,यह पृथ्वी तो ऐसी ही थी। पृथ्वी मनुष्य की हर ज़रुरत को पूरी कर रही थी ,किन्तु मनुष्य की थोड़ा है ,थोड़े की और ज़रुरत है के प्रलोभन में मनुष्य ने पृथ्वी का दोहन से ज्यादा शोषण करना प्रारम्भ कर दिया। विकास के नाम पर जंगल के जंगल काट दिए। उद्योगों से निकलनेवाला धुआँ ,अपशिष्ट पदार्थ ,शहरीय कचरा। अनुपचारित कचरा ,खदानों से निकलनेवाला मलबा ,कीटनाशक रसायनकों का प्रयोग ,तैल रिसाव के कारण कई जीव प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर है।मानवजाति का यह असन्तुलित
विकास प्राकृतिक संसाधनों को निरंतर नष्ट कर रहा है ,यह जानते हुए भी कि इन प्राकृतिक संसाधनों का पुनर्निर्माण नहीं हो सकता।
लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण वर्षा सामान्य से भी कम हो रही है। जल स्तर घट रहा है। हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ रही है।जलवायु में बदलाव आ गया है। उत्तरी ध्रुव पर ज़मीं बर्फ पिघल रही है ,सूर्य की परा बैगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकनेवाली ओज़ोन परत में छेद हो गया है। विनाशकारी तूफ़ान ,सुनामी भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाएं प्रकृति के कुपित होने का ही संकेत है।
वैज्ञानिकों द्वारा बार-बार सावचेत करने के उपरांत भी पॉलीथिन का प्रयोग कम नहीं हुआ है। पॉलीथिन जो एक अमर राक्षस है ,जिसे जलाकर ,ज़मीन में गाढ़कर अथवा समुद्र में फैंककर भी नष्ट नहीं किया जा सकता। अकेले भारत में ५०० मीट्रिक टन पॉलीथिन का उत्पादन हो रहा है ,उसका अंश मात्र भी रिसाइकिलिंग नहीं हो रहा है। पॉलीथिन के कारण भूमि की उर्वरक क्षमता घटती जा रही है।
प्रकृति के साथ की जा रही छेड़-छाड़ के कारण पृथ्वी का तापमान निरंतर बढ़ता जा रहा है। पिछले १०० वर्षों में
पृथ्वी के तापमान में ० . १८ डिग्री सेन्टीग्रेड की वृद्धि हो चुकी है। वैज्ञानिकों के अनुसार २१ वी सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान १.१ -६ . ४ डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जायेगा।
पृथ्वी में तापमान को संतुलित करनेवाले रासायनिक यौगिक होते है ,जो सूर्य से आनेवाली हानिकारक किरणों को अवशोषित कर लेती है,जिससे तापमान स्थिर बना रहता है ,क्योकि ग्रीन हाउस गैस की मात्रा स्थिर रहने पर सूर्य से आनेवाली किरणों और पृथ्वी से वापस अन्तरिक्ष में पहुँचनेवाली किरणों में संतुलन बना रहता है जो कि निरंतर घटता जा रहा है।
१९७० से विश्व पृथ्वी दिवस मनाये जाने की शुरुआत हुई। २२ अप्रैल को ही पृथ्वी दिवस मनाये जाने का कारण यह था कि पृथ्वी संरक्षण के लिए लोगो में जागृति लाने के लिए प्रसिद्ध अभिनेता एड्डी अलबर्ट की महत्वपूर्ण भूमिका रही ,इसलिए उनके जन्मदिन २२ अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाये जाने की शुरुआत हुई,यह प्रामाणिक तो नहीं ,किन्तु ऐसा माना जाता है । कुछ लोग इसका अधिकारिक श्रेय अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन और डेनिस हायेस को है । श्रेय चाहे जिसे दिया जाये किन्तु महत्त्व किसी का कम नहीं ,तीनों ही साधुवाद के पात्र है ,जिन्होंने अपने -अपने तरीके से पृथ्वी को चिंता और चिन्तन का विश्वव्यापी विषय बनाया …. जागरूगता पैदा की।
लगातार….. लगातार…. निरंतर…. निरंतर … प्रकृति का शोषण बढ़ रहा है। परिणाम सामने है -पृथवी का तापमान बढ़ रहा है ,ग्लेशियर पिघल रहा है ,सामुद्रिक तटों का जल-स्तर बढ़ रहा है। यदि इस इशारे को मनुष्य ने समय रहते नहीं समझा तो ,यह भी तय है कि प्रकृति असंतुलित होकर विनाशकारी लीलाओ का ऐसा भीषण ताण्डव करेगी कि जीवनदायी प्रकृति ही मनुष्य की जानलेवा बन जाएगी।
इससे पहले कि प्रकृति अपना रूद्र रूप दिखलाये वैश्विक समुदाय को सावचेत हो जाना चाहिए। शासकीय प्रयास से बात नहीं बनेगी। केवल इने -गिने -चुने स्वयं सेवी संस्थाओ ,प्रकृति प्रेमियों ,पर्यावरणविदों के द्वारा आवाज़ उठाने से सब कुछ ठीक नहीं हो होगा ,जब तक कि पृथ्वी संरक्षण को जन -आंदोलन नहीं बनाया जायेगा। जन -जन को पृथ्वी संरक्षण अभियान में शामिल होना पड़ेगा।
पृथ्वी संरक्षण को जन -जन अपना नैतिक दायित्व समझे ,अपना धर्म माने ,ईश्वरीय कार्य माने ,परोपकारी -पुनीत कर्म माने ऐसी भावना से पूरित होकर ही पृथ्वी का संरक्षण किया जा सकता है।इस पृथ्वी पर सिर्फ हमारा ही नहीं बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी का भी अधिकार है,पृथ्वी उनकी भी धरोहर है । और उनके अधिकार की वस्तु के साथ छेड़-छाड़ करना नैतिक अपराध है। हमारा दायित्व है कि हमअपनी भावी पीढ़ी को सुरक्षित व स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण सौपकर जाये।
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