Hindi Hindustani
Important Days

chhatrapati shivaji

February 18, 2017
Spread the love

chhatrapati shivaji

Hindi Hindustani

छत्रपति शिवाजी महाराज के अवतरण दिवस पर

विशेष

छत्रपति शिवाजी महाराज

Hindi Hindustani

 

छत्रपति शिवाजी महाराज के अवतरण दिवस पर विशेष

छत्रपति  शिवाजी  इतिहास  के पन्ने  में  छपा  एक ऐसा   नाम जिनका  जीवन  चरित  पढ़कर अथवा सुनकर  देश प्रेम की  भावना हिलोरे  लेने लगती है , शिथिल  स्नायुओ  में  स्पंदन  शक्ति  दौड़  जाती  है  , एक ऐसा योद्धा जो  मलेछ  आधिपत्य  का दमन कर हिन्दू राष्ट्र  की स्थापना  का नायक  बना। शिवजी महाराज का अभ्युदय उस समय हुआ जब  विधर्मी शासक  धर्म और संस्कृति  का विनाश कर रहे थे। अधिकांश हिन्दू  शासक  अपने निजी  स्वार्थ  और विलासता  मे  डूबे  हुए  थे।
                      शिवाजी   महाराज  को पैतृक  राज्य  प्राप्त  न था , शिवा जी  महाराज की समस्त  उपलब्धियाँ  उनके शौर्य   की  उपार्जित  धरोहर  थी। जन्मजात  न धन सम्पदा  थी और  न सैन्य  शक्ति  , बुद्धि  और  भुजबल  से ही  शिवाजी  महाराज  ने वह  सब  हासिल  किया जिसकी तत्कालिक राष्ट्र और समय को आवश्यकता थी। उन्होंने अपने बूते पर ना सिर्फ उस समय के शक्तिशाली राज्यों से मुकाबला किया बल्कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना  भी की। इसी पराक्रमी ने आदिल शाह की नींद हराम की और औरंगजेब के दाँत खट्टे किये।तत्कालिक राजाओं के पास भुज बल तो था किन्तु शायद बुद्धि बल का अभाव था और इसी कारण वे शत्रुओं से पराजित होते रहे किन्तु शिवजी महाराज ने भुजबल के साथ साथ बुद्धि बल का भी प्रयोग किया। उन्होंने अवसर और परिस्तिथि को देखते हुए आमने -सामने के युद्ध की बजाय छापामार युद्ध कर शत्रु को नाकों चने चबवाए। शनै -शनै उन्होंने अपनी शक्ति को इतना बढ़ा लिया था शत्रु पक्ष की रात की नींद और दिन का चैन गायब हो गया था। छत्रपति शिवजी एक शासक से ज्यादा हिन्दू धर्म के रक्षक और विधर्मी शासकों के अरिहन्ता बन गए थे।

Hindi Hindustani

शिवजी महाराज का जन्म चुनार के करीब शिवनेरी  दुर्ग में हुआ था -वह दिन था -१९ फरवरी ,१६३० ,जिस माता ने अपनी कोख से वीर शिवजी को जन्म दिया ,उस माता का नाम था -जीजाबाई। जिसने न सिर्फ वीर पुत्र को जन्म दिया बल्कि वे संस्कार भी दिए जिसने शिवाजी को धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए भी तैयार किया। पिता शाहजी निज़ामशाही दरबार में मनसबदार थे। जीजाबाई के पिता लखूजी जादवराय अपनी पुत्री के इच्छा विरूद्ध विवाह के कारण  शाहजी से वैर भाव रखते थे और प्रतिशोध में अन्धे  होकर मुगलों से जा मिले थे। प्राण रक्षा के लिए शाहजी पत्नी जीजाबाई को लेकर माहुली का किला छोड़कर भाग निकले ,उस समय शिवाजी जीजाबाई की कोख में ही पल रहे थे। जीजाबाई के पिता लखूजी जादव को इस बात का पता चला तो उन्होंने शाहजी का पीछा किया। शाहजी अपने मित्र श्री निवास राव के पास आये जो उस समय चुनार किले के जागीरदार हुआ करते थे। शाहजी गर्भवती जीजाबाई को मित्र श्री निवास  राव के संरक्षण में छोड़कर चले गए। श्री निवास राव ने जीजाबाई को शिवनेरी दुर्ग भेज दिया। पीछा करते हुए जीजाबाई के पिता लखूजी जादव भी वहाँ  पहुँच गए। वे प्रतिशोध और क्रोध में अपना विवेक इतना खो चुके थे कि  वह यह भी भूल गए कि  जीजाबाई उनकी अपनी ही बेटी है। लोगों के समझाने पर क्रोध शांत हुआ। वह जीजाबाई को अपने साथ ले जाना चाहते थे किन्तु जीजाबाई ने साथ जाना स्वीकार नहीं किया । पिता लखूजी जादव लौट गए। कुछ समय पश्चात् जीजाबाई ने शिवाजी को जन्म दिया। शिवनेरी दुर्ग में ही शिवाजी का जन्म हुआ था ,इसलिए जीजाबाई ने दुर्ग की देवी शिवाई के नाम पर अपने पुत्र का नाम शिवा रख दिया। जीजाबाई शिवाजी की माता ही नहीं बल्कि उनकी गुरु भी थी।
उधर मुग़लों ने निज़ामशाही को परास्त कर दिया था और शाहजी से सन्धि कर ली थी । अहमदनगर मुगलों के अधिकार में चला गया। शाहजी को पूना और सूया की जागीर के साथ -साथ बीजापुर में मनसब मिल गया।

शाहजी ने पूना की जागीर का प्रबंध दादाजी कोणदेव को सौपकर जीजाबाई और शिवाजी को पूना भेज दियाऔर बीजापुर में रहने लगे ।
शिवाजी दादाजी कोणदेव और माता जीजाबाई के संरक्षण में पलने -बढ़ने लगे।उन्हें राजपुत्र की भांति शिक्षित किया गया। १४ वर्ष की आयु तक शिवाजी खुद जागीरदारी संभालने लगे थे। अपने प्रबंध कौशल से  शीघ्र ही लोकप्रिय होने लगे। देखते ही देखते उन्होंने अपना एक संगठन तैयार कर लिया और शिवाजी की एक नायक के रूप में पहचान बन गयी ।
Hindi Hindustaniइस बीच शाहजी ने जीजाबाई और शिवाजी को बीजापुर बुला लिया।
शिवाजी की चर्चा दरबार तक पहुँच चुकी थी। सुल्तान ने शाहजी से कहकर शिवाजी को दरबार में हाज़िर होने को कहा और शाहजी ने शिवाजी से किन्तु शिवाजी ने जाना स्वीकार नहीं किया। शाहजी ने अपने मित्र मुरार जी पन्त से कहलवाया। मोरारजी पन्त ने कुछ प्रयक्ष -अप्रत्यक्ष लाभ की बात कहकर शिवाजी को तैयार कर लिया और समझाया  कि दरबार में किस तरह (झुककर सलाम)  कोरनिश करना है। किन्तु शिवाजी कोरनिश करने के तैयार नहीं हुए। शाहजी पर लगातार दबाव पड़  रहा था ,वे शिवाजी की हठधर्मिता से परेशान  थे। तब माता जीजाबाईके कहने पर शिवाजी दरबार में उपस्तिथ होने को तैयार हुए। दरबार गए किन्तु झुककर कोरनिश  नहीं किया। सुल्तान ने कहा कि क्या तुम्हे दरबारी तौर -तरीके पता नहीं ?शिवाजी ने अपने बुद्धि चातुर्य से बात को संभाला ,कहा -आप मेरे गुरु और पिता समान  है ,आप से  औपचारिकता कैसी ?
उस दिन के बाद से कुछ दिन तक वे दरबार जाते रहे किन्तु एक दिन   उन्होंने पिता स्पष्ट मना कर दिया और पूना आ गए। पूना आकर उन्होंने जंगली -पहाड़ी मवाली जाती के लोगो का   संगठन तैयार कर लिया था। दादा कोणदेव की मृत्यु के बाद पूना और सूया की जागीर के अधिकार शिवाजी को प्राप्त हो गए। इस तरह उनकी शक्ति बढ़ गयी। अब वे अपने मवाली संगठन और एसाजी कंक ,तानाजी मालसुरे ,बाजी पालसकर के साथ  मिलकर स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापना के  स्वपन को यथार्थ रूप मे परिणत करने का विचार करने लगे।मित्रों ने कुछ भी करने से पहले उस इलाके की चप्पे -चप्पे की जानकारी हासिल करने की सलाह दी। शिवाजी ने वैसा ही किया।
सबसे पहले शिवाजी ने बीजापुर नवाब के अधिकार वाले रोहिद दुर्ग में स्तिथ रोहितेश्वर मंदिर पर अपना अधिकार कर लिया। नवाब को पता चला तो शिवाजी ने राजनितिक चालबाज़ी से नवाब को गुमराह कर दिया। शिवाजी ने किले के सुधार का आदेश दिया ,संयोग से खुदाई करते समय गड़ा हुआ खज़ाना हाथ लग गया। उस धन से शिवाजी महाराज ने राजगढ़ के किले का निर्माण करा कर सशस्त्र सेना तैयार कर ली।  शिवाजी के विमातुल संभाजी मोहिते को जब इस बात की खबर लगी तो उसने इस बात को बीजापुर तक पहुंचा  दिया। शिवाजी ने रस्ते के इस कांटे को हटाने के लिए उसके अधिकारवाले किले चाकन और सूया पर आक्रमण कर दिया और अन्य किलों पर भी अधिकार कर लिया। इससे  उनका प्रभाव इतना बढ़  गया  कि पास -दूर के किलेदार शिवाजी से भयभीत होने लगे।
यह समाचार बीजापुर तक भी पहुँच गया। बीजापुर के नवाब ने शाहजी से कहकर शिवाजी को सारे किले लौटने की चेतावनी दी। पिता ने शिवाजी ऐसा करने का दबाव डाला किन्तु शिवाजी ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया। इसी बीच शिवाजी के विश्वास पात्र आनाजी सोमदेव ने कल्याण के किले पर अधिकार कर किलेदार अहमद को उसकी पुत्र वधू के साथ बंदी बनाकर ले आये और बंदी बनाई गई पुत्रवधू को उपहार स्वरुप भेंट करना चाहा ,इस कृत्य से शिवाजी आनाजी सोमदेव पर  अत्यंत क्रुद्ध हुए और अहमद की पुत्र वधू को ससम्मान  आदेश दिया।
बीजापुर के नवाब ने शिवाजी के पिता शाहजी को बंदी बना एक कोठरी में बंद कर दिया। साँस  लेने भर के लिए सिर्फ एक ईंट भर की जगह छोड़ दी गयी और धमकी दी गयी कि  यदि शिवाजी को यहां ना बुलाया गया तो यह कोठारी ही उसकी कब्र बन जाएगी। शाहजी शिवाजी को चिट्ठी लिखने को मज़बूर हो गए। पिता की चिट्ठी पाकर शिवाजी धर्म संकट में पड़ गए। उन्होंने आदिल शाह के पास ना जाने का मन बना लिया था। इस फैसले पर शिवाजी की धर्म   पत्नी साई बाई ने शिवाजी को उपाय सुझाया कि मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के साथ एक संधि करें ,उस संधि में शर्त रखे कि  यदि शाहजहाँ उसके पिता को आदिल शाह से मुक्त करवाएगा तो शिवाजी उसे दक्षिण के मुस्लिम राज्यों का दमन करने में बादशाह की सहायता करेगे। शिवाजी को सुझाव पसंद आया और उन्होंने वैसा ही किया ,शाहजहाँ ने फरमान जारी कर शिवाजी के पिता शाहजी को आदिल शाह से   मुक्त करा दिया।
अपनी पराजय से क्रुद्ध आदिल शाह ने बाजी श्याम राज नाम के राज द्रोही के माध्यम से शिवाजी की हत्या का षड्यंत्र रचा। गुप्तचरों  से शिवाजी को इस षड्यंत्र का पता लगने  पर   शिवाजी के सैनिकों ने बजी श्याम राज पर धावा बोल दिया किन्तु बाजी श्याम राज बचकर राजा चन्द्रराव की शरण में चला गया। राजा चंद्र राव भी शिवाजी से ईर्ष्या रखता था। शिवाजी महाराज ने राजा चंद्र राव के राज्य जवाली पर आक्रमण कर राज्य से निष्काषित कर दिया। बाद में शिवाजी   महाराज ने जवाली के किले और महाबलेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और प्रताप गढ़ नाम का किला तथा देवी मंदिर   स्थापित करवाया।
इसके बाद शिवाजी महाराज एक के बाद एक दक्षिण के मुस्लिम राज्य और दिल्ली के मुग़ल राज्यों को जीत -जीत कर हिदू राज्य स्थापित करने लगे। अहमदनगर ,जुन्नर और पेडगाव तक मुग़ल सत्ता का अंत कर दिया। इसी बीच शाहजहाँ की मौत हो चुकी थी। मुग़ल सत्ता ओरंगजेब के हाथों में आ चुकी थी। वह कर्नाटक  और बीजापुर को जीतने दक्षिण आया हुआ था किन्तु भाइयों के आपसी गृह युद्ध के कारण वह  आदिल शाह से संधि कर लौट गया। उसके बाद शिवाजी महाराज ने कोंकण और जंजीरा पर भी अधिकार कर लिया। आदिल शाह ओरंगजेब से संधि हो जाने के बाद फिर से शिवाजी के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। वह किसी षड्यंत्र से शिवाजी महाराज की हत्या करवाना चाहता था ,इसके लिए उसने अफज़ल खां नाम के सरदार को सहमत कर लिया। अफज़ल खां  तैयार तो हो गया किन्तु उसे इस बात का भी डर  था कि शिवाजी ने उसे ही मार दिया तो उसकी १६४ बेगमों का क्या होगा ?जाते-जाते वह अपनी १६४ बेगमों मौत की नींद में सुला गया ।
अफज़ल एक बड़ी सेना लेकर निकल पड़ा। जब शिवाजी महाराज को इस आशय की सूचना मिली तो वे भी जवाली के प्रताप गढ़  के किले में आ गए। दोनों के बीच संधि करने के लिए सहमति बन गयी। संधि के लिए अफज़ल को जवाली बुलाया गया। अफज़ल धोखे से शिवाजी महाराज को मारना  चाहता था। शिवाजी महाराज को इस बात का अंदेशा पहले से ही था,अतः वे पहले से ही सतर्क हो गए । जब दोनों मिले ,अफज़ल अपने इरादे को अंजाम देने ही वाला था कि इससे पूर्व ही शिवाजी महाराज ने अफज़ल को वही ढेर कर दिया।
इस घटना से ओरंगजेब आग -बगूला हो उठा। ओरंगजेब ने भी शिवाजी महाराज के खिलाफ षड्यंत्र रचा और जय सिंह नाम के हिदू राजा के माध्यम से शिवाजी महाराज को धोखे से आगरा में क़ैद कर लिया। लेकिन शिवाजी महाराज अपनी चालाकी से क़ैद से निकल भागे।
इसके बाद शिवाजी महाराज ने मुगलों के और भी कई इलाकों को जीतकर हिन्दू राज्य में शामिल कर लिया। उनकी योजना दिल्ली पर आक्रमण करने की थी किन्तु इससे पूर्व ही ३ अप्रैल, १६८० को मृत्यु ने भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखनेवाले इस स्वप्न दृष्ठा के स्वप्न को तोड़ दिया।
काश ,शिवाजी महाराज के समकालीन राजाओं के ह्रदय में भी ऐसे ही हिन्दुत्व की भावना जाग्रत हुई होती .. दृढ़ता और साहस दिखलाया होता ….यवन शासकों के अत्याचार और धर्म रक्षा के लिए उठ खड़े होते … दूरदर्शिता दिखलाई होती   ।                                                                                                                                                                                                                                                                                      

You Might Also Like...

No Comments

    Leave a Reply

    error: Content is protected !!
    error: Alert: Content is protected !!