कारगिल विजय दिवस
२६ जुलाई
kargil victory day – 26 july
शत -शत प्रणाम
कारगिल विजय दिवस ,26 july
१५ अगस्त ,१९४७ ,देश को आज़ादी मिली ,लेकिन इस आज़ादी को पाने के लिए हमने खोया भी – भारत को अपने शरीर का एक अंग काट कर देना पड़ा ,जिसे आज दुनिया पाकिस्तान के नाम से जानती है। न मालूम क्यों बटवारे की शर्त पर हमने यह आज़ादी स्वीकार की ? भारत का अंग काटकर अलग तो कर दिया गया लेकिन वह ज़ख्म अभी भरा नहीं है। रह-रह कर टीस देता है आज भी। शरीर का कोई अंग जब ख़राब हो जाता है तो डॉक्टर उस अंग को काटकर अलग कर देने की सलाह देते है ,ताकि उस रोग से निजात मिल जाये ,शायद यही सोच कर हमने बटवारे की शर्त को स्वीकार कर लिया था। लेकिन जैसा सोचा था ,हुआ उसका उल्टा ही। बटवारे की वह आग तो बुझ गयी लेकिन नफ़रत की चिंगारी आज भी ,अब भी सुलग रही है ,इधर भी -उधर भी। खैर ,वह सब तो अतीत बन कर इतिहास के पन्नों में दब गया। लेकिन अफसोस यह है कि हम अलग हुए भाइयों की तरह तो ना रह सके किन्तु अच्छे पडोसी भी ना बन सकें। अलग ही सही, अमन और शांति के साथ तो रहे लेकिन वह भी ना हो सका।
बंटवारे के बाद से ही पाक अनधिकृत रूप से आतंकी संगठन की आड़ में कश्मीर पर कब्ज़ा करने की नाकाम कोशिश करता रहा है। कारगिल युद्ध उसी मंशा की योजना का एक हिस्सा है। इस युद्ध में पाक को फिर पहले दो युध्धों की तरह ही मुँह की खानी पड़ी। २६ जुलाई १९९९ को भारत के सपूतों ने पाक के नापाक इरादे को नेस्ताबूत कर दिया।देश इस युद्ध में आहूत हुए वीर सैनिकों के शौर्य को श्रद्धा और गर्व से याद करेगा।
पाकिस्तानी सैनिक मई १९९९ से पूर्व से ही नियंत्रण रेखा को पार कर सीमा में घुस रहे थे किन्तु भारतीय सेना इससे अंजान थी। तब तक पाक सैनिक द्रास -कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमा चुके थे। जैसे ही सेना को इसका पता चला ,सेना ने ३०००० सैनिकों के साथ ऑपरेशन विजय शुरू किया।इस अभियान को कामयाब बनाने के लिए इधर भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन सफ़ेद सागर शुरू किया तो उधर जल सेना ने कराची तक पहुचने वाले समुंद्र मार्ग से सामरिक सहायता रोकने के लिए पूर्वी इलाकों के जहाजी बेडों को अरब सागर में ला खड़ा किया।
दोनों देशों के बीच यह युद्ध दो महीने तक जारी रहा। ऑपरेशन विजय के दौरान ५०० के लगभग भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और १३०० सैनिक के लगभग घायल हुए।
पाकिस्तान ने इस युद्ध में मारने वाले पाक सैनिकों की संख्या ३५७ बतलाई जबकि भारतीय सेना के अनुसार इस युद्ध में मरने वाले पाक सैंनिको की संख्या ४००० के लगभग थी।
दो महीने से चल रहे इस युद्ध का विराम हुआ २६ जुलाई १९९९ को। सेना ने कब्जे वाले सारे इलाकों को अपने नियन्त्रण में ले लिया। ऑपरेशन विजय सफल हुआ और तब से ही २६ जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
इस युद्ध की खास बात यह थी कि यह युद्ध ऊंचाई पर लड़े गए विश्व युद्धों में से एक था। पाक ने दावा किया था कि घुसपैठ करने पाक सैनिक नहीं बल्कि कश्मीरी उपद्रवी थे किन्तु युद्ध मे मिले हथियार और अन्य साक्ष्य से प्रमाणित हो गया कि युद्ध में मारे गए सैनिक पाक सेना के ही सैनिक थे।
आज कारगिल युद्ध को बीते 22 साल हो गए।
कारगिल विजय हम देशवासियों के लिए स्वयं को गौरवांवित अनुभव करने का दिवस है ,अपने उन भारत -पुत्रों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का दिन है जिन्होंने राष्ट्र रक्षा के लिए अपने प्राण उत्सर्ग कर हम देशवासियो के आत्म-सम्मान की रक्षा की।
इतिहास साक्षी है कि भारत ने कभी साम्राज्य विस्तार की लिप्सा से कभी अपनी सैन्य -शक्ति का प्रयोग नहीं किया और ना पडोसी देशों की ज़मीन को अनधिकृत करने का प्रयास किया। भारत ने जब भी युद्ध किया या यु कहे कि करना पड़ा तो सिर्फ अपनी आत्म-रक्षा के लिए किया।
युद्ध में शहीद हुए सैनिक चाहे वे भारतीय हो ,पाकिस्तानी हो ,कश्मीरी उग्रवादी हो ,थे तो इंसान ही। किसी के बेटे ,किसी के पिता, किसी के पति, किसी के भाई थे वे । युद्ध मे एक सैनिक ही नहीं मरता बल्कि एक साथ न मालूम कितने रिश्ते मर जाते है। इतिहास के बड़े -बड़े युद्ध गवाह है -युद्ध ने कभी भी इंसान और इंसानियत का भला नहीं किया। तबाही और बर्बादी के आलावा कुछ नहीं देते इस प्रकार के युद्ध। युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिजनों की वीरान आँखों में सिर्फ और सिर्फ आंसू ही देकर जाते है ये युद्ध….कभी ना सूखने वाले आँसू — शहीद एक मुश्त मर जाता है और उसके परिजन किश्तों में मरते रहते है।
युद्ध खत्म हो जाता है ,लेकिन एक सवाल छोड़ जाता है कि जिन हुक्मरानों के हुक्म से यह युद्ध होते है ,वे इन युद्धों में स्वयं क्यों नहीं मरते ?क्या ईश्वर हुक्मरानों को हुक्म देने और सैनिकों को केवल मरने के लिए ही धरती पर भेजता है -इन्सानों की तरह जीने के लिए नहीं ?
क्या धरती के लोग इस बात की प्रतीक्षा करते रहेंगे कि फिर कभी महात्मा बुद्ध धरती पर अवतरित होंगे और हुक्मरानों को अहिंसा का सन्देश सुना कर उनका ह्रदय परिवर्तन करेंगे ?तब तक हम मूक बने निर्दोष -बे-कसूरों को मारने का खेल देखते रहे ?
,सर्वे भुव्न्तु,सुखिन, सर्वे सन्तु निरामय, वसुधैव कुटुम्बकं तथा जिओ और जीने दो की भावना से ही मानव -समुदाय अमन-चैन से रह सकता है।
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