charlie chaplin in hindi
१६ अप्रैल -चार्ली चैप्लिन के जन्म दिवस पर विशेष
हैवान रुलाता है
इंसान हँसाता है
चार्ली ऐसे इंसान थे जिन्होंने दुनिया को सिखाया कि दुखों के बीच हँसा जा सकता है।
हिंदी कवि हरि वंश राय बच्चन की कविता आत्म परिचय और चार्ली के व्यक्तिगत जीवन बहुत कुछ साम्य है। बच्चनजी की कविता पर एक बार दृष्टि डालते है –
मै जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ
मै निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ
मै निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ
मै जला ह्रदय में अग्नि ,दहा करता हूं
सुख दुःख दोनों में मग्न रहा करता हूँ
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मै स्वपनों का संसार लिए फिरता हूँ
मै यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ
जो मुझको बाहर हंसा रुलाती भीतर
कर यत्न मिटे सब ,सत्य किसी ने जाना ?
मै निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ
मै दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ
मै मादकता नि :शेष लिए फिरता हूँ
जिसको सुनकर जग झूम ,झुके ,लहराए
मै मस्ती का सन्देश लिए फिरता हूँ
बहुत साम्य है बच्चनजी की आत्म परिचय कविता में और चार्ली के व्यक्तिगत जीवन में।
वैश्विक सिने आकाश का वह देदीप्यमान नक्षत्र जिसकी चमक आज भी ज्यों की त्यों ब नी हुई है ,जैसी कल तक हुआ करती थी। क्रूर काल भी जिसकी शोहरत को गुमनामी के अँधेरे में नहीं धकेल पाया। आज भी नई पीढ़ी के युवा और बच्चे चार्ली के नाम से वैसे ही परिचित है ,जैसे आज के किसी चर्चित फिल्म स्टार के नाम से परिचित है।
वैसे तो चार्ली की कर्मभूमि इंग्लैंड रही ,किन्तु लोकप्रियता विश्व के कोने-कोने तक फैली ।विश्व का शायद ही कोई ऐसा सिने दर्शक हो जो चार्ली की गुदगुदाने वाली हंसी से परिचित न हो।
चार्ली एक फ़िल्मकार और हास्य कलाकार से ज्यादा एक दार्शनिक थे। ज़िन्दगी के दर्द को जितनी नज़दीकी से देखा और अनुभव किया ,वही अनुभव उनकी फिल्मों और उनके चरित्र में स्पष्ट देखा जा सकता है।
हरिवंश राय बच्चन की पंक्ति उन पर अक्षरश चरितार्थ होती है –
चार्ली ने फिल्मों में स्वयं को जिस रूप में प्रस्तुत किया ,वह एक प्रकार से उनके अतीत को ही उद्घाटित करता है। किन्तु रो-रोकर आँसूं बहाकर नहीं बल्कि हास्य के माध्यम से। भीतर से खुद रोकर बाहर से दूसरों को हँसाना किसी सामान्य मनुष्य के वश की बात नहीं। बचपन में ही पिता का साया छीन जाना …. माँ का पागल हो जाना ..गरीबी.. खेलने-कूदने की उम्र में ज़िम्मेदारी आ जाना …अमीरो के यहाँ नौकरी करना .. दुत्कार सहन करना घृणा और अपमान का जीवन
दर्द को हास्य में कैसे प्रस्तुत किया जा सकता है ,चार्ली के अतिरिक्त विश्व का शायद ही अन्य कोई कलाकार इतने स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत कर सके।
यह कहना गलत नहीं होगा कि चार्ली आम आदमी का और चार्ली की फिल्मे मानव समाज को उसका वास्तविक रूप दिखानेवाला आइना थी।
चार्ली का बचपन जिस तरह अभावों में ,गरीबी में ,धनि वर्ग के अपमान को सहते हुए बिता इन विपरीत परिस्तिथियों ने चार्ली को पीछे नहीं धकेला ,बल्कि चार्ली की ताक़त बना। चार्ली न्र फर्श से उठाकर दौलत और शौहरत के अर्श पर पहुँच कर साबित कर दिया कि विपरीत स्तिथियाँ जीवन की सफलता में बाधक नहीं बन सकती यदि इरादों में मज़बूती हो। .. चुनौतियों का सामना करने का साहस हो …. हताश -निराश होकर बैठने की अपेक्षा स्तिथियों को अपने अनुकूल बनाने की ज़िद हो। मनुष्य अपनी सकारात्मक सोच … अदम्य साहस और संघर्षों से सफलता के आसमान को छू सकता है। चार्ली की फिल्मों का यदि आकलन करें तो पाएंगे कि चार्ली की फिल्में कल्पना के आकाश पर नहीं बल्कि यथार्थ के धरातल को छूती हुई चलती थी। न सिर्फ फिल्में बल्कि उनका अपना व्यक्तित्व आम आदमी के दुःख और तकलीफ को ही उजागर करता जान पड़ता है। चार्ली की फिल्मे किसी वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं कराती देश की व्यवस्था और समाज की विसंगति पर प्रहार करती है। इतने असरदार ढंग से प्रहार करती है कि भ्रष्ट नेता और शोषण करनेवाले धनिक तिलमिला उठाते है। उन्हें ऐसा लगता था कि चार्ली नाम का यह कलाकार समाज के सामने उन्हें विवस्त्र कर देगा।
चार्ली की एक ओर विशेषता जो प्रबुध्द वेगवेरग को प्रभावित कराती है ,वह यह कि चार्ली ने कला को परंपरागत सिद्धांतों में नहीं बाँधा और न व्यावसायिक फार्मूलों पर अवलम्बित होने दिया । उनकी लगभग सभी फिल्मे व्यावसायिक फार्मूलों से पृथक होकर भी दर्शकों द्वारा न सिर्फ स्वीकारी गयी बल्कि उन्हें आलोचकों द्वारा सराहा भी गया।
चार्ली ने अपनी फिल्मों से प्रमाणित कर दिया कि कला का न कोई धर्म होता है और न कोई भाषा। कला सार्वभौमिक होती है। वह किसी एक देश या संस्कृति की धरोहर नहीं होती। हर देश के हर वर्ग के दर्शक ने चार्ली और उनकी फिल्मों को वैसे ही स्वीकार किया ,मान-सम्मान दिया सर-आँखों पर बिठाया जैसे अपने देश की कला और कलाकार को बिठाते है।
उसकी फिल्मों का उद्देश्य ही हँसाना हुआ करता था ,जिसने अपने आप को नायक से ज्यादा विदूषक के रूप में प्रस्तुत किया। सामान्य फिल्मों के नायक की तरह handsome -smart -bravo नहीं बल्कि बुद्धू रूप में प्रस्तुत किया ,सिर्फ इसलिए कि वह दूसरों को हँसा सकें। चार्ली ने जीवन दर्शन को बहुत नज़दीकी से जाना और समझा था।
हर आदमी अपनेआप में नायक भी है तो विदूषक भी है। दुनिया का हर आदमी two -in -one है .सच तो यह कि हम सब भी अपनी -अपनी real life में चार्ली ही है।। सब में भी चार्ली की तरह नायक और विदूषक के गुण सम्मिश्रित है। चार्ली का अतीत दुःख ,अभाव ,संघर्ष और अपमान से भरा हुआ था ,फिर भी चार्ली ने हास्य को ही चुना ,क्योकि चार्ली यही मानते थे कि सबके जीवन में कोई न कोई त्रासदी है ,हर आदमी भीतर से दुखी है ,यदि हम किसी को हँसा सके ,किसी के चहरे पर हँसी ला सकें ,तो यह किसी पुण्य से कम नहीं।
चार्ली अतुल्य है .. चार्ली अनुपम है और शायद रहेगा
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