चाणक्य नीति सोने की शुद्धता परखने के लिए उसे कसौटी पर घिसा जाता है तपाया जाता है ,कूटा जाता है उसी प्रकार मनुष्य की परख उसकी सज्जनता ,चरित्र ,गुण ,और आचरण से होती है। मनुष्य जीवन में कष्ट आना स्वाभाविक है ,प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कष्ट आता है किन्तु मनुष्य को चाहिए की कष्टों में घबराने की अपेक्षा धैर्यपूर्वक अपने बुद्धि चातुर्य से कष्ट से बचने का उपाय सोचना चाहिए। जैसे बेर के पेड़ के फल और कांटें समान नहीं होते वैसे ही आवश्यक नहीं कि एक पिता की सभी संताने गुण ,कर्म और स्वाभाव में समान हो। पदाधिकारी यदि रसिक प्रवृति का होगा तो उसमे कामवासना होगी ,फूहड़ होगा तो बातचीत में मिठास नहीं होगी और यदि स्पष्ट वक्ता हुआ तो उसमे झूठ और धोखा नहीं होगा। कम बीज से खेत नष्ट होते है ,आलस्य से विद्या नष्ट होती है ,दूसरे के हाथों में पड़कर स्त्री नष्ट होती है। धन से धर्म की ,योग से विद्या की रक्षा होती है ,इसी भांति संस्कारित स्त्री से घर की रक्षा होती है। ऐसा मनुष्य अच्छा हो ही नहीं सकता जो विद्वान् विद्वता की निंदा करता हो , शास्त्र की बातों को व्यर्थ बतलाता हो ,धीर-गंभीर -शांत व्यक्ति को ढोंगी कहता हो। दान से दरिद्रता नष्ट होती है ,सदाचरण से कष्ट दूर होते है ,बुद्धि से अज्ञान नष्ट होता है और ईश्वर भक्ति से भय नष्ट होता है। कामवासना से बढ़कर अन्य कोई रोग नहीं ,मोह से बढ़कर अन्य कोई शत्रु नहीं ,क्रोध से बढ़कर दूसरी अग्नि नहीं ,किन्तु ज्ञान से बढ़कर सुख देनेवाला अन्य कोई नहीं। मनुष्य को अपने पाप -पूण्य का फल स्वयं भोगना पड़ता है ,इसमे कोई अन्य भागीदार नहीं हो सकता। न माता-पिता ,न पत्नी -बच्चे और न बंधु -बान्धव। तुम्हारे हिस्से का सुख कोई छीन नहीं सकता और तुम्हारे हिस्से का दुःख कोई बॉट नहीं सकता। ब्रह्मज्ञानी के लिए स्वर्ग ,शूरवीर के लिए जीवन ,जितेन्द्रिय के लिए भोग्य पदार्थ तिनके के समान हैकिन्तु कामना रहित के लिए तो सम्पूर्ण संसार ही तिनके के समान है । व्यर्थ है ऐसा परिश्रम जिसका कोई लाभ ना हो ,ठीक वैसे ही जैसे समुन्द्र में बारिश होना ,तृप्त को भोजन कराना ,धनी को दान देना ,दिन में दीपक जलाना। वर्षा के जल के समान अन्य शुद्ध जल नहीं ,आत्मबल के समान अन्य बल नहीं ,नेत्र ज्योति के समान अन्य ज्योति नहीं ,अन्न के समान अन्य खाद्य पदार्थ नहीं। धनी और अधिक धन चाहता है ,पशु वाक -शक्ति चाहता है ,मनुष्य स्वर्ग चाहता है और विद्वान् मोक्ष चाहता है। संसार में सब सत्य में ही स्थिर है। पृथ्वी स्थिर है सत्य के कारण ,सूर्य में प्रकाश है सत्य के कारण ,वायु बहती है सत्य के कारण। सत्य अर्थात ईश्वर और ईश्वर ही सत्य है। धन स्थिर नहीं ,प्राण स्थिर नहीं ,यौवन स्थिर नहीं। स्थिर है सिर्फ -धर्म
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