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रोज,अज्ञेय
4.रोज (अज्ञेय )
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1.मालती के घर का वातावरण आपको कैसा लगा? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-मालती के घर का वातावरण यंत्रवत था ,जिसमे गतिशीलता तो दिखाई देती है लेकिन यन्त्र की भांति चेतना शून्य .वातावरण में कही कोई उत्साह ,उमंग नहीं ,केवल नीरसता थी .अथिति के आगमन पर मेजमान जो प्रतिक्रिया व्यक्त करता है ,लेखक ने वैसा कुछ अनुभव नहीं किया . मालती ने औपचारिक ढंग से स्वागत किया ।जबकि मालती के साथ लेखक का सम्बन्ध कोई औपचारिक नहीं था , उत्कंठा उत्सुकता, उत्साह जिज्ञासा कुछ नहीं . लेखक दूर के रिश्ते का भाई है, बचपन में खेले थे , किन्तु इतने सालों बाद आए भाई के स्वागत में कोई उत्साह नहीं .सिर्फ एक औपचारिकता का निर्वाह किया मालती लेखक आगे चलकर से कुछ नहीं पूछती ,लेखक के पूछने पर संक्षिप्त उत्तर ही देती है। लेखक ने जान लिया कि मालती का व्यवहार उसका दम्भ नहीं बल्कि वैवाहिक जीवन की उत्साहहीनता, नीरसता और गतिशील यान्त्रिकता है ,जो घरेलू परिवेश में ऊबाऊ जीवन जी रही है।
प्रश्न 2.‘दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो’, यह कैसी शाप की छाया है? वर्णन कीजिए।
उत्तर-जब लेखक जब मालती के घर पहुँचा तो लेखक को ऐअसा अनुभव हुआ जैसे घर में किसी शाप की छाया मँडरा रही हो। शाप की छाया से लेखक का अभिप्राय यह है कि कोई कोई स्थान ऐसा होता है जहाँ जीवन की कोई हलचल नहीं किसी उजड़े हुए स्थान की वीरानगी से है .परिवार में पत्नी है ,पति है ,एक बच्चा भी है किन्तु आपस में अपनेपन का भाव कहीं नहीं था । हर कोई एक ऊब भरी, नीरस और निर्जीव जिन्दगी जी रहा था। माँ पर बेटे के गिरने पर कोई पीडादायक प्रतिक्रिया नहीं , पति को अपने काम-काज से फुर्सत नहीं .एक छत के नीचे रहकर भी सब एकाकी जीवन जी रहे है। लेखक को घर का वातावरण देखकर ऐसा लगा जैसे यह परिवार किसी के दुरात्मा के दिए शाप को भुगत रहा है।
प्रश्न 3.लेखक और मालती के संबंध का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर-लेखक और मालती के बाल मित्र भी है तथा मालती लेखक की दूर के रिश्ते की बहन भी है, बचपन में दनों साथ-साथ पढ़े और खेले हैं। भाई-बहन के रिश्ते से अधिक दोनों के बीच मैत्री भाव ज्यादा रहा .
प्रश्न 4.
मालती के पति महेश्वर की कैसी छवि आपके मन में बनती है? कहानी में महेश्वर की उपस्थिति क्या अर्थ रखती है? अपने विचार दें।
उत्तर-कहानी लेखक अज्ञेयजी ने मालती के पति महेश्वर के पति का चरित्र शुष्क और यांत्रिक जीवन जीनेवाले पात्र के रूप में प्रस्तुत किया है .एक जैसी निर्धारित नीरस दिनचर्या है ,हर दिन एक जैसा – रोज सबेरे डिस्पेन्सरी चले जाना , दोपहर को डिस्पेंसरी से घर आते है ,वह भी भोजन करने और कुछ देर आराम करने के लिए , शाम को फिर डिस्पेन्सरी रोगियों को देखने डिस्पेंसरी चले जाते है और दस बजे तक लौटते है ,रात्री का भोजन करते है और सो जाते है . रोज एक जैसी दिनचर्या …उबाऊ और नीरस . वर्षों से इसी ढर्रे पर चल रहे है .पेशे से डॉक्टर होने के साथ –साथ वह एक पति भी है और एक पिता भी .महेश्वर को अपने अपने पेशे के प्रति ईमानदार और समर्पित डॉक्टर तो कहा जा सकता है किन्तु पारिवारिक जीवन के उदासीनता पारिवारिक वातावरण को बदरंग ,नीरस और उत्साहहीन बना देती है .कहानी में महेश्वर की उपस्थिति पारिवारिक वातावरण को बोझिल ,अवसादग्रस्त और तनाव से भर देती है .
प्रश्न 5.गैंग्रीन क्या है?
उत्तर- गैंग्रीन एक गंभीर प्रकार का रोग है ।जख्म होने पर समय उचित इलाज न होने पर वह ज़ख्म लाइलाज हो जाता है .कभी-कभी तो उस ग्रसित अंग को काटकर अलग देना ही विकल्प रह जाता है .इस रोग से रोगी की मृत्यु भी हो जाती है .पहाड़ी इलाके प्राय जंगलों से भरे होते है जिनमे कुछ पेड़ कंटीले भी होते है .पहाड़ी इलाकों में रहनेवाले लोगों को काँटा चुभाने को सामान्य बात समझ लेते है .इलाज नहीं कराते ,बाद में यहीजानलेवा गैगरिन रोग बन जाता है .
प्रश्न 6 .आशय स्पष्ट करें-
मुझे ऐसा लग रहा था कि इस घर पर जो छाया घिरी हुई है, वह अज्ञात रहकर भी मानो मुझे वश में कर रही है, मैं भी वैसा ही नीरस निर्जीव-सा हो रहा हूँ …
उत्तर-उक्त पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने घर के नीरस ,उबाऊ ,बोझिल उमंग और उत्साहहीन वातावरण को उकेरने का प्रयास किया है .लेखक ने घर में प्रवेश करते ही ऐसा अनुभव किया कि जैसे उस घर पर कोई काली छाया मँडरा रही है और इस घर पर जो छाया घिरी हुई है, वह अज्ञात रहकर भी मानो मुझे वश में कर रही है, मैं भी वैसा ही नीरस निर्जीव-सा हो रहा हूँ ,ऐसा कहकर लेखक ने मालती की मन:स्थिति को प्रकट किया है .इस पंक्ति से पाठक मालती की पीड़ा को अनुभव कर सकते है .जब लेखक कुछ ही देर में इस वातावरण से अवसाद से भर गया ,जबकि मालती वर्षों से इसी वातावरण में जी रही है ,मालती की इस पीड़ा को सहज ही अनुभव किया जा सकता है
प्रश्न 7 ‘तीन बज गए’, ‘चार बज गए’, ‘ग्यारह बज गए’, कहानी में घंटे की इन खड़कों के साथ-साथ मालती की उपस्थिति है। घंटा बजने का मालती से क्या संबंध है?
उत्तर-‘तीन बज गए’ ‘चार बज गए’, ‘ग्यारह बज गए’ कहानी में घंटे की इन खड़कों के साथ-साथ मालती की उपस्थिति है ;कथा नायिका मालती पर यह कथन अक्षरश चरितार्थ होता जान पड़ता है क्योकि मालती का जीवन भी दीवार घडी की तरह ही चल रहा है .उसकी दिन चर्या घडी की सुइयों के साथ –साथ चलती …उसे किस समय कौनसा काम करना है …सब तय है …उसे तीन बजे क्या करना है …चार बजे क्या करना है …….रात ग्यारह बजे क्या करना है ….सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक के सारे कार्य घडी की सुइयों से निर्धारित है .रात के ग्यारह बजाने की ध्वनि मालती को थोड़ी राहत देती है .
प्रश्न 8 .अभिप्राय स्पष्ट करें रू
(क) मैंने देखा, पवन में चीड़ के वृक्ष३.गर्मी में सूखकर मटमैले हुए चीड़ के वृक्ष धीरे-धीरे गा रहे हों३३.कोई राग जो कोमल है, किन्तु करुण नहीं अशांतिमय है, उद्वेगमय नहीं।
(ख) इस समय मैं यही सोच रहा था कि बड़ी उद्धत और चंचल मालती आज कितनी सीधी हो गई है, कितनी शांत और एक अखबार के टुकड़े को तरसती है३..यह क्या३यह.
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ रोज शीर्षक कहानी से उद्धत है। इसमें विद्वान लेखक अज्ञेय जी ने प्रकृति के माध्यम से जीवन के उन पक्षों का रहस्योद्घाटन करने की कोशिश की गई जिससे मानव जीवन प्रभावित है।
इन पंक्तियों में लेखक द्वारा चाँदनी का आनन्द लेना, सोते हुए बच्चे का पलंग से नीचे गिर जाना, ऐसे प्रसंग हैं जो नारी के जीवन को विषम स्थिति के सूचक हैं। लेखक द्वारा प्रकृति से जुड़कर नारी की अन्तर्दशाओं को देखना एक सूक्ष्म निरीक्षण है। चीड़ के वृक्ष का गर्मी से सूखकर मटमैला होना मालती के नीरस जीवन का प्रतीक है।
चीड़ के वृक्ष जो धीरे-धीरे गा रहे हैं कोई राग जो कोमल है यह नारी के कोमल भावनाओं के प्रतीक है। किन्तु करुण नहीं अशान्तिमय है किन्तु उद्वेगमय नहीं। यह मालती के नीरस जीवन का वातावरण से समझौता का प्रतीक है। हमें यह जानना चाहिए कि जहाँ उद्वेग होगी, वहीं सरसता होगी। परन्तु मालती के जीवन में सरसता नहीं है। वह जीवन के एक ढर्रे पर रोज-रोज एक तरह का काम करने, एकरस जीवन, उसकी सहनशीलता आदि उसके जीवन को ऊबाऊ बनाते हैं। मालती के लिए यह एक त्रासदी है। जहाँ नारी की आशा-आकांक्षा सब एक घुटनभरी जिन्दगी में कैद हो जाती है।
नारी के जीवन में जो राग-रंग होने चाहिए यहाँ कुछ नहीं है। यहाँ दुख की स्थिति यह है कि घुटनभरी जिन्दगी को सरल बनाने के बजाए उससे समझौता कर लेती है। यही उसके अशान्ति का कारण है। मालती को अपना जीवन मात्र घंटों में दिखाई देता है। वह घंटों से छूटने का प्रयास करने के बजाय उसके निकलने पर थोड़ी राहत महसूस तो करती है। परन्तु घंटे के फिर आगे आ जाने पर नीरस हो जाती है। यही राग है जो कोमल है, किन्तु करुण नहीं, अशान्तिमय है।
मालती की जिजीविषा यदा-कदा प्रकट होती है जो समझौते और परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता का है। इसके मूल में उसकी पति के प्रति निष्ठा और कर्तव्यपरायणता को अभिव्यक्त करती है। वह भी परंपरागत सोच की शिकार है जो इसमें विश्वास करती है कि यही उसकेजीवन का सच है, इससे इतर वह सोच भी नहीं सकती। यही कारण है उसके दाम्पत्य जीवन में रोग की कमी व्यजित होती है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रतिष्ठित साहित्यकार अज्ञेय द्वारा रचित रोज शीर्षक पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक मालती के बचपन के दिनों को याद करता है कि मालती कितनी चंचल लड़की थी।
जब हम स्कूल में भरती हुए थे तो हम हाजिरी हो चुकने के बाद चोरी से क्लास से भाग जाते थे और दूर के बगीचों के पेड़ों पर चढ़कर कच्ची अमियाँ तोड़-तोड़ खाते थे।।
मालती पढ़ती भी नहीं थी, उसके माता-पिता तंग थे। लेखक इसी प्रसंग से जुड़ा एक वाक्य सुनाता है कि मालती के पिता ने एक किताब लाकर पढ़ने को दी। जिसे प्रतिदिन 20-20 पेज. पढ़ना था। मालती रोज उतना पन्ना फाड़ते जाती थी। इस प्रकार पूरी किताब फाड़कर फेंक डाली।
लेखक उपर्युक्त बातों के आलोक में आज की मालती जिसकी शादी हो गई। और उसके बच्चे भी हैं, उसमें आये बदलाव को लेकर चिंतित है। आज मालती कितनी सीधी हो गई है। जिंदगी एक दर्रे में होने के कारण मालती यंत्रवत कर्त्तव्यपालन को मजबूत है। लेखक ने देखा कि पति महेश्वर ने मालती को आम लाने के लिए कहा। आम अखबार के एक टुकड़े में लिपटे थे। अखबार का टुकड़ा सामने आते ही मालती उसे पढ़ने में ऐसी तत्लीन हो गयी है, मानो उसे अखबार पहली बार मिला हो। इससे पता चलता है कि वह अपनी सीमित दुनिया से बाहर निकलकर दुनिया के समाचार जानने को उत्सुक है। वह अखबार के लिए भी तरस गई थी। उसके जीवन के अनेक अभावों में अखबार का अभाव भी एक तीखी चुभन दे गया। यह जीवन की जड़ता के बीच उसकी जिज्ञासा और जीवनेच्छा का प्रतीक है। इस तरह लेखक एक मध्यवर्गीय नारी को अभावों में भी जीने की इच्छा का संकेत देखता है और जीवन संघर्ष की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 9 .कहानी के आधार पर मालती के चरित्र के बारे में अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-मालती जो रोज कहानी की कथा नायिका है .मालती केवल कथा नायिका ही नहीं है बल्कि ऐसी कई गृहिणियों की पीड़ा को व्यक्त करनेवाला चरित्र भी है जो मालती की तरह का यांत्रिक .नीरस ,उत्साह और उमंग हीन ,उबाऊ जीवन जीने के लिए विवश है .रोज कहानी इस आध्यात्मिक तथ्य की ओर भी संकेत करती है किसका भविष्य कैसा होगा ,निश्चित नहीं है .
बचपन में वह बंधनों से उन्मुक्त और स्वच्छंद रहकर चंचल हिरणी के समान फुदकती रहती है। उसका रूप-लावण्य बरबस ही लोगों को आकर्षित करता है किन्तु विवाहोपरांत मालती बचपन के जीवन विल्कुल विपरीत यंत्रवत् जीवन के लिए विवश है .कल की चंचल बालिका बिलकुल शांत हो गई ….शरीर कृशकाय ……चेहरा कांतिहीन …हंसी तो जैसे रूठकर कहीं दूर चली गई है .जीवन की इस आपा-धापी में गृहिणियां मालती की तरह का जीवन जीने के लिए विवश है
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