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जन-जन का चेहरा एक, मुक्तिबोध
9 जन-जन का चेहरा एक
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न . जन-जन का चेहरा एक कविता के कवि के अनुसार ज्वाला जनता से उठती है
प्रश्न . जन-जन का चेहरा एक कविता के कवि मुक्तिबोध ने सितारा जनता को कहा है
प्रश्न . जन-जन का चेहरा एक कविता के कवि मुक्तिबोध ने जनता को पूँजीवादी व्यवस्था से आतंकित बतलाया है
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1.“जन जन का चेहरा एक” से कवि का क्या तात्पर्य है
उत्तर-“जन जन का चेहरा एक” में कवि ने पूंजीवादी व्यवस्था ,कलुषित हो चुकी राजनीति और राजनेताओं के छद्म चरित्र से त्रस्त पीड़ित वैश्विक वेदना का वर्णन किया है। कवि की संवेदना, दुनिया भर के देशों में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही जनता के प्रति मुखरित हुई है । एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा दुनिया के किसी भी देश में निवास करनेवाले सभी नागरिकों के शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का रूप एक सामान है। बाह्य रूप से वैविध्य होते हुए भी उनमे आतंरिक , अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है। उनकी भाषा भिन्न है, संस्कृति भिन्न है एवं जीवन शैली भिन्न है , किन्तु उन सभी के चेहरों में छिपी वेदना में कोई भिन्नता दिखाई नहीं देती , तात्पर्य यह है कि उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद, आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया, एक जैसी होती है। समस्याओं से संघर्ष करने का रूप एवं पद्धति समान है। धरती पर फैले दुनिया भर के देशों के लोग जुल्म,अत्याचार और शोषण से पीड़ित है और जनता मुक्ति के लिए संघर्ष कर रही है. विश्व के समस्त देश, प्रान्त तथा नगर सभी स्थान के प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे के पीछे छुपी हुई वेदना और समस्या एक समान हैं।
प्रश्न 2.बँधी हुई मुट्ठियों का क्या लक्ष्य है इस कथन से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर-दुनिया भर के देशों में वहां की जनता के साथ किसी न्किसी रूप में जुल्म ,अत्याचार और शोषण हो रहा है ,चाहे वह देश का कुशासन अथवा कुनीति हो या पूंजीवादी व्यवस्था ,वहां की जनता इस कुव्यवस्था से मुक्ति चाहती है ,वहां की संघर्षरत जनता ने मुट्ठी बांधकर अपने संकल्प का संकेत दे दिया है । त्रस्त,पीड़ित जनता लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक साथ मिलकर मुट्ठियाँ संघर्ष कराती दिखाई दे रही है। मुट्ठियों का बंधना व्यक्ति के भीतर के गुस्से को प्रकट करना व्यक्त करता है जो इस बात का संकेत है कि उसमे अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता तथा प्रतिबद्धता का भाव जागृत हो चूका है है । उसकी बाजुओं में एक नई चेतना ,उर्जा ,स्फूर्ति और उत्साह का संचार हो चुका है। “बँधी हुई मुट्ठियों” शोषित वर्ग की अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता और संकल्पनाशीलता का द्योतक है .
प्रश्न 3.कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है सितारे का इशारा किस ओर है
उत्तर- कवि गजानन मानव मुक्तिबोध ने विश्व के जन-जन के शोषण ,शासकीय-प्रशासकीय कुव्यवस्था तथा वैयक्तिक स्वार्थ से उत्पन्न समस्याओं को कतिपय उद्धरणों के माध्यम से अभिव्यंजित किया है। कवि द्वारा यह कहना कि -“जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक उद्दीपित उसका विकराल से इशारा एक।”.यह कहना शोषित समूह के क्रुद्ध रूप को प्रकट करता है .जिस प्रकार प्रचंडता से फैली हुई अग्नि अपनी चपेट में लेकर उसे जलाकर राख कर देती है ,उसी प्रकार जन-जन का क्रुद्ध रूप प्रचलित कुव्यवस्था को नष्ट कर देगा .व्यवहारिक जीवन में भीं अग्नि और लाल रंग को हिंसा, रक्तपात तथा प्रतिकर के अर्थ में लिया जाता है। जन –जन को भयानक सितारा कहकर कवि संकेत करना चाहता है। कि पीड़ित शोषित वैश्विक समुदाय उत्पीड़न, दमन, अशांति एवं निरंकुश पाशविकता से मुक्ति पाने और संघर्ष के लिए तैयार हो चुका है .
प्रश्न 4.नदियों की वेदना का क्या कारण है
उत्तर-नदियों में बहती हुई वेगवती धाराजुल्म और अत्याचार से त्रस्त -पीड़ित जिन्दगी गुजारनेवाले लोगों के अन्त:मन की वेदना का प्रतीक है। कवि कल-कल कर बहती हुई धारा के प्रवाह से उत्पन्न ध्वनी में त्रस्त-पीड़ित लोगों की वेदना अनुभूत करता है । गंगा, इरावती, नील, आमेजन नदियों की धारा मानव-मन की वेदना का ही प्रकट रूप है । धरती पर अलग-अलग स्थानों पर बहती हुई नदियाँ एक स्थान पर एक साथ मिलकर विकराल रूप धारण कर लेना चाहती है जो इस बात का प्रतीक है कि दुनिया भर के सताए हुए एक ताक़त बन जाने की दिशा में आगे बढ़ रहे है .
प्रश्न 5..“दानव दुरात्मा” से क्या अर्थ है
उत्तर- दुनिया के अधिकांश लोग दारुण एवं अराजक स्थिति में जी रहे है । इसका तात्पर्य है कि दुनिया के हर कोने में ऐसे लोग मौजूद है जो एक वर्ग विशेष का शोषण कर रहे है .जुल्म ,अत्याचर और शोषण के शिकार कुछ गिने-चुने देशो में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है .इसका अर्थ है पाशविक अमानवीय कृत्य करनेवाले दुराचारी भी दुनिया के हर कोने में है .
प्रश्न 7.ज्वाला कहाँ से उठती है कवि ने इसे “अतिक्रद्ध” क्यों कहा है
उत्तर-जब तक कोई स्थिति –परिस्थिति न्यूनावस्था में रहती है ,सब कुछ सामान्य रहता है ,किसी का ध्यान उस ओर नहीं जाता और न वह स्थिति कवि की कविता का कथ्य बनती है किन्तु जब वही स्थिति –परिस्थिति सामान्य से असामान्य बनने लगती है ,जैसे जल की अधिकता से नदी भी किनारे छोड़कर बाढ़ का रूप धारण कर लेती है .इसी प्रकार जुल्म ,अत्याचार और शोषण की अतिशयता से मनुष्य का मन- मस्तिष्क विद्रोह करने लगता है .अंतर की ऊष्मा और ह्रदय की ज्वाला विद्रोह का स्वर बनकर गूंजने लगता है .
प्रश्न 8.समूची दुनिया में जन जन का युद्ध क्यों चल रहा है
उत्तर- दुनिया के अधिकांश लोग दारुण एवं अराजक स्थिति में जी रहे है । इसका तात्पर्य है कि दुनिया के हर कोने में ऐसे लोग मौजूद है जो एक वर्ग विशेष का शोषण कर रहे है .जुल्म ,अत्याचर और शोषण के शिकार कुछ गिने-चुने देशो में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है .इसका अर्थ है पाशविक अमानवीय कृत्य करनेवाले दुराचारी भी दुनिया के हर कोने में है .जब जुल्म,अत्याचार और शोषण एक स्थिति के बाद असह्य हो जाता है ,तब जुल्म ,अत्याचार और शोषण की अतिशयता से मनुष्य का मन- मस्तिष्क विद्रोह करने लगता है .वह न सिर्फ उस व्यवस्था से मुक्त होना चाहता है बल्कि उस व्यवस्था को मिटा देना चाहता है .व्यवस्था में परिवर्तन के प्रयास के कारण समूची दुनिया में जन जन का युद्ध चल रहा है .
प्रश्न 9.कविता का केन्द्रीय विषय क्या है
उत्तर-कविता के केंद्र में कवि ने दुनिया भर के देशो की सामान समस्या और उसके निराकरण को केंद्र में रखकर काव्य का कथ्य सृजित किया है .काव्य के मूल कथ्य पीड़ित और संघर्षशील जनता की आवाज़ है। वह शोषण, उत्पीड़न तथा अनाचार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे है। अपने अधिकारों तथा दमन की दानवी क्रूरता के विरुद्ध विद्रोह का शंखनाद करते है । यह समस्या किसी एक व्यक्ति ,वर्ग ,जाति या समुदाय या देश विशेष की जनता की नहीं है, अपितु पूरी दुनिया के लोगों की है ,पूरी दुनिया के पीड़ित-त्रस्त लोग न्याय, शान्ति, सुरक्षा, के लिए संघर्ष कर रहे है ।मानव द्वारा मानव का दमन एक वैश्विक समस्या है और इसका निस्तारण भी वैश्विक स्तर पर होना चाहिए .
प्रश्न 10.प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य है
उत्तर- मनुष्य धरती के किसी भी कोने ने वास कर रहा हो ,धर्म ,जाति ,भाषा ,सभ्यता –संस्कृति में वैविध्य है किनती मनुष्य के मन-मस्तिष्क में उत्पन्न होने भाव ,विचार और अनुभूति सामान होती है .सुख प्राप्ति पर प्रसन्न होना ,दुःख की स्थिति में क्षुब्ध होना समान भाव है .जब तक कोई स्थिति –परिस्थिति न्यूनावस्था में रहती है ,सब कुछ सामान्य रहता है ,किसी का ध्यान उस ओर नहीं जाता और न वह स्थिति कवि की कविता का कथ्य बनती है किन्तु जब वही स्थिति –परिस्थिति सामान्य से असामान्य बनने लगती है ,जैसे जल की अधिकता से नदी भी किनारे छोड़कर बाढ़ का रूप धारण कर लेती है .इसी प्रकार जुल्म ,अत्याचार और शोषण की अतिशयता से मनुष्य का मन- मस्तिष्क विद्रोह करने लगता है .अंतर की ऊष्मा और ह्रदय की ज्वाला विद्रोह का स्वर बनकर गूंजने लगता है .मनुष्य में प्रेम भाव भी है तो अन्याय के विरुद्ध क्रोध भी है। मनुष्य में प्रेम एवं आक्रोश दोनों भाव समाहित होते है। उनमें यदि प्रेम दया, करुणाऔर सहयोग का भाव है तो अत्याचार, शोषण एवं पाशविकता के विरुद्ध आक्रोश भी है। प्यार का इशारा तथा क्रोध की दुधारा कहने से कवि यहीआशय है।.
प्रश्न 11.पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है
उत्तर-पृथ्वी के प्रसार को अपनी सेनाओं से गिरफ्तार किये रखने से कवि का आशय यह है कि दुराचारी और दानवी प्रकृति के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए है और अपनी प्राप्त शक्तियों से अपने से कमजोर का शोषण कर रहे है ,ऐसे दुराचारियों और दानवी प्रकृति लोग का प्रभाव पूरी पर है ,पूरी दुनिया का आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा मनुष्य पूंजीवादी और शासन की अनीतियों से त्रस्त है . साम्राज्यवादी और सामंतवादी व्यवस्था आज पूंजीवादी व्यवस्था के रूप में पूरी दुनिया में व्याप्त है .
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