bal divas-14 november jawahar lal neharu
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14 नवम्बर , जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस पर विशेष
14 नवम्बर ,
जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस पर विशेष
भारत के प्रथम प्रधान -मंत्री ,आधुनिक भारत के शिल्पी ,बच्चों के चाचा के नाम से विख्यात जवाहर लाल नेहरू जिनका जन्म दिवस १४,नवम्बर , जिसे बाल -दिवस के नाम से मनाया जाता है। नेहरू की शख्सियत जितनी एक राजनीतिज्ञ के रूप में है ,उतनी ही चिंतक ,दार्शनिक ,विद्वान् और साहित्यकार के रूप में भी पहचान रखती है। वे आध्यात्मिक ,सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के साथ-साथ तकनीक और विज्ञानं के समन्वयक के हिमायती थे।उनका व्यक्तित्व और कृतित्व राष्ट्रवादी था। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर गांधीजी की छाया थी ,यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।मनुष्य की कला उसके मस्तिष्क का ही प्रतिबिम्ब होता है ,नेहरू जी का यह कथन उन्ही के चरित्र पर भी चरितार्थ होता है। जो राष्ट्र के लिए मरना नहीं जनता वह ,जीना भी नहीं जनता ,नेहरूजी का यह कथन उनके राष्ट्रवादी होने का प्रमाण है।
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उनके जन्म दिन पर हम उनके राजनितिक जीवन की अपेक्षा उनके चिंतक ,दार्शनिक ,विद्वान् और लेखकीय विचारों का स्मरण करेंगे।
वे गांधीजी की भांति हिंसा मुक्त अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के पक्षधर थे। यह बात अलग है कि धर्म के प्रति गांधीजी और नेहरूजी केविचारों में अंतर था। स्वतन्त्रता के पश्चात् देश जिस जर्जर अवस्था में मिला ,वे प्रधान -मंत्री के दायित्व से भारत को विकसित देशों के समतुल्य खड़ा देखना चाहते थे ,इसके लिए वे तकनीक और विज्ञानं को अनिवार्य मानते थे।देश को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए ही उन्होंने औद्योगिकीकरण को प्राथमिकता दी ।
वे लोकतंत्र की तुलना में वे अन्य व्यवस्था को उचित नहीं मानते थे।लोक तंत्र और समाजवाद लक्ष्य प्राप्त करने के माध्यम है। संस्कृति को उन्होंने मन और आत्मा का विस्तार कहा। उनका मानना था कि महान कार्य और छोटी सोच के लोग एक साथ नहीं चल सकते,महान कार्य के लिए मनुष्य की सोच भी उतनी ही बड़ी होनी चाहिए। वे कहते थे कि अज्ञानी है वे लोग जो परिवर्तन से डरते है ,बनी बनाई लीक पर चलना आसान है ,किन्तु परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए साहस की आवश्यकता पड़ती है । जीवन में डर के अतिरिक्त और कुछ भी बुरा या खतरनाक नहीं है,जो डर गया ,समझो मर गया ।डर के आगे जीत है इसलिए डरना मना है। जो व्यक्ति परेशानियों से डरकर भागता है ,वह शांत बैठे व्यक्ति की तुलना में कहीं ज्यादा विचलित रहता है क्योकि शांत बैठा व्यक्ति चिंतन कर रहा होता है कि समस्या से कैसे बाहर निकला जा सकता है ।जब वह चिंतन से बाहर निकालता है ,समस्या का समाधान लेकर निकालता है। यदि जीवन में शांति ना हो तो जीवन के सारे सपने न सिर्फ बिखर जाते है बल्कि हमेशा -हमेशा के लिए राख हो जाते है क्योकि अशांत व्यक्ति जो कुछ भी वर्तमान में है उसे भी नष्ट कर डालता है ।वे कहते थे कि सफलता उसी को प्राप्त होती है जो अपने को संकट में डालकर लक्ष्य में जुट जाते है।सही भी है डूबने का डर रखनेवाला कभी तैरना नहीं सीख सकता। सही कार्य अपने आप नहीं हो जाता उसे विचारों से संवारना पड़ता है ,क्योकि विचार करके ही उसके अच्छे -बुरे परिणामों को जाना जा सकता है ।उसे सही -गलत का बोध हो जाता है और हम गलती करने से बच जाते है।
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उन्नति ही जीवन है।पत्थर अपना भाग्य स्वयं नहीं लिख सकते है क्योकि उसमे स्वयं परिवर्तन की क्षमता नहीं होती। मनुष्य चेतन है ,उसके पास तीनों बल है -बुध्दि ,भुज और आत्मा। बदली हुई स्तिथि के अनुसार बदलना ही जीवन है। मनुष्य किसी और से नहीं बल्कि अपनी इच्छा-शक्ति की कमज़ोरी से हारता है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वास्तविकता में हम क्या है ,महत्वपूर्ण यह है कि अन्य हमारे बारे में क्या सोचते है ?मनुष्य का आकलन स्वयं मनुष्य नहीं करता और करते है। मनुष्य का आकलन होता है ,उसके सद्चरित्र ,सद्कर्म और सद्विचारों से।जीवन में आने वाली विपत्तियां और अवरोध जीवन को अवरुध्द नहीं करते बल्कि जीवन में आने वाली विपत्तियां और अवरोध हमें कुछ नया सोचने का अवसर देती है।कर्म की सार्थकता फल में नहीं ,उसके पुरुषार्थ में है। कर्महीन ही भाग्य को कोसते है। सफलता प्रयासों की परिणति है किन्तु जो कायर होते है ,अपने आप पर संदेह करते है ,सफलता ऐसे लोगों से दूर ही रहती है। आपत्तियाँ हमें आत्म ज्ञानका बोध कराती है और प्रमाणित कराती है कि हम किस मिटटी के बने है।
समय को इस बात से नहीं मापा जा सकता कि आपने कितना समय बिताया ,समय को इस बात से मापा जाता है कि आपने इतने समय में क्या खोया और क्या पाया ?जो अपने ही मुँह से अपनी प्रशंसा करें यह इस बात का संकेत है कि वह ऐसा करके अपनी कमज़ोरी छुपाने की कोशिश कर रहा है ,ठीक वैसे ही जैसे सूरज को यह प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती कि मै सूरज हूँ और ये जो उजाला है वह वह मेरा फैलाया हुआ है ,इसी तरह समय भी स्वानुभूत होता है । बुद्धिमान दूसरों के अनुभव का लाभ उठाते है,क्योकि नया सीखना उद्देश्य ,आदर्श और सिद्धान्तों को भूलकर मनुष्य कभी सफल नहीं हो सकता। कार्य की क्रियान्विति के लिए आवश्यक है कि हमारा लक्ष्य स्पष्ट हो। नेहरूजी का विश्वास बातें कम -काम ज्यादा के सिद्धांत में था। बातों में जितना समय बिताएंगे उतने समय में कोई छोटा किन्तु महत्वपूर्ण कार्य किया जा सकता है। बुराई का सदैव विरोध होना चाहिए अन्यथा बुराई को बर्दाश्त करने से वह ज़हर की तरह बढ़ाने लगती है। शरीर को जकड़ने वाली जंज़ीरों से ज्यादा बुरी है हमारे संकीर्ण विचारों की जंज़ीरें ,जिसे हम खुद हम खुद बनाते है. हर जीवित चीज परिवर्तन करती है ,सिर्फ मुर्दें परिवर्तन नहीं करते। तस्वीर का चेहरा दीवार की तरफ मोड़ देने से इतिहास नहीं बदल जायेगा।
यद्यपि उनके सम्बन्ध में विरोधी बातें भी प्रचलित है किन्तु हम मनुष्यों को चाहिए कि हम अच्छी बातों को ग्रहण करें जो हमें प्रेरणा देती है ,चाहे वह व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन चाहे जो रहा हो। दुर्भावना से ग्रसित भावना ना रख कर उनकी अच्छी बातों का सम्मान करे ,अच्छी बातों अच्छे कार्य ,अच्छे विचारों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करे।
एक राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने देश के विकास में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ,उसके प्रति देश और देशवासी उनके जन्म दिन पर श्रद्धा और सम्मान से याद करता है।
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जीवन परिचय
नाम -जवाहर लाल नेहरू
पिता -मोती लाल नेहरू
माता -स्वरुप रानी
जन्म -तिथि -१४ नवम्बर ,१८८९
जन्म-स्थान -इलाहबाद
शिक्षा -ट्रिनिटी कॉलेज
विवाह- ८फरवरी ,१९१६
पत्नी -कमला देवी
सन्तान -इंद्रा (पुत्री)
जेल यात्रा -९ बार (पहली बार -१९२१ )
कांग्रेस अध्यक्ष -१९२९
पद -प्रधान -मंत्री (१९४७ से २७ मई १९६४ तक )
सम्मान-भारतरत्न
लेखन -विश्व इतिहास की झलक /भारत एक खोज ,आत्म-जीवन
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