सामान्य जन में यह धारणा है कि अनंत चतुर्दशी का सम्बन्ध भगवान श्री गणेश से है और आम तौर पर गणेश प्रतिमा विसर्जन के रूप में जाना जाता है .जबकि अनंत चतुर्दशी और श्री गणेश में सम्बन्ध सिर्फ इतना है कि गणेश चतुर्थी पर जिन श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई थी ,उसके दसवें दिन स्थापित की गई प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है . अनंत चतुर्दशी मुख्य रूप से अनंत भगवान के व्रत के रूप में मनाया जानेवाला व्रत दिवस है ,जो भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर किया जाता है .
गणेश चतुर्दशी सामूहिक रूप से मनाया जानेवाला त्यौहार है ,जबकि अनंत चतुर्दशी व्यक्तिगत रूप से मनाया जानेवाला व्रत और पूजन का दिन है .मुख्य रूप से त्रिताप (दैविक,दैहिक और भौतिक ) से अभिशप्त और संतप्त जन ही कष्टों से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत का पालन करते है .
अनंत देव कौन है ?
अनंत देव भगवान श्री हरी का ही एक रूप है .भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों में से भगवान को अनंत भी कहा गया है .
क्यों मानते है अनंत चतुर्दशी ?
अनंत चतुर्दशी व्रत का महात्म्य पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है .अनंत चतुर्दशी को किया जानेवाला यह व्रत ,वह व्रत है ,जिसकी अनुशंसा स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से की थी .भगवान श्री कृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने अपने भाइयों सहित अनंत देव का व्रत किया और युध्द में विजय प्राप्त कर अपना राज्य पुन: प्राप्त किया . अनंत चतुर्दशी पर अनंत भगवान का पूजन किया जाता है,जो भगवान विष्णु का ही एक रूप है .इस पूजन में भगवान विष्णु के साथ -साथ यमुना और शेष नाग की भी पूजा की जाती है .पूजा में प्रयुक्त कलश यमुना का , दूर्वा शेषनाग का तथा १४ गांठों वाला सूत्र भगवान अनंत का प्रतीक माना जाता है . १४ गांठों वाला सूत्र भगवान विष्णु के चौदह लोको का भी प्रतीक है . अनंत व्रत को भगवान विष्णु को प्रसन्न करनेवाला तथा उनके द्वारा समस्त पापों का नाश करके अनंत फल देनेवाला माना गया है .और अनंत सूत्र को संकट से रक्षा करनेवाला माना गया है .इस व्रत का पालन करने वाले पुरुष दायें हाथ में तथा स्त्रियाँ बांयें हाथ में अनंत सूत्र बांधते है .इस अनंत चतुर्दशी को बाँधा गया अनंत सूत्र अगली अनंत चतुर्दशी पर उतार कर विसर्जित कर दिया जाता है .तथा नया सूत्र बाँध लिया जाता है .जैसे अनंत चतुर्दशी का व्रत करनेवाला रक्षा सूत्र बांधता है ,वैसे ही उसे भगवान श्री कृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई गई कथा का पठान ,श्रवण करना पड़ता है .
अनंत चतुर्दशी से जुडी अंतर्कथा इस प्रकार है,जिसे भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था –
गंगा तट पर धर्मराज युधिष्टिर ने जरासंध के वध के लिए राजसूय यज्ञ किया | इस प्रायोजनार्थ भव्य यज्ञशाला बनवाई | इस यज्ञशाला की विशेषता थी कि जल वाला भाग भू समान और भू भाग जल स्थान सा प्रतीत होता , भ्रमवश कोई भी जल को थल थल को जल समझ बैठता |
जब दुर्योधन वहा से गुजरा तो थल को जल समझ कर वस्त्र ऊचाकर चलने लगा , यह देख द्रौपदी को हँसी आ गई |
दुर्योधन आगे बढकर जल को भूमि समझ कर उसमे गिर गया | यह देखकर द्रौपदी सहित अन्य स्त्रियाँ हंसने लगी | इस अपमान से दुर्योधन क्रुद्ध हो उठा | अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए दुर्योधन ने हस्तिनापुर पहुँच कर दुयुत क्रीडा के बहाने पांडवो को हस्तिनापुर आमंत्रित किया और छल से पांडवो का राज्य हथिया लिया | तदन्तर पांडव कष्ट पाते हुए वन – वन भटकने लगे, समाचार पाकर भगवान श्री कृष्ण पांडवो से मिलने वन मे गए | धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से दारुण दुःख से मुक्त होने का उपाय पूछा | तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा की अनन्त का व्रत कर कष्टो से मुक्त हुआ जा सकता है, जो भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होता है|
युधिष्टिर ने पूछा – यह अनंत देव कौन है ?
तब भगवान श्री कृष्ण ने बतलाया कि – इसे हमारा ही रूप जानो , जिन्हें कलादि कहा जाता है ,वही अनंत है |
श्री कृष्ण के वचन सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर अनंत का व्रत का म्हाताम्य और पूजन विधि बतलाने की प्रार्थना करते है |
तब भगवान श्री कृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को अनंत व्रत की कथा सुनाते हुए कहते है कि – सतयुग मे सुमंत नाम का एक ब्राह्मण था , जिसका विवाह भृगु ऋषि की कन्या दीक्षा के साथ हुआ | उन दोनों की एक पुत्री थी शीला | पुत्री के जन्म के पश्चात् दीक्षा काल कवलित हो गई ,तत्पश्चात ब्राह्मण सुमंत ने दुशीला नाम की स्त्री से पुनर्विवाह कर लिया। ब्राह्मण सुमंत की दूसरी पत्नी नाम के अनुकूल दुष्ट स्वभाव और कर्कश वचन बोलने वाली स्त्री थी। ब्राह्मण सुमंत की पुत्री शीला विवाह योग्य हुई तो ब्राह्मण सुमंत ने वेद वेदांग जानने वाले कौण्डिन्य मुनि से अपनी पुत्री शीला का विवाहकर दिया।
विवाहोपरांत रीति अनुसार जब कौण्डिन्य मुनि ने पत्नी दुशीला से जमाता को कुछ द्रव्य पदार्थ देने के लिए कहा तो पत्नी ने स्वाभाव के अनुसार कुटिलता का परिचय देते हुए कुछ न दिया | मुनि कौण्डिन्य मुनि अपनी नव विवाहिता वधू को लेकर आश्रम की ओर बढ़ गए। मार्ग में विश्राम के लिए विराम किया .समीप ही नदी तट पर स्त्रियों का एक समूह पूजन कर रहा था .शीला ने स्त्री समूह के निकट आकर पूजन के प्रयोजन एवं विधि के बारे में पूछा .स्त्री समूह में से एक स्त्री ने बतलाया कि हमने अनंत का व्रत किया है और उन्ही अनन्त भगवान का पूजन कर रही है .इस व्रत को करनेवाला प्रस्थ मात्र अर्थात एक सेर आटे के माल पुए बनाकर आधा ब्राह्मण को दे देता है और शेष आधे को स्वयं और कुटुंब जन प्रसाद रूप में गृहण करते है .यथा शक्ति ब्राह्मण को दक्षिणा दी जाती है .इस व्रत का पूजन नदी तट पर होता है तथा हरि कथा का श्रवण किया जाता है . कुशा का शेषनाग बनाकर बाँस पात्र में रखकर ,मंडप में सविधि पूजन होता है . सूत का धाँगा ,केशर में रंगकर उसमे चौदह गाँठ देकर बांये हाथ में बाँधा जाता है .अनंत देव से प्रार्थना की जाती है कि हे अनंत देव हम संसार रूप सागर में डूबे हुओ का उद्दार करें ,अपने रूप में लींन करें .हे सूत्र रुपी अनंत भगवान ,आपको बारम्बार नमन ,इस भाव से अनंत भगवान का सूत्र बांये हाथ में बांधकर ,भोजन प्रसादी गृहण करते है .
स्त्रियों से अनंत व्रत का महाम्त्य व पूजन की जानकारी लेकर शीला ने भी अनंत व्रत का निश्चय कर लिया। .समयान्तर में अनंत व्रत का प्रभाव दिखाई देने लगा .शीला का घर धन –धान से भरपूर हो गया .
एक दिन कौण्डिन्य की दृष्टि शीला के हाथ में बंधे हुए अनंत सूत्र पर पड़ गई , कौण्डिन्य ने शंकित भाव से कहा ,क्या तुमने यह सूत्र मुझे वश में रखने के लिए बाँधा है ?तब शीला ने बतलाया कि यह वह सूत्र है ,जिसके प्रताप से ही हम धन –धान्य से परिपूर्ण होकर सुखी जीवन व्यतीत कर रहे है .किन्तु कौण्डिन्य को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और उसने बाँह में बंधे हुए सूत्र को तोड़कर अग्नि में डाल दिया . इस पाप से कौण्डिन्य का सारा वैभव नष्ट हो गया .कौण्डिन्य संपन्न से विपन्न हो गए ,देह संतप्त हो गई और मन दुखी रहने लगा . कौण्डिन्य ने पत्नी शीला से इस स्थिति का कारण पूछा .शीला ने बतलाया कि अनंत सूत्र को अग्नि में जलाने का जो पाप कर्म आपसे हुआ है ,यह उसी का दुष्परिणाम है .
इस स्तिथि से उबरने के लिए कौण्डिन्य ने भगवान अनंत की शरण में जाने का निश्चय किया .वह गृह त्याग कर वन में अनंत भगवान की खोज में निकल गए .मार्ग में जो भी मिलता,उससे पूछते –अनन्त भगवान कहाँ मिलेगे ? मार्ग में एक आम्र वृक्ष से पूछा, एक गाय से पूछा , एक बैल से पूछा, दो पुष्करिणियों से पूछा, एक हाथी से पूछा ,एक गर्दभ से पूछा किन्तु सभी ने अज्ञानता प्रकट की। कौण्डिन्य निराश होकर भूमि पर गिर गए .चेतना लौटने पर उन्होंने मन ही मन देह त्याग का निश्चय कर लिया .अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए जैसे ही वृक्ष की डाल में फंदा लगाकर गले में डालना चाहा,उसी समय दयार्द ह्रदय अनंत भगवान वृध्द ब्राह्मण के रूप में प्रकट हो गए .कौण्डिन्य ने अपनी व्यथा सुनाई. वृध्द ब्राह्मण कौण्डिन्य को अपने साथ एक गुफा में ले गए ,जहाँ एक दिव्य सिंहासन पर भगवान बैठे हुए थे –जिनके अगल-बगल में शंख ,चक्र ,गदा ,पद्म ,गरुड़ सुशोभित हो रहे थे .अतिशय प्रकाशमान स्वरुप भगवान को देखकर प्रणाम करते हुए कौण्डिन्य ने कहा –हे पुण्डरीकाक्ष ,हम पाप कर्म करनेवाले ,हमारी आत्मा पाप रूप है .हम पाप से उत्पन्न है ,रक्षा करें .आप मेरे समस्त पापों को क्षमा करें .उन्मतावस्था में अनंत सूत्र तोड़ने का पाप कर्म मुझसे हुआ है .अपने पाप कर्म का प्रायश्चित करने के लिए आपके दर्शनार्थ भटक रहा था .अब आपके दर्शन कर मै कृतार्थ हुआ .अब आप कृपा कर मुझ अधम को कष्टों का निस्तारण का उपाय भी बता दीजिये .कौण्डिन्य के ऐसा निवेदन करने पर भगवान ने उपाय बताते हुए कहा कि तुम भक्ति भाव से चौदह वर्ष तक अनंत का व्रत करो ,इस व्रत के सम्पूर्ण होने पर तुम्हे अभीष्ट की प्राप्ति होगी और अंत में मुझे प्राप्त होओगे .कल्याण करनेवाले इस अनंत व्रत कथा का जो भी प्राणी श्रवण करेगा ,पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होगा .मनुष्य अपने पाप कर्मों को ही भोगता है .तुमने मार्ग में जो आम्र वृक्ष ,गाय .बैल ,पुष्करीणी,गर्दभ हाथी देखा ,वे सब अपने कर्मों के कारण ही है और अंत में जिस ब्राह्मण से तुम मिले ,वह और कोई नहीं ,मै ही था .यह गुफा कठिन संसार है ,
ऐसा कहकर अनंत भगवान अंतर्ध्यान हो गए .
कौण्डिन्य मुनि की कथा सुनाने के बाद भगवान श्री कृष्ण में कहा कि जिस प्रकार कौण्डिन्य मुनि को चौदह वर्ष में अनंत व्रत का पालन करने का फल मिला ,वैसे ही इस व्रत को करने से अनंत देव की कृपा से तुम्हारा भी अभीष्ट पूर्ण होगा .हे धर्मराज व्रतों में जिस उत्तम व्रत के बारे में मैंने कहा है ,जिसके श्रवण से प्राणी समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और प्रभु पद को प्राप्त करता है .जो प्राणी संसार रुपी गुफा में सुख खोज रहे है ,उन्हें तीनों लोको के स्वामी अनंत देव का पूजन कर ,सूत्र हाथ में बांधना चाहिए .इसी उद्देश्य से यह कथा मैंने तुमसे कही है . भगवान श्री कृष्ण की सलाहानुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों सहित अनंत व्रत का पालन किया .अंत में युध्द में विजय प्राप्त कर खिया हुआ राज्य और सुख प्राप्त किया .
विशेष – वैसे तो अनंत पूजन शास्त्रानुसार षोडशोपचार विधि से मंत्रोच्चारण द्वारा किया जाना चाहिए जो कि सामान्य जन के लिए जटिल साध्य हो सकता है अत एवं अपने नगर के ही किसी ब्राह्मण पंडित द्वारा पूजा विधान करना ठीक रहेगा .यदि संभव न हो तो स्वयं द्वारा अपने गृह निवास पर ही सरल -संक्षिप्त रूप में भी पूजन किया जा सकता है.भगवान को अपने भक्त कर्म -कांड से नहीं भाव प्रवणता से प्रिय होते है .
अनंत देव की सरल एवं संक्षिप्त पूजन विधि
अनंत चतुर्दशी 2022 शुभ मुहूर्त
Anant Chaturdashi ,9-sep.2022, friday
Pujan Timing –
हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि 8 सितंबर,शुक्रवार को रात्री 9 बजकर 02 मिनट से प्रारंभ होकर 9 सितंबर,शनिवार को शाम 6 बजकर 07 मिनट तक रहेगी ।
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त सुबह 6 बजकर 03 मिनट से शाम 6 बजकर 07 मिनट तक रहेगा।
पूजन की पूर्व तैयारी-
विधि -विधान से पूजा कर्म में भूल वश त्रुटिना रह जाये ,इस हेतु पूजन प्रारम्भ करने से पूर्व निम्नलिखितपूजन सामग्री पूजा स्थल पर एक जगह एकत्र कर ले – सामग्री –शेष नाग पर विश्राम करते हुए श्री विष्णुजी का एक चित्र /एक मिटटी का कलश /चावल /कपूर/धूप/दूर्वा /पुष्प-पुष्पमाला /ऋतुफल /नैवेद्य -माल -पुआ /अनंत सूत्र के लिए धाँगा /यज्ञोपवीत /पान/सुपारी /लौंग /इलायची /पंचामृत हेतु -दूध ,दही ,घी ,शहद ,शक्कर
स्नानादि से निवृत होकर पूजा स्थल पर भगवान विष्णु का वह चित्र जिसमे भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर में शेष नाग पर शयन करते हुए चित्रित किया गया हो ,रख ले / चौदह गाँठ लगा हुआ सूत्र (धागा ),इसे कुमकुम या हल्दी में रंग ले .
नैवेद्य के लिए एक किलो आटे के माल पुए.
पूजा स्थल पर रोली या चावल से भूमि पर अष्ट दल बना ले .
पूजा स्थल पर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख कर गणेश प्रतिमा के समक्ष ऊन ,कम्बलया कुश से बने आसन पर बैठ जाये
शिखाबंधन कर माथे पर तिलक लगाए
ॐ केशवाय नमः … ॐ माधवाय नमः। … ॐ नारायणाय नमः इन मन्त्रों का उच्चारण करते हुए जल से ३ बार आचमन करे
तत्पश्चात ॐ ऋषिकेशाय नमः का उच्चारण कर हस्त प्रक्षालन कर ले
पवित्रीकरण हेतु स्वयं तथा पूजन सामग्री पर जल प्रोक्षण करते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें –
अब चौकी पर कुछ अक्षत रखे ,तदुपरांत सुपारी पर मौली लपेटकर अक्षत पर रखे (यह श्री गणेश के प्रतीकहै ) ध्यान – सर्वप्रथम मन ही मन गणेशजी के रूप का ध्यान करें ,उस ध्यान मे श्री गणेश जी का जो भाव रूप चित्र उभरे ,उसे संबोधित करते हुए कहे-हे गणपति ,मै आपको प्रणाम करता हूँ
कलश पूजन – कलश में जल भर ले और फिर चावल या रोली से बने अष्ट दल पर रख दे हाथ जोड़कर कहे – ॐ अपां पतये वारुणाये नम:
यमुना जी का ध्यान करें – सरस्वति ,नमतुभ्यम सर्व काम प्रदायिनी आगच्छ देवियमुने व्रत सम्पूर्ति हेतवे 1-आहावन /स्थापन – हे अनंत देव ,आपको नमन ,मै आपका स्थापन हेतु आहावन करता हूँ ,आप पधारे तथा यहाँ प्रतिष्ठित होए 2-आसन- हे अनंत देव,आपको नमन,आसन ग्रहण करें 3-पाद्य हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपके चरणों का प्रक्षालन करने हेतु जल समर्पित करता हूँ ,स्वीकार करें 4-अर्घ्य हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपको गंध मिश्रित अर्घ्य जल समर्पित करता हूँ 5-आचमन हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपको आचमन के लिए जल समर्पित करता हूँ 6-स्नान सामान्य जल से स्नान कराते हुए कहे – हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपको पाप हारिणी गंगा के जल से स्नान करवाता हूँ , पंचामृत से स्नान कराते हुए कहे – हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपको दही,दूध ,शक्कर ,घी और शहद मिश्रित पंचामृत से स्नान करवाता हूँ शुद्धोदक स्नान – सामान्य जल से स्नान कराते हुए कहे- हे अनंत देव,आपको नमन,मै आपको गंगा ,यमुना ,सरस्वती ,नर्मदा ,गोदावरी आदि पवित्र नदियों के जल से स्नान करवाता हूँ 7-वस्त्र वस्त्र के रूप में मौली चढाते हुए कहे- हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपको शीत,वायु ,उष्ण से रक्षार्थ व लज्जा रक्षक वस्त्र व उप वस्त्र समर्पित करता हूँ 8-यज्ञोपवीत (जनेऊ ) हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपको यज्ञोपवीत समर्पित करता हूँ ,स्वीकार करें 9-गंध हे अनंत देव , ,आपको नमन,मै आपको चन्दन समर्पित करता हूँ
10-पुष्प हे अनंत देव , ,आपको नमन,आपको नमन,मै आपको पुष्प एवं पुष्प माला समर्पित करता हूँ 11-धूप हे अनंत देव , ,आपको नमन,आपको नमन,मै आपको शुध्द गंध रूप वनस्पति रस से निर्मित धूप समर्पित करता हूँ 12 -दीप दीप दर्शन कराते हुए कहे – हे अनंत देव ,आपको नमन,मै आपको अंधकार का नाश करनेवाला पवित्र ज्योति स्वरूप दीप दर्शित करता हूँ ( दीप दिखने के बाद हाथ धोले लें ) 13-नैवेद्य हे अनंत देव ,,आपको नमन,मै आपको नैवेद्य रूप मे दुग्ध ,घृत और शर्करा युक्त भक्ष्य व भोज्य आहार माल पुआ समर्पित कर रहा हूँ ,स्वीकार करें ( तत्पश्चात मुख शुद्धि और हस्त प्रक्षालन हेतु जल छोड़े ) 14- ताम्बूल हे अनंत देव , ,आपको नमन,मै आपको मुख वासार्थ लवंग ,इलायची और सुपारी युक्त ताम्बूल समर्पित कर रहा हूँ ,स्वीकार करें दक्षिणा समर्पण यथा शक्ति धातु के सिक्के अथवा मुद्रा तथा एक नारियल हाथ मे लेकर कहे – हे अनंत देव ,,आपको नमन,मै यह आपको दक्षिणा रूप मे समर्पित कर रहा हूँ ,स्वीकार करें 15-प्रदक्षिणा हे अनंत देव ,आपको नमन,(मन ही मन प्रार्थना करें कि-)ज्ञात अथवा अज्ञात रूप से जो पाप हुआ है ,वह पद -पद पर परिक्रमा कराते हुए नष्ट हो जाए 16-पुष्पांजलि हाथ मे पुष्प लेकर हे अनंत देव , ,आपको नमन,मै आपको लगनेवाले पुष्प समर्पित कर रहा हूँ ,स्वीकार करें ( ऐसा कहते हुए हाथों के पुष्प प्रतिमा के समक्ष छोड़ दे ) _ आरती (थाली में कपूर जलाकर आरती करें ) अनंत सूत्र प्रार्थना – दोनों हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहे- हे अनंत देव आपको नमन ( अ ) सभी परिजन अनंत सूत्र ग्रहण करें (ब ) सभी परिजन अनंत सूत्र बाह पर बाँध ले मन्त्र उच्चारण करें – अनंत संसार महा समुद्रे मग्नं समभ्युध्द्र वासुदेव अनंर रूपं विनियोजयस्व अनंत सूत्राय नमो नमस्ते ॐ जय जगदीश हरे ,स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करे ॐ जय जगदीश हरे जो ध्यावे फल पावे ,दुःख विनसे मन का,स्वामी दुःख विनसे मन का सुख सम्पति घर आवे ,कष्ट मिटे तन का ॐ जय जगदीश हरे मात-पिता तुम मेरे ,शरण गहूं मै किसकी स्वामी शरण गहूं मै किसकी तुम बिन और ना दूजा ,आस करु मै किसकी ॐ जय जगदीश हरे तुम पूरण परमात्मा तुम अन्तर्यामी ….स्वामी तुम अन्तर्यामी पार ब्रह्म परमेश्वर ,तुम सबके स्वामी ॐ जय जगदीश हरे तुम करुणा के सागर ,तुम पालन कर्ता … स्वामी तुम पालन कर्ता मै मूरख खल कामी ,कृपा करो भर्ता ॐ जय जगदीश हरे तुम हो एक अगोचर ,सबके प्राणपति ….स्वामी सबके प्राणपति किस विधि मिलू दयामय ,तुमको मै कुमति ॐ जय जगदीश हरे दीन बंधु दुःख हर्ता ,ठाकुर तुम मेरे …स्वामी ठाकुर तुम मेरे अपने हाथ उठाओ ,द्वार पड़ा तेरे ॐ जय जगदीश हरे विषय विकार मिटाओ ,पाप हरो देवा …स्वामी पाप हरो देवा श्रध्दा भक्ति बढाओ ,संतान की सेवा ॐ जय जगदीश हरे श्री जगदीश की आरती जो कोई नर गावे ….स्वामी जो कोई नर गावे कहत शिवानन्द स्वामी ,सुख सम्पति पावे ॐ जय जगदीश हरे ,स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करे ॐ जय जगदीश हरे
ॐ जय जगदीश हरे
विसर्जन /क्षमा याचना
पूजा में रह गयी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करे –
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