30 january-death anniversary of mahatma gandhi

mahatma gandhi
30 january-
death anniversary of mahatma gandhi
दृश्य -79
स्थान -बिरला मंदिर परिसर
समय – शाम (३० जनवरी ,१९४८ )
पात्र -महात्मा गाँधी ,मनु (पौत्री ),कुछ अनुयायी ,नाथू राम गोडसे
long shot
( महात्मा गाँधी अपनी पौत्री मनु के कंधे का सहारा लिए परिसर में प्रवेश कर रहे है।
सामने से एक युवक लगभग दौड़ाता हुआ आता है और झुककर प्रणाम करता है।
मनु – अभी हटिये …. बापू को प्रार्थना में देरी हो रही है ….. पहले ही बहुत देर हो चुकी है
युवक पिस्तौल निकालता है और एक के बाद एक तीन फायर करता है
आवाज़ -धाय … धाय ….. धाय
(संन्नाटा )
गाँधी जी नीचे गिर जाते है
गाँधीजी -(टूटते स्वर में )हे राम
डिजाल्व
यह था गांधीजी के जीवन की पठकथा का अंतिम दृश्य ,किसी फिल्म का नहीं बल्कि वास्तविक जीवन का। इस पठकथा का अंत किसने लिखा ? परम पिता परमेश्वर ने या नाथू राम गोडसे ने ,यह कहना मुश्किल है।
इससे पूर्व के दृश्य में गांधीजी सरदार वल्लभ भाई पटेल से वार्ता कर रहे थे, जो जवाहर लाल नेहरू और पटेल के वैचारिक मतभेदों को दूर करने के सम्बन्ध में हो रही थी।
यह दृश्य बदल भी सकता था ,यदि पूर्व में गांधीजी की हत्या के प्रयास की योजना सफल हो जाती ,जो २० जनवरी के लिए रची गयी थी।स्थान और समय बदल जाता ,गांधीजी की हत्या करने वाला पात्र बदल जाता ,हत्या करनेवाले की भूमिका नाथूराम गोडसे की जगह मदन लाल पाहवा होता।मारने का तरीका अलग होता। गाँधीजी पिस्तौल की जगह बम से मारे जाते। बस ,एक बात comman होती -मरना गाँधीजी को ही था। गांधीजी की पुण्य – तिथि ३०जंवरी ,१९४८ की जगह २० जनवरी, १९४८ होती।
गाँधीजी की हत्या का षड्यंत्र रचनेवालों में कुल आठ लोग थे –नाथूराम गोडसे ,शंकर किस्तैया ,दिगम्बर बड़गे ,सावरकर ,गोपाल गोडसे ,मदन लाल पाहवा विष्णु राम कृष्ण करकरे और नारायण आप्टे
शंकर किस्तैया ,दिगम्बर बड़गे ,सावरकर मुकदमे से बरी हो गए गोपाल गोडसे ,मदन लाल पाहवा ,विष्णु राम कृष्ण करकरे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी और नाथूराम गोडसे तथा नारायण आप्टे को फांसी दे दी गयी। 
३० जनवरी , १९४८ की वह शाम जिसने सत्य और अहिंसा के उस पुजारी को दुनिया से छीन लिया उस राजनीतिज्ञ महात्मा को ,जिसने पूरी दुनिया यह दिखा दिया कि राजनीति में भी सशस्त्र क्रांति के बिना भी परिवर्तन किया जा सकता है।
ऐसे राजनीतिज्ञ महात्मा को उनकी पुण्य तिथि पर शत -शत नमन
गांधीजी के प्रेरक कथन –
मौन क्रोध को जितने की रामबाण औषधि है
संकल्प के प्रति दृढ रहनेवाला कृशकाय मनुष्य भी इतिहास बदल सकता है
क्रोध एक प्रचंड अग्नि है जो इस अग्नि को काबू में कर लेगा वो इसे बुझा भी देगा
भूल पाप नहीं किन्तु उसे छिपाना महापाप है। अपनी भूल को स्वीकारना उस झाड़ू के सामान है जो गन्दगी को साफ़ कर उसे स्वच्छ बना देती है। हर भूल एक नई शिक्षा देती है
अपने मुँह से अपनी तारीफ करना इस बात का प्रमाण है ,उसमे अपनी कोई योग्यता नहीं है
प्रार्थना नम्रता की पुकार है आत्म-शुद्धि और आत्म-निरीक्षण का आह्वान आव्हान है। प्रार्थना पश्चाताप का चिह्न है। प्रार्थना हमारे अधिक अच्छे ,अधिक शुद्ध होने की आतुरता का सूचक है
स्वच्छता ,पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं है
यदि आपको अपने उद्देश्य ,साधन और ईश्वर में आस्था है ,विश्वास है तो सूरज की प्रचंड गर्मी भी शीतलता प्रदान करेगी
लड़ते-लड़ते मरना जाना ,कायर बनकर जीने से कहीं ज्यादा अच्छा है
कुरीति के अधीन होकर जीना कायरता है और उसका विरोध करना पुरूषार्थ है
यौवन विकारों को जीतने के लिए मिला है ,इसे व्यर्थ मत गवाओ
प्रेम की शक्ति दंड की शक्ति से हज़ार गुना प्रभावी और स्थाई होती है
गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं क्योकि उसकी सुगंध ही उसका उपदेश है
ह्रदय की पवित्रता ही वास्तविक सौन्दर्य है
सुख बाहर से मिलने वाली चीज नहीं ,अहंकार का त्याग किये बिना इसे नहीं पाया जा सकता
पाप से घृणा करो ,पापी से नहीं
सही और गलत के बीच भेद करने की क्षमता ही मनुष्य को पशुओं से भिन्न बनाती है
मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि धर्म का राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है। धर्म से अलग होकर राजनीति मृत शरीर के समान है ,जला देने योग्य है।
आचरण रहित विचार ,चमक रहित मोती के सामान है
जो समय बचाते है ,वे धन बचाते है ,और बचाया हुआ धन कमाए हुए धन के बराबर है
जिस व्यक्ति ने अपनी इच्छाओं का त्याग कर दिया हो और मन को अहंकार से मुक्त कर लिया हो वही सच्ची शांति पा सकता है
विश्वास करना एक गुण है ,अविश्वास दुर्बलता का चिह्न है
काम की अधिकता नहीं ,अनियमितता आदमी को मार डालती है
कोई भी संस्कृति अपने को अन्य संस्कृति से अलग रखकर ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकती।
परमेश्वर को सत्य कहने की अपेक्षा सत्य को ईश्वर कहना ज्यादा उपयुक्त होगा







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