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September 8, 2022
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मैंने आहुति बनकर देखा/हिरोशिमा,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’  

मैंने आहूति बनकर देखा/हिरोशिमा ,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

मैंने आहुति बनकर देखा

                मैं कब कहता हॅूं ………………………… शूल बने

                मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,

मैं कब कहता हूँ जीवन-मरु नन्दन-कानन का फूल बने?

काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,

मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रान्तर का ओछा फूल बने?

मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले?

मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले?

मैं कब कहता हूँ विजय करूं-मेरा ऊँचा प्रासाद बने?

या पात्र जगत् की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने? द्य

पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे?

नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे?

मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने-

फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने।

प्रश्न-1     कवि के अनुसार वास्तविक  जीवन क्या है।

उत्तर     कवि के अनुसार दुःख के मार्ग पर गुजरते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना ही वास्तविक जीवन है।

प्रश्न-2     कवि के अनुसार कौनसा जीवन सार्थक है?

उत्तर     कवि के अनुसार वही जीवन सार्थक है जो दूसरों की पीड़ा हरने के लिए बीज की तरह अपने आपकों मिट्टी में रोप दें।

प्रश्न-3     कवि की क्या कामना नहीं है?

उत्तर     कवि यह कामना नहीं करता कि संसार कवि के अनुसार हो जाए और जीवन में कभी कोई कष्ट न हो।

प्रश्न-4     कवि अपने जीवन रूपी रेगिस्तान को कैसा नहीं बनाना चाहता?

उत्तर     कवि अपने जीवन रूपी रेगिस्तान को देवताओं के नन्दन वन की तरह सदैव खिलता महकता नहीं बनाना चाहता।

प्रश्न-5     कठोरता और नुकीलापन कांटे की पहचान है तो जीवन की पहचान क्या है?

उत्तर     जीवन की पहचान जीवन में आने वाली विषम स्थितियों से गुजरने में है।

प्रश्न-6     कवि ने जीवन को कैसा बतलाया है?

उत्तर     कवि ने जीवन को अन्तहीन युद्ध बतलाया है, जिसमें कष्टदायी घाव लगते रहते है।

प्रश्न-7     कवि ने प्रेम के संबंध में क्या विचार व्यक्त किये है?

उत्तर     कवि प्रेम के प्रतिफल में प्रेम पाने की अपेक्षा नहीं रखता।

प्रश्न-8     कवि ने अपने जीवन से क्या-क्या नहीं चाहने की बात कही है?

उत्तर     कवि विश्व विजेता बनकर दुनिया को अपने कदमों में झुकाना नहीं चाहता, कवि ऐसा वैभव नहीं चाहता जिसके समक्ष संसार का सौन्दर्य फीका पड़ जाए और कवि नहीं चाहता कि उसका यशोगान हो और उनकी जन्म अथवा पुण्य तिथि पर उन्हें याद किया जाए कवि सदैव सफल और श्रेष्ठ बने रहने की इच्छा नहीं रखता

प्रश्न-9     कवि किस बात की परवाह नहीं करता?

उत्तर     कवि इस बात की परवाह नहीं करता कि कही उसका नेतृत्व न छीन जाए ।

प्रश्न-10   पद्यांश में प्रयुक्त अलंकार के नाम बताओं?

उत्तर     उपमा, रूपक, अनुप्रास

प्रश्न-11   कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-मैने आहुति बनकर देखा और कवि का नाम है-अज्ञेय

।ण्        अपने जीवन ………………………… नीख प्यार बनें

2.

अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है-

क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसू की माला है?

वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-

वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन-कारी हाला है

मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-

मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है!

3. मैं कहता हूँ मैं बढ़ता हूँ मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ

कुचला जाकर भी धूली-सा आँधी-सा और उमड़ता हूँ

मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने

इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने!

भव सारा तुझको है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-

तेरी पुकार-सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने!

प्रश्न-1     उक्त काव्यांश में कवि ने कौनसा दृष्टि कोण व्यक्त किया है?

उत्तर     कवि का मानना है कि जीवन शक्ति केवल सुख साधनों को संग्रह करने का नाम नहीं है जीवन शक्ति विषम परिस्थितियों से संघर्ष करने का नाम है।

प्रश्न-2     प्रेम के सम्बन्ध में कवि ने विचार प्रकट किया?

उत्तर     कवि के अनुसार प्रेम दुख में ऑंख से गिरते हुए आंसुओं का नाम नहीं है कवि ने उन लोगों को रोगी बतलाया है जो प्रेम को अनुभव का कड़वा प्याला कहते है वे लोग निर्जिव है जो प्रेम को चेतना लुप्त करने वाली मदिरा मानते है।

प्रश्न-3     कवि को प्रेम यज्ञ की ज्वाला कब दिखाई दी?

उत्तर     कवि को प्रेम यज्ञ की ज्वाला तब दिखाई दी, जब उसने स्वंय को आहुति बना दिया।

प्रश्न-4     कवि ने धूल के माध्यम से क्या कहा है?

उत्तर     जिस प्रकार धूल को कुचलने पर वह और भी ऊपर उठती है, उसी प्रकार कष्ट और संघर्षो से कुचले जाने पर वही भी और ऊपर उठ रहा है।

प्रश्न-5     कवि ने कैसे जीवन की कामना की है?

उत्तर     कवि जीवन को ललकार और असफलता को तलवार की धार बना देना चाहता है, पल का रूकना आघात और प्रहार बन जाए। जलकर अंगार के समान पवित्र हो जाए। मौन प्रेम और भी शक्तिशाली हो जाए

प्रश्न-6     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-मैने आहुति बनकर देखा और कवि का नाम है-अज्ञेय

प्रश्न-7     काव्य में प्रयुक्त अलंकार?

उत्तर     उपमा और रूपक

हिरोशिमा  / अज्ञेय

।ण्        एक दिन सहसा ………………………… लेने वाली दोपहरी फिर

1. एक दिन सहसा सूरज निकला

अरे क्षितिज पर नहीं, नगर के चौकरू

धूप बरसी, पर अन्तरिक्ष से नहीं

फटी मिट्टी से।

2. छायाएँ मानव-जन की दिशाहीन,

सब ओर पड़ीं-वह सूरज

नहीं उगा था पूरब में,

वह बरसा सहसा

बीचो-बीच नगर के

काल-सूर्य के रथ के

पहियों के ज्यों अरे टूट कर, बिखर गए हों

दसों दिशा में!

कुछ क्षण का वह उदय-अस्त!

केवल एक प्रज्वलित क्षण की

दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी फिर।।

प्रश्न-1     नगर  चौक में सूरज निकलना और धूप वर्षा किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर     नगर चौक में सूरज निकलना अणु बम और धूप वर्षा अणु बम से निकलने वाली किरणों के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न-2     मानव जीवन की छायाए दिशाहीन होकर चारों ओर बिखरने से क्या आशय है?

उत्तर     अणु बम के विस्फोट से मनुष्यों की जलकर काली पड़ गई लाशें  इधर उधर बिखरी हुई थी।

प्रश्न-3     अणु बम से निकलने वाली किरण किस तरह बिखर गई थी?

उत्तर     अणु बम से निकलने वाली किरणें इस तरह बिखर गई थी जैसे काल सूर्य के पहिए के डण्डे टूटकर इधर उधर बिखर गए हो।

प्रश्न-4     मानव के भावरूप में परिवर्तित होने से क्या आशय है?

उत्तर     जिस प्रकार पानी भाप बन कर विहीन हो जाता है, उसी प्रकार देह से आत्मा विहीन हो गई।

प्रश्न-5     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-हिरोशिमा और कवि का नाम है-अज्ञेय

ठण्       छायाए मानव जीवन की ………………………… मानव की साखी है।

3. छायाएँ मानव-जन की,

नहीं मिटीं लम्बी हो-होकरः

मानव ही सब भाप हो गए।

छायाएँ तो अभी लिखीं हैं,

झुलसे हुए पत्थरों पर

उजड़ी सड़कों की गच पर।।

मानव का रचा हुआ सूरज

मानव को भाप बनाकर सोख गया।

पत्थर पर लिखी हुई यह

जली हुई छाया

मानव की साखी है।

प्रश्न-1     परमाणु बम के भीषण नर संहार के प्रभाव को प्रत्यक्ष कैसे देखा जा सकता है?

उत्तर     मानवों की छायाए आज भी झुलसे हुए पत्थरों और उखडी हुई सड़कों की दरारों पर बनी हुई है।

प्रश्न-2     मानव निर्मित सूरज किसे कहा है और इसका परिणाम बतलाया गया है?

उत्तर     मानव निर्मित सूरज परमाणु बम को कहा गया है, जिसने मानव और मानवता का विनाश कर दिया।

प्रश्न-3     काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए।

उत्तर     रूपक और उपमा

प्रश्न-4     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-हिरोशिमा और कवि है-अज्ञेय

सूक्तिपरक पंक्तियों की संसदर्भ व्याख्या

;3द्ध      मैंने आहूति बनकर देखा यह प्रेमयज्ञ की ज्वाला है।

                व्याख्या – प्रेम से जीवन में मधुरता और सरलता आती है। व्यक्ति में एक नवीन चेतना और उत्साहित करने वाली नई प्रेरणा प्राप्त होती है। कवि कहता हैं कि मैं प्रेम तत्व के रहस्य को जान गया हूँ कि प्रेम यज्ञ की उस ज्वाला के समान हैं जो पवित्र और कल्याणकारी है। प्रेम रूपी यज्ञ की ज्वाला के दर्शन तभी हो जाते हैं जब व्यक्ति प्रेमरूपी यज्ञ में अपनी आहूति देता है।

;2द्ध      ‘मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू

            नन्दन-कानन का फूल बने।’

व्याख्या – प्रेम को यज्ञ की ज्वाला मानने वाले अज्ञेय जी कहते हैं कि उन्हे अपने अभावों, कठिनाइयों और असफलताओं से कोई शिकायत नहीं है। उनके लिए जीवनी-शक्ति की उपयोगिता सुख के संचय में न होकर विघ्न-बाधाओं से संघर्ष करने में है। वे रेगिस्तान की भाँति अपने अभावग्रस्त जीवन को देवराज इन्द्र के नन्दन कानन की तरह नही बनाना चाहते, अपितु उन अभावों से संघर्ष का अपना प्राप्तव्य पाना चाहते है।

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