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October 10, 2022
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उषा,शमशेर बहादुर सिंह,व्याख्या

उषा ,शमशेर बहादुर सिंह

1.

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी शमशेर बहादुर सिंह की कलम तूलिका से सृजित काव्य रचना उषा से अवतरित है .

प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने शब्दों प्रयोग से प्रकृति के दृश्य को मूर्त रूप देने का प्रयास किया है .

भावार्थ – भोर के समय आसमान शंख के समान गहरा नीला लगता है । भोर  का आकाश ऐसा जान पड़ता  है मानो नील शंख हो। प्रात: काल वातावरण में नमी  होती है। वातावरण में नमी के  प्रभाव को कवि ने  राख से लीपा हुआ कोई चौका के रूप में प्रस्तुत किया है ।

विशेष-

1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है

2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया  है

3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है

4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है 

2.

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने       

 सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी शमशेर बहादुर सिंह की कलम तूलिका से सृजित काव्य रचना उषा से अवतरित है .

प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने शब्दों प्रयोग से प्रकृति के दृश्य को मूर्त रूप देने का प्रयास किया है .             

भावार्थ –  सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है तो सूर्य की  लालिमा युक्त किरणे  मटमैले कोहरे पर पड़ती है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे  काली रंग की सिल पर किसी ने  लाल केसर घोलकर उंढेल दी हो । उपमान बदलकर  यह भी कहा जा सकता है जैसे  काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो।

विशेष-

1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है

2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया  है

3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है

4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है 

3.

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

और …….

जादू टूटता हैं इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा हैं।

सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी शमशेर बहादुर सिंह की कलम तूलिका से सृजित काव्य रचना उषा से अवतरित है .

प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने शब्दों प्रयोग से प्रकृति के दृश्य को मूर्त रूप देने का प्रयास किया है .

भावार्थ – जैसे ही सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है ,सूर्य की लालिमायुक्त किरणें पीत वर्णी हो जाती है और आकाश बिलकुल नीला दिखाई देने लगता है ,जब नीले आकाश पर सूर्य की पीली किरणों का प्रभाव ऐसा जान पड़ता है जैसे किसी जलाशय में कोई गौर वर्णी नायिका की देह झिलमिला रही है . सूर्योदय होते ही कुछ क्षण पूर्व तक प्रकृति जो रंग  परिवर्तित कर रही थी ,वें सारे रंग विलुप्त हो जाते है .इसी को कवि ने जादू टूटना कहा है .

विशेष-

1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है

2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया  है

3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है

4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है 

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