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रुबाइयाँ , फ़िराक गोरखपुरी,व्याख्या
रुबाइयाँ , फ़िराक गोरखपुरी
व्याख्या
1.
आंगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती हैं खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी फ़िराक गोरखपुरी की कलम तूलिका से सृजित काव्य रुबाइया से अवतरित है .
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने माँ का अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का वर्णन किया है .
व्याख्या- एक माँ चाँद के टुकड़े जैसे बेटे को अपने घर के आँगन में लिए खड़ी है। माँ कभी बच्चे को अपने हाथों में झुलाने लगती है तथा बीच-बीच में बच्चे को हवा में उछाल देती है। ऐसा करने से बच्चा खिलखिलाकर हँस पड़ता है और वातावरण बच्चे की हँसी से गूँजने लगता है।
विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
2.
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता हैं बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के हैं पिन्हाती कपड़े।
सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी फ़िराक गोरखपुरी की कलम तूलिका से सृजित काव्य रुबाइया से अवतरित है .
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने माँ का अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का वर्णन किया है .
व्याख्या- माँ अपने बच्चे को स्वच्छ जल से नहला रही है ।तत्पश्चात उसके उलझे बालों को कंघे से संवारती है ,फिर घुटनों पर बच्चे कलो बिठाकर कपडें पहनाती है ,जब माँ बच्चे को कपडें पहना रही होती है ,बच्चा एक टक माँ की ओर देख रहा होता है .
विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
3.
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पैं इक नम दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती हैं दिए।
सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी फ़िराक गोरखपुरी की कलम तूलिका से सृजित काव्य रुबाइया से अवतरित है .
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने माँ का अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का वर्णन किया है .
व्याख्या- दीवाली की शाम है। घर पुते हुए और सजे हुए है। माँ चीनी के खिलौनें लेकर आती है .सुंदर माँ घरौंदा बनाकर उसमे दीपक जलाती है ,दीपक की लौ से सुंदर माँ का चेहरा और भी दमकने लगता है . विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
4.
आँगन में ठुनक रहा हैं जिदयाया है
बालक तो हई चाँद में ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही हैं माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी फ़िराक गोरखपुरी की कलम तूलिका से सृजित काव्य रुबाइया से अवतरित है .
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने माँ का अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का वर्णन किया है .
व्याख्या-एक बच्चा जो आँगन में ठुनक रहा है। अनायास उसकी नज़र आकाश में चमक रहे चाँद पर पड़ जाती है . उसका मन उस चाँद पर ललचा गया है । जिद करना बच्चे का स्वाभाविक गुण होता है .वह जिदकर चाँद माँगने लगता है । माँ उसे दर्पण में प्रतिबिम्ब दिखाते हुए कहती है कि देख बेटा, दर्पण में चाँद उतर आया है। इस तरह वह बच्चे को बहलाती है ।
विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
5.
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी फ़िराक गोरखपुरी की कलम तूलिका से सृजित काव्य रुबाइया से अवतरित है .
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में में कवि ने बहिन का भाई के प्रति प्रेम भाव का वर्णन किया है .
व्याख्या- रक्षाबंधन की सुबह है। सावन का महीना है। आकाश में काले-काले बादलों की हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। रह-रहकर बादलों में बिजली चमक रही है। इसी तरह एक छोटी बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए उत्साहित जान पड़ रही है .राखी के लच्छे बिजली की तरह चमक रहे हैं। बहिन जब अपने भाई की कलाई पर चमकीली राखी बाँधती है तो उसके चहरे पर प्रसन्नता की वैसी ही चमक होती है ,जैसे बादलों में बिजली चमकने पर होती है ।
विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
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