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आत्म -परिचय,दिन जल्दी- जल्दी ढलता है -हरिवंश राय बच्चन,प्रश्न-उत्तर
आत्म -परिचय,दिन जल्दी- जल्दी ढलता है -हरिवंश राय बच्चन
प्रश्न .कवि बच्चन ने जगत को अपूर्ण क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस संसार में प्रेम के बिना सब कुछ अपूर्ण है। कवि सपनों का संसार बनाना चाहता है जिसमे सर्वत्र प्रेम ही प्रेम हो क्योकि कवि उसी में पूर्णता पाता है किन्तु जिस संसार में प्रेम भाव न हो ,ऐसे प्रेम विहीन संसार को कवि अपूर्ण मानते है .
प्रश्न .सुख और दुख को लेकर बच्चन जी का जीवन-दर्शन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि सुख-दुःख को जीवन की स्वाभाविकता मानानते है .सुख-दुःख के सम्मिलन से जीवन पूर्ण होता है . इसीलिए वें दुःख को बिना गिला,शिकवा –शिकायत के वैसे ही स्वीकारकरते जैसे सुख को स्वीकार किया था .न सुख से अति उत्साहित हो और न दुःख से निराश हो . सुख-दु:ख दोनों को समान भाव ग्रहण करे। दोनों परिस्थितियों में मनुष्य को समान व्यवहार करना चाहिए।
प्रश्न . भव-सागर से तरने के लिए कवि क्या उपाय करता है?
उत्तर: संसार भव-सागर से पार होने की अपेक्षा भाव सागर में तैरता रहना चाहता है ,इसकेलिए वह प्रेम को माध्यम बनाता है कवि भव सागर में उठने वाली सुख-दुःख की लहरों का आनंद लेते हुए जीवन जीना चाहता है . कवि का तात्पर्य यह है कि वह सुख के साथ-साथ संसार की कठिनाइयों के बीच से गुजरकर जीना चाहता है .
प्रश्न .मै हाय किसी की याद लिए फिरता हूं ,से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: कवि अपने मन में अपने प्रियतम की याद लिए जी रहा है। उसके प्रिय ने उसके जीवन में आकर उसके जीवन को वीणा के तारों की तरह झंकृत कर दिया था .। कवि उसी के प्रेम स्मृतियों में मग्न रहता है। अपने प्रियतम की यादें कवि को मन ही मन पीड़ा देती हैं किन्तु दुनिया को दिखाने के लिए वह बाहर से हँसता रहता है .अर्थात प्रेम की पीड़ा उसे अन्दर ही अन्दर रुलाती है।
प्रश्न .‘फिर मूढ़ न क्यों जग जो इस पर भी सीखे?’ कवि ने संसार को मूर्ख क्यों कहा है?
उत्तर:मनुष्य सत्यान्वेषण तो करना चाहता है किन्तु जो मार्ग सत्य की ओर ले जाता है ,मनुष्य उस मार्ग की ओर न जाकर सांसारिक विषय वासनाओं की ओर ले जाने वाले मार्ग की ओर जा रहा है .इसलिए कवि ने संसार को मूढ़ कहा है .
प्रश्न .‘मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना’-से कवि क्या आशय है ?
उत्तर: मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना’से कवि का आशय है कि कवि जिस समाज के बीच रहा ,उस समाज से उसने भी समाज के लोगों की तरह ही स्वकेंद्रित होकर जीने का ज्ञान प्राप्त किया ,जिसमे परमार्थ नहीं बल्कि स्वार्थ ही था .जब कवि को आत्म बोध हुआ तो वह भौतिक संसार से सीखे हुए ज्ञान को भुला देने का निश्चय करता है .
प्रश्न .‘मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता’-से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:कवि ने अपनी कल्पनाओं का एक संसार रचा है –जिसमे प्रेम के अतिरिक्त किसी का अन्य भाव के लिए कोई स्थान शेष नहीं हो किन्तु जब कवि कल्पनाओं का रचे संसार को वैसा नहीं पता ,जैसी उसने कल्पना की थी ,वह उस संसार को मिटा कर फिर एक नए संसार की रचना में जुट जाता है .
प्रश्न .कवि ने किस संसार को ठुकराने की बात कही है और क्यों ?
उत्तर: कवि ने ऐसे संसार को ठुकराने की बात की है जो भौतिक पदार्थों के संग्रह में जुटा रहता है .त्याग और परमार्थ की भावना कहीं नहीं .कवि के लिए प्रेम और खुशियाँ बांटना ही जीवन का उद्देश्य है .जिस संसार का उद्देश्य ही वैभवता का संग्रह करना हो ,ऐसा संसार कवि को स्वीकार्य नहीं .
प्रश्न . आत्म परिचय कविता के आधार पर कवि द्वारा व्यक्त विरोधाभास को अपने शब्दों में वर्णित कीजिये ?
अथवा
आप कैसे कह सकते है कि आत्म-परिचय कविता में कवि के जीवन के अंतर्विरोध का सामंजस्य हुआ है।
उत्तर: कवि के व्यक्तिगत जीवन में भी अन्य सांसारिक लोगों की तरह जीवन के दायित्वों का भार है . किन्तु उसका हृदय सभी के लिए प्रेमभाव से परिपूर्ण है । कवि का ह्रदय व्यक्तिगत पीड़ा से भरा हुआ है ,वह विरह वेदना व्यथित है , वह भीतर ही भीतर रोता है किन्तु उसके दुःख से कोई दुखी न हो इसलिए बाह्य रूप से हँसता रहता है . कवि ने जहाँ एक ओर संसार को अपूर्ण, मूढ़, और स्वार्थपूर्ण कहा हैं उसी संसार के लिए अपनी कलम से प्रेम का गीत लिखते है और वाणी से प्रेम का सन्देश सुनाते हैं ,खुशियाँ बांटना चाहते है । कविता में व्यक्त भाव कवि की द्विधात्मक और द्वन्द्वात्मक स्थिति को उदघाटित कराती है .
आत्म -परिचय -हरिवंश राय बच्चन-लघु उत्तरात्मक प्रश्न
हरि वंश राय बच्चन (अ)आत्म परिचय (आ)दिन जल्दी –जल्दी ढलता है
प्रश्न 1.‘साँसों के दो तार’ किसका प्रतीक हैं –
उत्तर: साँसों के दो तार’ जीवन का प्रतीक है
प्रश्न .कवि के अनुसार जीवन कैसा हो ?
उत्तर: कवि के अनुसार जीवन में प्रेम के साथ –साथ जीवन के प्रति तटस्थ भाव भी होना चाहिए .
प्रश्न . स्नेह-सुधा का पान करने से क्या आशय है ?
उत्तर: सभी के प्रति प्रेम भाव रखते हुए जीवन व्यतीत करने को कवि ने . स्नेह-सुधा का पान करना कहा है .
प्रश्न .‘निज उर के उद्गार और उपहार’ से कवि का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
उतर: कवि का ह्रदय प्रेम भाव से परिपूर्ण है वह इसी प्रेम भाव को प्रकट करता है और प्रेम को ही अपनी अर्जित सम्पति मान कर प्रेम ही बांटता है . उसकी कविता में उसके मन के प्रेम भाव प्रकट होते हैं। कविता में प्रकट उसके प्रेम भाव उसकी ओर से लोगों को दी गई भेंट है।
प्रश्न .‘शीतल वाणी में आग’-के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: शीतल वाणी में आग लिए फिरने से कवि का आशय है कि यद्यपि वह प्रेम का समर्थक है किन्तु जहाँ कहीं भी विषमता है उसके प्रति कवि के ह्रदय में विद्रोह भी है .
प्रश्न .कवि ने स्वयं को क्या घोषित किया है और क्यों ?
उत्तर: कवि ने स्वयं को दुनिया का नया दीवाना घोषित किया है क्योकि वह स्वयं को कवि कहलाने की अपेक्षा प्रेम में पागल हुए प्रेमी की भांति प्रेम में डूबा रहना चाहता है .
प्रश्न .“मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ’ कहने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:कवि के व्यक्तिगत जीवन में दुःख है किन्तु कवि अपनी व्यक्तिगत पीड़ा को छुपाकर प्रेम का सन्देश देने वाला प्रेम गाता है
प्रश्न .मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ-कथन से कवि का क्या आशय है?
अथवा
कवि जग का ध्यान क्यों नहीं करता?
उत्तर: कवि का आचरण और विचारधारा परम्परागत सोच से भिन्न है .कवि अपनी कलम से प्रेम गीत लिखता है और प्रेम गीत गाता है ,इस पर दुनिया क्या कहेंगी इस बात की कवि परवाह नहीं करता .
प्रश्न .‘जग पूछ रहा उनको जो जग की गाते ’-इस पंक्ति में निहित आशय स्पष्ट कीजिये .
उत्तर: कवि का आचरण और विचारधारा परम्परागत सोच से भिन्न है .कवि अपनी कलम से प्रेम गीत लिखता है और प्रेम गीत गाता है ,किन्तु समाज उन कवियों को कवि होने का सम्मान देता है ,जो जन रुचि के अनुकूल काव्य सृजन करते है .
प्रश्न .यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता’-इस पंक्ति के अनुसार कवि को यह संसार अधूरा क्यों लगता है?
उत्तर: इस संसार में प्रेम के बिना सब कुछ अपूर्ण है। कवि सपनों का संसार बनाना चाहता है जिसमे सर्वत्र प्रेम ही प्रेम हो क्योकि कवि उसी में पूर्णता पाता है।
प्रश्न .‘जला हृदय में अग्नि दहा करता हूँ, में कवि का संकेत किस ओर है?
उत्तर:कवि की अपनी व्यक्तिगत पीड़ा है ,अज्ञात प्रेयसी की विरह वेदना की अग्नि में भीतर ही भीतर जलता रहता है
प्रश्न .‘सुख-दुःख दोनों में मग्न’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:कवि का आशय है कि वह सुख और दुःख दोनों में समान भाव से जीवन बिताता है अर्थात जैसे वह सुखो को स्वीकार करता है वैसे ही जीवन के दुखों को बिना शिकवा –शिकायत के स्वीकार करता है .
प्रश्न .कवि ‘संसार-सागर’ को कैसे पार कर रहा है?
उत्तर:कवि संसार रूपी सागर से तरने के लिए प्रेम रूपी नांव में बैठकर सुख-दुःख की लहरों पर तैरते हुए जीवन का आनंद लेना चाहता है .
प्रश्न .‘यौवन के उन्माद’ से कवि का आशय क्या है?
उत्तर:‘यौवन के उन्माद’ से कवि का आशय उसके जीवन को मौज-मस्ती के साथ व्यतीत करने का जो भाव है ,उसी मौज-मस्ती के साथ वह जीवन बिता रहा है।
प्रश्न .उन्मादों में अवसाद’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:कवि के कहने का आशय है कि यद्यपि उसका ह्रदय युवावस्था की मौज- मस्ती से भरा है, किन्तुभीतर ही भीतर प्रिय की विरह व्यथा को भी साथ लेकर जी रहा है .
प्रश्न .कवि के बाहर से हँसने और भीतर से रोने का कारण क्या है?
उत्तर:कवि के व्यक्तिगत दुःख से कोई दुखी न हो इसके लिए वह बाहर से हँसता है किन्तु प्रिय की विरह वेदना से व्यथित उसका ह्रदय भीतर ही भीतर रोता है .
प्रश्न .“मैं, हाय! किसी की याद लिए फिरता हूँ।” कवि किसकी याद में व्याकुल रहा करता है?
उत्तर:कवि अपनी प्रिय की यादों को अपने से में अलग होने देना नहीं चाहता .वह प्रिय की याद बनाये रखना चाहता है .
प्रश्न .कवि ने संसार को मूढ़ क्यों बताया है?
उत्तर:संसार में सब कुछ नाशवान है यह जानकर भी लोग भौतिक सम्पदा के संग्रह में लगे रहते ,इस प्रवृति के कारण कवि ने संसार को मूर्ख कहा है .
प्रश्न .‘दाना’ शब्द से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:दाना शब्द से कवि का अभिप्राय भौतिक सम्पदा से है .
प्रश्न .कवि को संसार के साथ अपना नाता क्यों नहीं मानता ?
उत्तर:कवि संसार के और अपने जीवन-लक्ष्य को एक दूसरे के विपरीत मानता है। संसार के लोग भोगों के प्रति आसक्त है और कवि सांसारिक भोगों से विरक्त है।
प्रश्न .‘भूपों के प्रासाद’ कवि किस पर निछावर कर सकता है?
उत्तर:कवि का आशय है यदि उसके पास राजाओं के भव्य महल भी होते तो वह प्रेम पर वैभवपूर्ण महल को भी न्यौछावर कर देता .अर्थात कवि प्रेम के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार है .
प्रश्न . कवि के रोने को लोग क्या समझ लेते हैं और क्यों ?
उत्तर: कवि के रोने को लोग गाना समझ लेते हैं और क्योंकि कवि संसार को खुशिया बांटने के लिए प्रेम गीत गाता है तो लोगों को लगता है कि कवि भीतर से भी प्रसन्न है .
प्रश्न .‘दीवानों का वेश लिए फिरने’ से कवि का आशय क्या है?
उत्तर:कवि की मनोदशा विरह व्यथित प्रेमी की तरह है .इसलिए वह प्रेम में पागल अन्य प्रेमियों की तरह रहता है .
प्रश्न . ‘आत्मपरिचय’ कविता में क्या संदेश छिपा है?
उत्तर: ‘आत्मपरिचय’ कविता में अपनी व्यक्तिगत पीड़ा को भीतर ही छुपाकर संसार को खुशियाँ बांटने का सन्देश छुपा है .
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