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November 12, 2022
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काले मेघा पानी दे, धर्मवीर भारती

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धर्मवीर भारती

3. काले मेघा पानी दे (धर्मवीर भारती )

संकेत – वें सचमुच ऐसे दिन ———— और सूखे खेतों के लिए।

सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता, पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दिखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लूऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर-ढंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए।

प्र.1 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ )भक्तिन

(ब )बाजार दर्शन

(स )काले मेघा पानी दे

(द )पहलवान की ढोलक

उत्तर- (स )काले मेघा पानी दे

प्र.2 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है-

(अ )महादेवी वर्मा

(ब )जैनेंद्र

(स )धर्मवीर भारती

(द )फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर- (स )धर्मवीर भारती

प्र.3 नगर में त्राहि त्राहि मचने का कारण था –

(अ ) दुर्भिक्ष पड़ना

(ब ) भीषण गर्मी होना

(स )वर्षा का न होना

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (स )वर्षा का न होना

प्र.4 सारे प्रयासों के उपरांत भी वर्षा न होने पर इंद्र देवता से पानी माँगने के लिए निकलती थी –

(अ )मेढक  मंडली

 (ब )इंदर सेना

(स ) मेढक  मंडली और  

इंदर सेना दोनों  

 (द ) मेढक  मंडली  और इंदर सेना दोनों में से कोई नहीं

उत्तर- (ब )इंदर सेना

प्र.5 वर्षा न होने पर नगर के लोगों की हालत हो गई थी –

(अ )खेतों की मिटटी सूखकर पत्थर हो गई

(ब )पशु प्यासे मरने लगे

(स )लोग लू खाकर गिरने लगे

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (द )उपर्युक्त सभी

संकेत – पानी की आशा पर जैसे सारा ————गुलाम बन गए

पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भरकर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं? नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।

प्र.1 पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन टिक गया हो ,इस स्थिति का कारण था –

(अ )भीषण अकाल

(ब )पानी की भीषण कमी

(स ) कुओं का पानी सूख जाना

(द )उपर्युक्त सभी 

उत्तर- (ब )पानी की भीषण कमी

प्र.2 लेखक को कौनसी बात समझ में नहीं आती थी –

(अ )समय पर वर्षा क्यों नहीं होती

(ब ) टोली को इन्दर सेना क्यों कहा जाता है

(स )पानी की कमी के बावजूद पानी व्यर्थ क्यों बहते है

(द )उपर्युक्त सभी उत्तर-

उत्तर- (स )पानी की कमी के बावजूद पानी व्यर्थ क्यों बहते है

प्र.3 लेखक इंदर सेना पर पानी उँड़ेलने को मानता है –

(अ )मूर्खता                   

(ब )पाखण्ड 

(स ) अन्धविश्वास           

(द )पाखण्ड और अन्धविश्वास

उत्तर- (स )पानी की कमी के बावजूद पानी व्यर्थ क्यों बहते है

प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ ) भक्तिन                

(ब )बाजार दर्शन

(स )काले मेघा पानी दे

(द )पहलवान की ढोलक

उत्तर- (स )काले मेघा पानी दे

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ ) महादेवी वर्मा        

(ब )जैनेंद्र

(स )धर्मवीर भारती        

(द )फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर- (स )धर्मवीर भारती         

संकेत – मगर मुश्किल यह थी कि ———- केवल मुझे

मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमारसुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था।दिवाली है तो  गोबर और कौड़ियों से गोवर्धन और सातियाबनाने में लगा हूँ .जन्माष्ठमी है आठ दिन तक झांकी सजाने और पँजीरीबांटने में लगा हूँ .हट छठ है तोरंगीन कुल्हियों में भुजा भर रहा हूँ .किसी में भुना चना ,किसी में भुनी मटर किसी में भुने अरवा चावल ,किसी में भुना गेहूँ .जीजी यस सब मेरे हाथों से कराती थी ताकि उनका पुन्य मुझे मिले ,केवल मुझे 

प्र.1निम्नलिखित मेसे कौनसी बात जीजी पर लागू  होती –

(अ )लेखक को बहुत प्यार करती थी

(ब )लेखक के साथ कोई रक्त सम्बन्ध रिश्ता नहीं था

(स )लेखक की माँ से भी बड़ी थी

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (द )उपर्युक्त सभी

प्र.2लेखक के हाथों पूजा -पाठ और अनुष्ठान कराने के पीछे जीजी का उद्देश्य होता था –

(अ )लेखक को पुण्य मिले         

(ब )लेखक के सुखी होने से उसे भी सुख मिलेगा

(स ) स्वयं पूजा -अनुष्ठान के झंझट मुक्ति मिल जाएगी                                         

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर- (अ )लेखक को पुण्य मिले           

प्र.3  पूजा -पाठ और अनुष्ठान में रूचि न होते भी लेखक पूजा -पाठ और अनुष्ठान करता था ,कारण-

(अ ) ताकि जीजी का  भ्रम बना रहे        

(ब ) जीजी के प्रति आदर भाव के कारण

(स ) जीजी को खुश रखने के लिए                                  

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर- (ब ) जीजी के प्रति आदर भाव के कारण

प्र.4 लेखक पर किसका प्रभाव था –

(अ )     वैदिक धर्म का              

(ब ) सनातन धर्म का

(स )आर्य समाज का      

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (स )आर्य समाज का       

प्र.5 लेखक किसका उप मंत्री था –

(अ )विद्यालय संगठन का

(ब ) राजनैतिक संगठन का

(स )धार्मिक  संगठन का            

(द )कुमार सुधार सभा का

उत्तर- (द )कुमार सुधार सभा का

संकेत -कुछ देर रही जीजी ———- जिद्द पर अड़ा रहा

लेकिन इस बार मैंने साफ इन्कार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भरकर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले गईं-उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, ‘देख भइया, रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं, “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्ध्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।”

कुछ देर चुप रही जीजी ,फिर मठरी मेरे मुँहमें डालती हुई बोली -ष्देख बिना त्याग के दान नहीं होता .अगर तेरे पास लाखों करोड़ों रूपये है और उसमे से तू दो- चार रूपये किसी को दे दे तो क्या त्याग हुआ ?त्याग तो वह होता है ,जो चीज तेरे पास भी कम हो जिसकी तुझको भी जरुरत हो ,तोअपनी जरुरत पीछे रखकर दूसरे के कल्याण के लिए दे …त्याग वह होता है दान तो वह होता है .उसी का फल मिलता है .

फल वल कुछ नहीं मिलता ,सब ढकोसला है .मैंने कहा पर मेरे तर्कों का किला पस्त होने लगा था ,मगर मै भी जिद पर अड़ा था.

प्र.1 जीजी के अनुसार दान कब तक दान नहीं होता –

(अ )जब तक उसमे त्याग का भाव न हो

(ब ) जब तक उसमे परमार्थ  का भाव न हो

(स )जब तक उसमे समर्पण  का भाव न हो                                                         

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर- (अ )जब तक उसमे त्याग का भाव न हो   

प्र.2अपनी जरुरत पीछे रखकर दूसरों के कल्याण के लिए दे , वह होता है –

(अ )दान                      

(ब )परमार्थ

(स )त्याग                      

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (अ )दान

प्र.3 फल वल कुछ नहीं ,कोसला है ,यह कथन है –

(अ )जीजी का               

(ब )लेखक का

(स )महात्मा गाँधी का  का                     

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर- (ब )लेखक का

प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ )भक्तिन                             

(ब )बाजार दर्शन

(स )काले मेघा पानी दे              

(द )पहलवान की ढोलक

उत्तर- (स )काले मेघा पानी दे                

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ )महादेवी वर्मा         

(ब )जैनेंद्र

(स )धर्मवीर भारती        

(द )फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर- (स )धर्मवीर भारती         

संकेत -फिर जीजी बोली ———– बात अकसर करने लगी थीं।

फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है । कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे के समय हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि ‘यथा प्रजा तथा राजा’। यह तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गाँधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।

प्र.1 जो कुछ हम दान करते है ,वह कई गुना होकर प्राप्त होता है ,इस तथ्य को जीजी ने किस उदहारण द्वारा समझाया –

(अ )ऋषियों द्वारा दान का         

(ब ) खेत में बुवाई का

(स )इन्दर सेना का        

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर- (ब ) खेत में बुवाई का

प्र.2 इन्दर सेना पर पानी उँडेलने को जीजी ने बताया –

(अ )पानी की बुवाई       

(ब ) इंद्र को प्रसन्न करने का उपाय

(स )वरुण देव को प्रसन्न करने का उपाय                        

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (अ )पानी की बुवाई        

प्र.3 यथा राजा तथा प्रजा यह सच नहीं है ,सच यह है की यथा प्रजा तथा राजा ,यह कथन है –

(अ )गाँधी जी                            

(ब )जीजी का

(स )जीजी और गांधीजी का       

(द )दोनों का ही नहीं

उत्तर- (स )जीजी और गांधीजी का         

प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ )भक्तिन                             

(ब )बाजार दर्शन

(स )काले मेघा पानी दे              

(द )पहलवान की ढोलक

उत्तर- (स )काले मेघा पानी दे                

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ )महादेवी वर्मा                     

(ब )जैनेंद्र

(स )धर्मवीर भारती                    

(द )फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर- (स )धर्मवीर भारती                     

संकेत -इन बातों को आज पचास ———-आखिर कब बदलेगी यह स्थिति

इन बातों को आज पचास से भी  ज्यादा बरस होने को आये पर वे बातें ज्यों-की त्यों मन पर दर्ज है .कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने  स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति ?

प्र.1 आज लोगों का एक मात्रा लक्ष्य क्या है

(अ )स्वार्थ                     

(ब ) धन अर्जित करना

(स ) भौतिक वस्तु का संग्रह करना                                 

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर- (अ )स्वार्थ          

प्र.2 हम चटखारे लेकर किसकी बाते करते है –

(अ )राजनीति की          

(ब ) भ्रष्टाचार की

(स )पारिवारिक

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (ब ) भ्रष्टाचार की

प्र.3 पचास साल बाद भी लेखक के मन में किसकी बात दर्ज है-

(अ )बचपन की             

(ब ) इन्दर सेना की

(स )जीजी की               

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (स )जीजी की                 

प्र.4 काले मेघों का उमड़ना और झमाझम पानी बरसाना किसका प्रतीक है –

(अ )अच्छी वर्षा का                   

(ब ) किसान की खुशहाली का

(स )सरकार की विकास योजनाओं का               

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (स )सरकार की विकास योजनाओं का                 

प्र.5 बैल प्यासे के प्यासे रह जाते है और गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, यह किस बात का प्रतीक है –

(अ )अकाल का                                                

(ब ) देश और नागरिकों की स्थिति यथावत बने रहने का

(स )सामाजिक अर्थ व्यवस्था का                                    

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर- (ब ) देश और नागरिकों की स्थिति यथावत बने रहने का

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