12bihar board hindi book solution,usha,shamasher bahadur singh,
उषा, शमशेर बहादुर सिंह
8 उषा
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न . डॉ. नामवर सिंह ने शमशेर की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ काव्य कृति का संपादन किया है
प्रश्न .काल तुझसे होड़ है मेरी, टूटी हुई बिखरी हुई, कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ, सुकून की तलाश आदि शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ हैं
प्रश्न उषा का जादू कब टूट जाता है
उत्तर-सूर्योदय होने पर।
प्रश्न 3.प्रातःकाल का नभ नीले राख के समान। था
प्रश्न 6.शमशेर बहादुर सिंह ने उर्दू- हिन्दी कोष का संपादन कार्य किया
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न .प्रातःकाल का नभ कैसा था
उत्तर-प्रात: काल आकाश का रंग नीलाभ शंख के समान था ! नभ ऐसा पड़ता था जैसे किसी चौके को राख से लीप दिया गया हो ।
प्रश्न .‘राख से लीपा हुआ चौका’ के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है
उत्तर-‘जिस प्रकार चौके को लीपने के कुछ देर बाद तक उसमे नमी रहती है ,उसी प्रकार प्रातः काल के वातावरण में ओस के जलकण की नमी बनी हुई है .
प्रश्न 3. ‘बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’.. बिम्ब स्पष्ट करें .
उत्तर-पूर्वांचल की ओर से जब सूर्य जब थोडा ऊपर उठता है ,तब उसकी किरणें लालिमायुक्त होती है . जलकण के कारण क्षितिज का रंग मटमैला दिखाई देता है .जब क्षितिज के मटमैले रंग पर सूर्य की लालिमायुक्त किरणें पड़ती है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे किसी काले पत्थर पर किसी ने लाल केसर घोलकर उंढेल दी हो .
प्रश्न .उषा का जादू कैसा है
उत्तर-सूर्योदय से पूर्व प्रकृति क्षण-क्षण अपना रंग परिवर्तित कर रही थी किन्तु जैसे ही सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है अर्थात पूर्ण रूप से प्रकट हो जाता है तब कुछ क्षण पूर्व तक पल-पल परिवर्तित होने वाले रंग विलुप्त हो जाते है
प्रश्न .‘लाल केसर’ और ‘लाल खड़िया चाक’ किसके लिये प्रयुक्त है
उत्तर-.‘लाल केसर’ और ‘लाल खड़िया चाक’ का प्रयोग वातावरण में मटमैले पर सूर्य की लालिमायुक्त किरणों के प्रभाव के लिए है .क्योकि जब क्षितिज के मटमैले रंग पर सूर्य की लालिमायुक्त किरणें पड़ती है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे किसी काले पत्थर पर किसी ने लाल केसर घोलकर उंढेल दी हो या किसी स्लेट पर लाल खड़िया मल दी गयी हो .
प्रश्न 6. व्याख्या करें-
- जाद टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है।
उत्तर-सूर्योदय से पूर्व प्रकृति क्षण-क्षण अपना रंग परिवर्तित कर रही थी किन्तु जैसे ही सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है अर्थात पूर्ण रूप से प्रकट हो जाता है तब कुछ क्षण पूर्व तक पल-पल परिवर्तित होने वाले प्रकृति के रंग विलुप्त हो जाते है इसी को कवि ने जादू टूटना कहा है .
(ख) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो।
उत्तर- पूर्वांचल की ओर से जब सूर्य जब थोडा ऊपर उठता है ,तब उसकी किरणें लालिमायुक्त होती है . जलकण के कारण क्षितिज का रंग मटमैला दिखाई देता है .जब क्षितिज के मटमैले रंग पर सूर्य की लालिमायुक्त किरणें पड़ती है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे किसी काले पत्थर पर किसी ने लाल केसर घोलकर उंढेल दी हो .
प्रश्न . प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला शंख से क्यों की गई है..
उत्तर-सूर्योदय से पूर्व हलके अन्धाकाए के कारण मटमैला दिखाई देता है किन्तु आकाश का रंग नीलाभ शंख की तरह नीला दिखाई देता है .
प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला शंख से की गयी है क्योंकि कवि के अनुसार प्रातरूकालीन आकाश (नभ) गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह नीले शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। नीला शंख पवित्रता का प्रतीक है। प्रांतरूकालीन नभ भी पवित्रता का प्रतीक है।
लोग उषाकाल में सूर्य नमस्कार करते हैं। शंख का प्रयोग भी पवित्र कार्यों में होता है। अतः यह तुलना युक्तिसंगत है।
प्रश्न .नील जल में किसकी गौर देह हिल रही है..इस पांति का आशय स्पष्ट कीजिये
उत्तर-उषाकाल में जब सूर्य क्षितिज से बाहर निकल आता है तब सूर्य पीताभ होता है .पृष्ठभूमि में आकाश का रंग नीला दीखाई देता है .तब आकाश के नीले रंग पर सूर्य की पीली किरणों का प्रभाव ऐसा जान पड़ता है जैसे तालाब के नीले जल में गौर वर्ण वाली जलपरी की पीत्वरनी आभा झिलमिला रही हो .
No Comments