भाषा और आधुनिकता – प्रो. जी, सुन्दर रेड्डी- पाठ का सारांश
भाषा और आधुनिकता – प्रस्तुत निबंध में लेखक प्रो. सुंदर रेड्डी ने भाषा और आधुनिकता पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार किया है।
भाषा परिवर्तनशील है
लेखक का कहना है कि भाषा सदैव बदलती रहती है, भाषा परिवर्तनशील है। परिवर्तनशील होने का अर्थ है कि भाषा में निरंतर नये भाव, नये शब्द, नये मुहावरे और लोकोक्तियाँ, नयी शैलियाँ आती रहती हैं। यही परिवर्तनशीलता भाषा में नवीनता लाती है और जहाँ नवीनता है, वहाँ सौन्दर्य है।
भाषा तभी समृद्ध होती है जब उसमें पर्याप्त नवीनता और आधुनिकता हो। पाखंड भाषा के लिए विनाशकारी है. जिस दिन भाषा स्थिर हो जाती है, उसका क्षय शुरू हो जाता है। वह नये विचारों और भावनाओं को धारण करने में असमर्थ होने लगती है और अंततः नष्ट हो जाती है।
मानव के विकास में समाज का उत्तरदायित्व
लेखक ने मनुष्य के विकास में समाज के उत्तरदायित्व को महत्वपूर्ण माना है। लेखक के अनुसार इस संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण-पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं क्षमता को सुनिश्चित करना तथा अस्वस्थ एवं अक्षम अवस्था में उचित अवकाश एवं जीविकोपार्जन की व्यवस्था करना समाज का दायित्व है।
प्रत्येक सभ्य समाज किसी न किसी रूप में इसका पालन भी करता है। लेखक ने समाज द्वारा मनुष्य के उचित जीवन यापन को प्रगति की कसौटी माना है, इसलिए लेखक का मानना है कि हमें न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी, शिक्षा, आजीविका के लिए रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को मौलिक अधिकारों के रूप में स्वीकार करना होगा। ‘
संस्कृति का अभिन्न अंग
लेखक का मानना है कि भाषा संस्कृति का अभिन्न अंग है। संस्कृति परंपरा से संबंधित होने पर भी गतिशील और परिवर्तनशील होती है। इसकी गति का संबंध विज्ञान की प्रगति से भी है।
आए दिन होने वाले नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार अंततः न केवल संस्कृति को प्रभावित करते हैं, बल्कि उसे बदल भी देते हैं। इन वैज्ञानिक आविष्कारों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली नई सांस्कृतिक हलचल को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है, क्योंकि भाषा का पारंपरिक उपयोग उसे व्यक्त करने में सक्षम नहीं है।
भाषा में परिवर्तन कैसे संभव है?
लेखक का मानना है कि भाषा को युगानुकूल बनाने के लिए व्यक्ति विशेष या समूह का प्रयास होना चाहिए। यद्यपि भाषा की गति स्वाभाविक है, इसके लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं होती, परंतु विशेष प्रयास से परिवर्तन की गति अवश्य तेज हो जाती है।
यदि भाषा का नवीनीकरण केवल कुछ विद्वानों या शिक्षकों की मानसिक कसरत बनकर रह जाये तो भाषा गतिशील नहीं हो सकती। इसका सीधा संबंध लोगों के और लोगों द्वारा उपयोग से है, जो भाषा जितना अधिक लोगों द्वारा स्वीकार की जाती है और बदली जाती है वह उतनी ही अधिक जीवंत और स्थायी होती है। साथ ही भाषा भी आधुनिकता और युग के अनुरूप ढल जाती है।
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