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world population day in hindi

July 9, 2016
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११जुलाई ,विश्व जन संख्या दिवस 

आज विश्व में वैश्विक स्तर पर जो समस्याए मुंह बाएं  खड़ी है और जिसके प्रारम्भिक लक्षण से विश्व आंशिक प्रभावित हो रहा है ,  जिसके भयंकर दुष्परिणाम वर्तमान  पीढ़ी को न सही किन्तु आगामी वर्षों में मानव-जाति  की पीढ़ियों को अवश्य भोगने पड़ेंगे ,उनमे से एक है -जन-संख्या का विस्फोटक रूप से बढना। जिस तीव्रता से विश्व की जन-संख्या में वृद्धि हो रही ,वह समस्त मानव समुदाय के लिए ना सिर्फ चिंता बल्कि चिंतन का भी विषय बन गया है। १९५० तक विश्व की जन-संख्या जो लगभग  २५० करोड़ थी ,उसके अगले ३७ वर्षों में अर्थात १९८७ तक यह संख्या सात अरब का आंकड़ा पार कर गयी।वर्तमान में यह संख्या ७,६३,४९,४०,०२४  है। भारत की जनसंख्या १,३६,१९,२१,५७२ है,जो पूरी दुनिया का १७. ९ %है ।जिस तरह से भारत की जनसँख्या बढ़ रही है ,उसे देखते हुए अगले छह वर्षों में भारत ,चीन को भी पीछे छोड़ देगा। पूरी दुनिया की आबादी में अकेले चीन और भारत की जनसँख्या का भाग ३६. ४ है।
मानविकी के विद्वानों के अनुसार वर्ष २०३०-२०४० के मध्य विश्व की जन-संख्या नौ अरब हो जाने का अनुमान  है।  इस आशंका को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र विकास  कार्यक्रम की संचालक परिषद द्वारा विश्व जन-संख्या दिवस मनाने का निश्चय किया ताकि विश्व मानव समुदाय को संभावित दुष्परिणामों की प्रति सावचेत किया जा सके। इसके लिए  संयुक्त राष्ट्र संघ ने ११ जुलाई को  विश्व जन-संख्या दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की ,तब से छोटा किन्तु स्वस्थ्य  मानव समुदाय के उद्देश्य पूर्ति हेतु  प्रति वर्ष विश्व जन -संख्या दिवस मनाया जाता है। छोटा किन्तु स्वस्थ्य  मानव समुदाय के उद्देश्य पूर्ति हेतु  प्रति वर्ष विश्व जन -संख्या दिवस पर एक नया कार्यक्रम घोषित किया जाता है ,जो प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से जन-संख्या संकुचन से संबद्ध होता है।

११,जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व जन-संख्या दिवस प्रत्येक राष्ट्र के लिए चाहे वह विकसित राष्ट्र हो या विकासशील राष्ट्र हो ,बढती जन-संख्या के मुददे पर  चिंता और चिंतन करने का अवसर देता है। बढती जन-संख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं ,शोषण हो रहा है । खद्यान्न पूर्ति के लिए रासायनिक पदार्थों का जिस तरह से अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है ,खाद्यान्न पथार्थों को विषाक्त बना दिया ,उत्पादन बढ़ाने वाले  कारखानों के धुएं ने प्राण वायु को प्राण-लेवा बना दिया । उद्योगों ,कल-कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के नदियों के जल से विलय के कारण दूषित जल पीना बाध्यता बन गयी । जन -संख्या वृद्धि के साथ – साथ आवास और यातायात के साधनों की आवश्यकता भी बढ़ गयी। जंगल के जंगल काट  डाले गए।
पशु-पक्षियों के आवास   अतिक्रमण कर लिये । यह सब जन-संख्या वृद्धि के  ही परिणाम है।

बढती हुई जन -संख्या से प्रकृति तो असंतुलित हुई  ही साथ में मानव-जीवन भी असंतुलित हो गया। मांग ज्यादा ,पूर्ति के कम के सिद्धांत ने सामाजिक संतुलन बिगाड़ दिया। किसी भी देश की किसी भी सरकार के लिए
इतनी बड़ी जन-संख्या के लिए समुचित खाद्यान्न ,शुद्ध पेय जल ,आवास ,स्वास्थय ,विद्युत ,रोज़गार ,शिक्षा
उपलब्ध कराना संभव नहीं ,विशेष रूप से भारत जैसे जन -संख्या बाहुल्य वाले विकास शील देश के लिए।

वैश्विक स्तर के बाद यदि महाद्वीप की बात की जाये तो  सबसे अधिक जनसँख्या का दबाव एशियाई देशों पर है। विश्व की कुल जन-संख्या का ६०%  एशिया महाद्वीप में है। विश्व की कुल जन -संख्या का ३७% चीन  और भारत में है।  जन-संख्या में चीन यद्यपि भारत की तुलना में आगे है किन्तु चीन अपनी आर्थिक योजनाओं को जन-संख्या के अनुपात में व्यवस्थित करने में सफल रहा।

जन -संख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्या भारत के लिए ज्यादा चुनौती पूर्ण है। भारत के पास जो मानव -शक्ति है ,वह विकास में सहायक नहीं अपितु बाधक है,जन-शक्ति का उत्पादकता वृद्धि में उपयोग  करने की कोई ठोस योजना को यहाँ  की सरकारें क्रियान्वित करने में सफल नहीं हो पायी। दस करोड़ से जयादा लोग आज भी सामान्य जीवन जीने की अपेक्षा रोटी का जुगाड़ करने में ही लगे हुए है। हर दो सेकंड में एक बच्चा जन्म ले रहा है। २०२८-२०३० तक  भारत का जन -संख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाने का अनुमान हैऔर लगभग ४०करोड़ जन-संख्या और बढ़ जाने की सम्भावना है।

निर्धनता ,अक्षिशा ,बे-रोजगारी ,आवास ,शुद्ध पेय जल ,खाद्यान्न  पर्यावरण ,स्वास्थ्य ,विद्युत और मूलभूत-सुविधओं की समस्या से भारत कल भी जूझ रहा था और आज भी यही समस्याए सरकार के सामने चुनौती बनकर खड़ी  है।यद्यपि भारत सरकार ने  देश की जन-संख्या  और उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के मध्य सांतुलिक स्तिथि का प्रयास किया है। सरकार के प्रयासों को नाकारा नहीं जा सकता। प्रयास हुए है,उत्पादन बढ़ा है ,बढ रहा है किन्तुजन -बाहुल्यता  के कारण परिवर्तन का प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं हो पाता ,सब कुछ पूर्ववत सा  लगता है।

देश और समाज के न सिर्फ प्रबुद्ध वर्ग को बल्कि जन-सामान्य को भी जागरूक होकर जन -संख्या दिवस के उद्देश्य को क्रांति /अभियान  रूप में जन-जन तक पहुँचाने में सह-भागिता निभानी होगी।

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