world physiotherepy day in hindi
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world physiotherepy day
८ सितम्बर
यह एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमे भौतिक साधनों के प्रयोग द्वारा शारीरिक कष्ट अथवा रोगों का निराकरण किया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति में दवाइयों के स्थान पर यंत्र ,उपकरण और व्यायाम का प्रयोग होता है।
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भारत में पिछले कुछ वर्षों से इस चिकित्सा पद्धति के प्रति जागरूकता नज़र आने लगी है अन्यथा कुछ वर्षों पूर्व तक इसका इतना प्रचलन नहीं था। वैसे तो फिजिकल थेरेपी चिकित्सा पद्धति का आगमन भारत में १९६० के लगभग हो गया था। विश्व के अन्य देशों में फिजिकल थेरेपी चिकित्सा पद्धति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ही प्रचलित हो गयी थी। भारत में भी फिजिकल थेरेपी चिकित्सा पद्धति धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगी है ,लोगों में इस चिकित्सा पद्धति के प्रति जागरूकता आ रही है। वरना कुछ वर्षों पहले तक भौतिक चिकित्सा से सम्बन्धित व्याधियों के लोग एलोपेथी चिकित्सक से ही संपर्क करते थे।
अप्रमाणिक तथ्यों के आधार पर फिजिकल थेरेपी का प्रादुर्भाव ४६० इ.पू.से माना जाता है। प्राचीन फिजिकल थेरेपिस्ट के रूप में हिप्पो क्रेट्स और गेलेनस का नाम लिया जाता है किन्तु प्रामाणिक रूप से फिजिकल थेरेपी को स्थापित करने का श्रेय स्वीडन के फिजिकल थेरेपिस्ट हेनरिक लिंग को दिया है। उसके बाद ब्रिटेन ,न्यूज़ीलैंड ,अमेरिका आदि देशों में विधिवत फिजिकल थेरेपी की शिक्षा और साढ़े चार वर्ष का प्रशिक्षण दिया जाने लगा तथा फिजियोथेरेपिस्ट उपाधि दी जाने लगी ,
फिजिकल थेरेपी पूरी तरह वैज्ञानिक पद्धति है। इस चिकित्सा पद्धति का एक फायदा यह भी है कि रोगी को किसी प्रकार की दवाइयां नहीं लेनी होती है ,जिसके कारण किसी प्रकार के साइड इफ़ेक्ट का डर नहीं होता। हाँ, फ़िज़ियोथेरेपिस्ट का विशेषज्ञ होना और रोगी में धैर्य होना आवश्यक है। व्याधि से मुक्त होने के लिए रोगी को धैर्यपूर्वक निश्चित समयावधि तक नियमित व्यायाम करना पड़ता है।
यदि रोगी शरीर के किसी हिस्से में लगातार दर्द महसूस कर रहा है अथवा कोई हिस्सा सामान्य रूप से कार्य नहीं कर रहा है अथवा किसी दुर्घटना के कारण क्षति ग्रस्त हो गया है या शरीर के किसी अंग की ,शल्य चिकित्सा हुई है ,इस प्रकार के रोगियों को दवाइयों के प्रयोग के बिना फिज़िकल थेरेपी से ठीक हो सकता है। फिजियोथेरेपी उपचार से रोगी को शारीरिक पीड़ा से मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही वह पूर्व की भांति सामान्य और आत्म-निर्भर हो जाता है। रोगी फिर से शारीरिक ,मानसिक ,भावनात्मक रूप से स्वयं को स्वस्थ अनुभव करने लगता है।
वैसे भी फिज़िकल थेरेपी का उद्देश्य ही रोगी को बिना दवाइयों का प्रयोग किये प्रोत्साहन ,बचाव ,उपचार ,सुधार एवं पुनर्सुधार करना ही है।
फिज़िकल थेरेपी के अन्तर्गत फिजियोथेरेपिस्ट रोगी के रोग या समस्या की history जानकार विभिन्न test द्वारा रोग अथवा समस्या की पहचान करता है ,तदुपरांत treatment plan करता है। आवश्यकतानुसार लेबोलेट्री test और x -ray भी कराये जाते है. इसके अलावा इलेक्ट्रो डायग्नोस्टिक testing इलेक्ट्रो मयॉग्रैम्स तथा नर्व कंडक्शन वेलोसिटी टेस्टिंग भी कराइ जा सकती है।
फिज़िकल थेरेपी के अन्तर्गत रोगी के रोग और समस्या के अनुसार पृथक -पृथक विशेषज्ञता क्षेत्र भी होते है। वैश्विक स्तर पर ६ विशेषज्ञता क्षेत्र प्रचलित है –
कार्डियोपल्मोनरी CARDIOPULMONARY
ज़रा चिकित्सा ( GERIATRICS)
स्नायु संबंधी (NEUROLOGIC)
अस्थि रोग (ORTHOPAEDIC )
बाल -रोग ( PEDIATRICS)
अध्या वर्णी (INTEGAMENTARY )
physio desease & treatment
backache
arthritis
knee-pain
spondylosis-neck pain
sciatica
sprain /strain-moch
slip disk
facialpalsy/bells palsy
post fracturerehabitation
spondylolisthesis
paralysis
frozen shoulder
cervical spondylosis
elbow stiffness
wrist/hand injuries
muscle
shin spint
plantar fascitis
ankle sprain
weak musseles
किस रोग अथवा किस समस्या के लिए किस विशेषज्ञ से परामर्श ले ?
कार्डियोपल्मोनरी CARDIOPULMONARY
हृदयघात ,पोस्ट कोरोनरी बाईपास सर्जरी ,क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोरी डिसीजेज और पल्मोरी फाइब्रोसिस
ज़रा चिकित्सा ( GERIATRICS)
वृद्धावस्था के साथ -साथ होने वाली समस्याएं ,जैसे गठिया ,आस्टियोपोरोसिस ,कैंसर ,कम्पवात ,कूल्हा और संधि प्रतिस्थापन ,संतुलन विकार ,असंयम आदि
स्नायु संबंधी (NEUROLOGIC)
अल्जाइमर ,चारकोट-मारी टूथ ,ए एल सी ,मस्तिष्क अभिघात ,सेरेब्रल ,मल्टीपल स्केलेरोसिस ,पार्किन्सन , रीड की हड्डी सम्बंधित चोट के अतिरिक्त दृष्टि संतुलन ,अंग सञ्चालन ,दैनिक क्रियाये व मॉस -पेशियों की दुर्बलताये
अस्थि रोग (ORTHOPAEDIC )
शल्य क्रिया के बाद अस्थि रोग ,हड्डी टूटना ,खेलते समय आई चोट ,मोच ,तनाव ,पीठ और गरदन का दर्द
बाल -रोग ( PEDIATRICS)
बच्चों में विकासात्मक देरी ,मस्तिष्क पक्षाघात ,और जन्मजात मेरुदंडीय द्विशाखी (स्पाइना बायफ़िडा )
अध्या वर्णी (INTEGAMENTARY )
घाव या जलने की स्तिथि में त्वचा सम्बंधित
समय गति शील है ,परिवर्तन शील है ,समय के साथ साथ जीवन शैली में बदलाव आया है ,रहने और काम करने के तरीके में भी बदलाव आया है ,जिसके कारण कई प्रकार की शारीरिक समस्याएं पैदा हो गयी है ,जिनका उपचार फिजिकल थेरेपी द्वारा ही संभव है। अब फिजिशियन भी अपने पेशेंट्स को फिजिकल थेरेपिस्ट से संपर्क करने की सलाह देने लगे है। इस कारण लोगों में फिजिकल थेरेपी के प्रति जागरूकता आने लगी है। फिजिकल थेरेपी के उपचार से लाभ पाकर रोगी स्वास्थ्य रहे है।निजी अस्पतालों में पृथक फिजियोथेरेपी विभाग का खोला जाना ,बड़े शहरों में जगह -जगह फिजियोथेरेपी सेन्टर का खुलना ,फिजिकल थेरेपिस्ट की संख्यां बढना भारत जैसे देश में फिजिकल थेरेपी में अच्छे भविष्य का संकेत है।
डॉ. विधि
(फ़िज़ियोथेरेपिस्ट)
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