world nature conservation day -in hindi

world nature conservation
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर विशेष – २८ जुलाई
पेड़ों को करोगे नष्ट ,तो कल साँस लेने में होगा कष्ट ईश्वर ने मनुष्य को अमूल्य निधि अर्ताथ प्रकृति को उपहार स्वरुप भेंट किया किया है। प्रकृति हम मनुष्यों के लिए ईश्वर प्रदत्त उपहार से ज्यादा वरदान है। प्रकृति ईश्वर का ही दूसरा रूप है। हमने अपने नेत्रों से चाहे ईश्वर के दर्शन न किये हो ,किन्तु पकृति में ईश्वर के रूप को देखा जा सकता है।

पूर्वांचल की ओर से उदित होता हुआ लालिमा युक्त मार्तण्ड

संध्या काल में क्षितिजांचल में समाता हुआ रक्तिम पिताभा मिश्रित सूर्यास्त

दूर-दूर तक फैली हरी-हरी घास ,

रंग -बिरंगे फूल ,
फूलों के प्रश्वास से फैली सुगंध


फूलों पर मंडराती हुई रंग -बिरंगी तितलियाँ

वृक्षों पर कलरव करते पंछी
अठखेलियाँ करती उर्मिल जलधारा पर्वतों और चटटानों के मध्य से प्रवाहित होते झरनों के कल-कल का संगीत

हरे-भरे पेड़ -पौधे
तारों जड़ित कालिमा के चादर के मध्य यामिनी का विहँसता हुआ चंद्र – मुख
श्यामल मेघों के मध्य से प्रकाशित दामिनी
ध्रूमवर्णी गर्जन-तर्जन करते मेघ

झमाझम होती बारिश
प्रकृति के ये नयनाभिराम दृश्य देखकर कौन सा- ऐसा मनुष्य होगा जो आनंद से अभिभूत ना हो जाता
होगा ?
आज दुनिया के सामने कई सारे मुद्दे है ,जिनमे से कई ऐसे गंभीर मुद्दे है ,जिन पर सारी दुनिया आँखे मूंदी बैठी है।ऐसे मुद्दों में से एक है -प्रकृति का क्षरण। प्रकृति के संरक्षण के प्रति यदि समय रहते सावधान नहीं हुए तो हमें नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ियों को बहुत गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की प्रकृति मानव की क्रूरता का शिकार हो रही है। विकास के नाम पर स्थापित किया जा रहे उद्योग ,रेल और सडकों के लिए काटे जाने वाले जंगल ,जल और बिजली की आपूर्ति के लिए बनाये जा रहे बाँध प्रकृति का सौन्दर्य नष्ट कर रहे है। जहाँ कभी खेत होते थे आज वहां आवासीय कॉलोनियाँ बन गयी है। जंगलों के पेड़-पौधों का स्थान शहरों ने ले लिया है। वन्य पशु-पक्षियों के आवास पर मनुष्य ने अतिक्रमण कर लिया। खनिज पथार्थों की पूर्ति के लिए धरती को पाताल तक खोद डाला। ना मालूम कितना दोहन किया जा रहा है प्रकृति का और ना मालूम कितना दोहन किया जाना बाकी है ?हवा,पानी ,मिटटी जो कभी मानव के लिए जीवनदायिनी हुआ करती थी ,मनुष्य ने अपने निजी स्वार्थ के लिए उसे भी विषाक्त बना दिया।मनुष्य ने स्वयं अपने हाथों से हवा,पानी ,मिटटी सब में ज़हर घोल दिया। साँस ले रहे ज़हरीली ,पानी पी रहे है ज़हरीला,मिटटी से पैदा हुआ अन्न खा रहे है ज़हरीला।
इस स्तिथि के लिए अगर अंगुली उठाई जाये तो वह अंगकी खुद हम मनुष्य की उठेगी। प्रकृति का हमने दोहन नहीं शोषण करना शुरू कर दिया। हमने प्रकृति का इस हद तक शोषण किया ,इतना शोषण किया कि प्रकृति ने अपने कुपित होने का संकेत दे दिया है। ग्लोबल वार्मिंग ,अतिवृष्टि, अनावृष्टि ,सुनामी ,भूकम्प ,भू -स्खलन ,ज्वालामुखी विस्फोट होना ग्रीन हाउस प्रभाव से जलवायु का अत्यधिक गर्म होना ,ऋतु चक्र का बिगड़ना प्रकृति के मानव से गुस्सा होने का ही इशारा है।
लगातार….. लगातार…. निरंतर…. निरंतर … प्रकृति का शोषण बढ़ रहा है। परिणाम सामने है -पृथवी का तापमान बढ़ रहा है ,ग्लेशियर पिघल रहा है ,सामुद्रिक तटों का जल-स्तर बढ़ रहा है। यदि प्रकृति के इस इशारे को मनुष्य ने समय रहते नहीं समझा तो ,यह भी तय है कि प्रकृति असंतुलित होकर विनाशकारी लीलाओ का ऐसा भीषण ताण्डव करेगी कि जीवनदायी प्रकृति ही मनुष्य की जानलेवा बन जाएगी।
इससे पहले कि प्रकृति अपना रूद्र रूप दिखलाये वैश्विक समुदाय को सावचेत हो जाना चाहिए। शासकीय प्रयास से बात नहीं बनेगी। केवल इने -गिने -चुने स्वयं सेवी संस्थाओ ,प्रकृति प्रेमियों ,पर्यावरणविदों के द्वारा आवाज़ उठाने से सब कुछ ठीक नहीं हो जायेगा ,जब तक कि प्रकृति संरक्षण को जान -आंदोलन नहीं बनाया जायेगा। जन -जन को प्रकृति संरक्षण अभियान में शामिल होना पड़ेगा।
प्रकृति संरक्षण को जन -जन अपना नैतिक दायित्व समझे ,अपना धर्म माने ,ईश्वरीय कार्य माने ,परोपकारी -पुनीत कर्म माने ऐसी भावना से पूरित होकर ही प्रकृति का संरक्षण किया जा सकता है।
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