world breast feeding week-in hindi,
विश्व स्तन-पान सप्ताह- १ अगस्त से ७अगस्त
भारत जैसे देश में तो इस कार्यक्रम की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है क्योकि भले ही देश तकनीक क्षेत्र में विकास कर रहा हो ,लोगों के रहन-सहन ,खान-पान बदलाव आया हो ,शहरों के साथ -साथ गांवों में भी आधुनिक जीवन शैली का आंशिक प्रभाव आने लगा हो किन्तु कुछ रूढ़िगत मामलों में आज भी स्तिथि जस की तस है। विशेष रूप से भारत के ग्रामीण -आदिवासी क्षेत्र,कस्बे और यहां तक कि शहरों के निम्न और मध्यमवर्ग में नवप्रसूता और नवजात शिशु के प्रति सोच और रवैय्या आज भी परंपरागत ही है। गर्भवती स्त्रियों का प्रसव अप्रशिक्षित दाइयों द्वारा घर पर ही कराया जाता है
बालिका शिक्षा के सरकारी प्रयासों के बावजूद साक्षरता का प्रतिशत उस आंकड़े को नहीं छू पाया,जितना अपेक्षित था । कमोबेश यही स्तिथि बाल -विवाह को रोकने के प्रयासों की है। अशिक्षा ,बाल विवाह ,परंपरा को ना छोड़ने और आधुनिक चिकित्सा पद्धाति को ना अपनाने के कारण नवप्रसूता तथा नवजात शिशु के मरने की दर में संतोष जनक गिरावट नहीं हो पाई।चिकित्सकों के अनुसार कई बार नवजात शिशु के मरने के मामलों में समुचित ढंग से स्तनपान ना कराना भी पाया गया है।
ग्रामीण -आदिवासी क्षेत्र,कस्बे और यहां तक कि शहरों के निम्न और मध्यमवर्ग की नवप्रसूसताओ को स्तनपान के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होने के कारण अवैज्ञानिक तरीके से स्तनपान कराती है ,जिसके कारण शिशु न सिर्फ माँ के दूध से मिलने वाले लाभ से वंचित रह जाते है बल्कि कई प्रकार की
बीमारियों से ग्रसित हो जाते है। भारतीय माताए आज भी स्तनपान के बारे यही सामान्य जानकारी रखती है कि माँ के दूध से बच्चे का पेट भर जाता है।बच्चे के जन्म के बाद माँ के स्तनों से पीला ,चिकना गाढ़ा पदार्थ निकालता है ,जिसे चिकित्सा विज्ञानं में कोलोस्ट्राम कहते है ,इसमे कार्बोहाइडेट ,चर्बी ,कैल्शियम ,सोडियम क्लोराइड ,विटामिन A ,Bतथा ,E की मात्रा होती है, जो बच्चे की रोगों से लड़ने प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है,किन्तु अशिक्षित माताओ को ये जानकारी नहीं होती और इस पहले दूध को अशुद्ध मानकर निकल कर फिकवा दिया जाता है। माँ का दूध शिशु का सम्पूर्ण आहार ही नहीं बल्कि इसमे डिब्बा बंद दूध की तुलना में ४०० के लगभग पोषक तत्व भी होते है तथा इसमे हार्मोन्सऔर बिमारियों से लड़ने वाले यौगिक पदार्थ भी सम्मिलित होते है। माँ के दूध में मस्तिष्क संरचना,बौद्धिक क्षमता विकसित करने और संक्रमण से लड़ने की क्षमता भी होती है।
उच्च शिक्षित एवं आर्थिक रूप से संपन्न परिवार तो अपनी बहू -बेटियों को गर्भ-धारण से लेकर प्रसव उपरांत तक अपने पारिवारिक अथवा निजी चिकित्सक की देख-रेख रखते है ,जिसके कारण ऐसी प्रसूताओं को चिकित्सकीय जानकारी प्राप्त हो जाती है किन्तु भारत का एक बड़ा वर्ग जो ग्रामीण -आदिवासी क्षेत्र,कस्बे और यहां तक कि शहरों के निम्न और मध्यमवर्ग से जुड़ा हुआ है ,स्तनपान के महत्व से अपरिचित बना हुआ है।
स्तनपान कराने से बच्चे और माँ के भावनात्मक सम्बन्ध प्रगाढ़ होता है। जन्म से एक साल तक बच्चों में
SIDSअर्ताथ आकस्मिक शिशु मृत्यु संलक्षण का खतरा होता है ,माँ का दूध बच्चे को इस खतरे से बचाता है।
सामान्यतया बच्चे को जन्म से छह माह तक तो माँ का दूध पिलाया ही जाता है किन्तु WHO बच्चे को दोसाल तक स्तनपान करने की सलाह देता है।
स्तनपान करने से स्वयं माँ को भी प्रसव उपरांत उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निज़ात मिल जाती है। चिकित्सा विज्ञानं के अनुसार स्तनपान करने वाली माताओं को स्तन एवं गर्भाशय के कैन्सर का खतरा भी कम हो जाता है। स्तनपान प्राकृतिक गर्भनिरोधक का काम भी करता है। एनीमिया का खतरा भी बहुत हद तक कम हो जाता है। मोटापे से बचाव होता है।
अतएव स्तनपान कराना नवप्रसूता और नवजात शिशु दोनों के लिए ही स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभप्रद है। WABA ,WHO ,UNICEF ,WBW द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए। भारतीय महिलाओं में जागरूकता लाने
के लिए भारत जैसे देश में इस तरह के कार्यक्रमों की नितान्त आवश्यकता है।सरकारी स्तर पर जो प्रयास हो रहे है ,ये प्रयास काफी नहीं है , सामाजिक एवम महिला संगठनों को भी इस अभियान को सफल बनाने में अहम् भूमिका निभानी चाहिए।
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