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valmiki ramayan ki sooktiyan

December 17, 2017
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valmiki ramayan ki sooktiyan

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वाल्मीकि रामायण की सूक्तियाँ 

 
वाल्मीकि रामायण की सूक्तियाँ 
 
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Hindi Hindustaniविषैला सांप और शत्रु भी उतना नुकसान नहीं पहुंचा सकते जितना मुँह पर मित्रता का ढोंग कर मन में कपट रखनेवाला मनुष्य नुकसान पहुंचा सकता है .
 
मध्यम मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ है .अत्यधिक प्रेम और अत्यधिक शत्रुता दोनों ही घातक है .           
बिना विचार किये कर्म करनेवाले को वैसे ही पछताना पड़ता है ,जैसे पलाश के पेड़ कि सेवा करनेवाले
को पछताना पड़ता है
 
गुरु भी दंडनीय हो सकता है यदि वह करणीय और अकरणीय का भेद भूलकर कुपथगामी हो जाये
        

 

क्रोध मनुष्य के विवेक को जलाकर नष्ट कर देता है .ऐसा मनुष्य न करने योग्य कार्य भी कर जाता है और न बोलने योग्य भी बोल जाता है .
 

                                                                  

वीर आत्मश्लाघा नहीं करते वरन कर्म करते है अर्थात रिक्त बादलों की तरह व्यर्थ गरजते नहीं
 
Hindi Hindustaniभाग्य पर भरोसा करनेवाले कायर होते है

 

 

धर्म ही संसार का सार तत्व है .सब कुछ धर्म से  ही प्राप्त होता है

 
सत्य ही ईश्वर है ,धर्म भी सत्य के ही अधीन है ,सत्य ही मूल है ,सत्य के अतिरिक्त कुछ अन्य नहीं .
 
कर्मानुसार ही फल मिलता है .कर्ता को अपने अच्छे –बुरे कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है .
 
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जीना उसका सार्थक है जिससे अन्य आश्रय पाते  है .पराश्रित होकर जीना मृत तुल्य है
 
सुख सदैव नहीं रहते. सुख में बिताया हुआ अत्यधिक समय भी थोडा ही जान पड़ता है
 
Hindi Hindustaniउत्साही मनुष्य के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं ,उत्साह में अत्यधिक बल होता है ,उत्साही ही कर्म की  ओर प्रवृत होता है .उत्साह ही कर्ता के कर्म को सफल बनाता है
 
पराक्रम दिखाने के अवसर पर हताश –निराश हो जानेवाले का तेज नष्ट हो जाता है और उसे पुरुषार्थ  प्राप्ति नहीं होती ,कालांतर में ऐसे मनुष्य कई तरह के कष्टों से घिर जाते है .ऐसे मनुष्य को सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती .
 
उत्साह,सामर्थ्य और दृढ़ता ये तीनों कार्य सिध्दि में सहायक है
 
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उपकार मित्रता का और अपकार शत्रुता का लक्षण है
 
मित्रता करना आसान है किन्तु निभाना कठिन है
 
सच्चा मित्र वही जो विपत्ति में साथ दे और कुमार्ग पर आ जाने पर मित्र को फिर से सुमार्ग पर ले आये
 
अच्छा मित्र घर में रखे आभूषण के समान है
 
 
 

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