towel day -25 may
25 मई के दिन विज्ञान कथा लेखक डगलस एडम्स जो बेहद लोकप्रिय द हिचहाइकर गाइड टू द गैलेक्सी के लेखक हैं , जिन्होंने पांच-भाग श्रृंखला की पहली पुस्तक में एक towel की सभी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया था. 49 वर्ष की आयु में डगलस एडम्स की मृत्यु के दो सप्ताह बाद, पहली बार उनके प्रशंसकों द्वारा 25 मई 2001 को तौलिया दिवस मनाया गया था, प्रशंसक इस दिन को towel day के रूप एडम्स को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. भारत में भी towel day पहचाना जाने लगा है .
towel day से प्रभावित होकर यह लेख लिख रहा हूँ .
आज का लेख कुछ प्रबुद्ध पाठकों को शायद स्तरहीन लगे . लेकिन कभी –कभी अनायास या जानबूझ कर की गई मूर्खतापूर्ण कृत्य का भी अपना एक आनंद होता है और उसी आनन्द के लिए तौलिये पर यह मूर्खतापूर्ण लेख लिख रहा हूँ ..
तौलिया कभी पारिवारिक एकता का प्रतीक हुआ करता था .एक ही तौलिया पूरा परिवार इस्तेमाल किया करता था किन्तु पढ़-लिखकर और कुछ कमाकर आदमी बुद्धिजीवी और आर्थिक रूप से संपन्न हुआ तो उसने न सिर्फ अपना तौलिया अलग कर लिया बल्कि अपना घर भी अलग कर लिया .एक तौलिये से अनेक तौलिये हो गए ,वैसे ही एक परिवार कई घरों में बंट गया .बूढ़े माता-पिता के हिस्से में वही पुराना बदरंग तौलिया रहा गया जिसे कभी पूरा परिवार इस्तेमाल किया करता था . जब तौलिया पूरी तरह फट गया तो बूढ़े माता-पिता ने उसके रूमाल बना लिए आंसू पूछने के लिए .फटे तौलिये से बना एक रूमाल बूढ़े पिता के पास है और दूसरा बूढी माँ के पास .बूढे माता-पिता ने तौलिये से रूमाल तो बांये थे आनू पोछने के लिए लेकिन इस डर से उसका इस्तेमाल नहीं करते कि आंसुओं के नमकीन पानी से गल न जाए .उसका भी कभी भरा पूरा परिवार हुआ करता था ,इस याद को बनाये रखने के लिए तौलिये से बने रूमालों को सहेज कर रखे हुए है .
अलग-अलग तौलिये का औचित्य क्या – इसके पीछे पढ़े-लिखे समझदार बुद्धिजीवी कहलानेवालो का तर्क है कि एक ही तौलिये के इस्तेमाल से बीमारियाँ हो सकती है – यह विचार उस समय क्यों नहीं आया जब हम पिता की कमाई पर आश्रित थे .आदमी के मन में इस तरह के विचार तब आते है जब उसकी होती है। जब भरी होती है तो अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग तौलिये ही नहीं अलग-अलग घर भी बन जाते है।
पढ़ा-लिखा होना अच्छा है …..आर्थिक रूप से सम्पन्न होना भी अच्छा है .लेकिन पढ़े-लिखे होने और आर्थिक रूप से सम्पन्न होने का अर्थ यह तो नहीं कि हम स्थापित पारिवारिक मूल्यों की अवहेलना करने लगे .यदि हम पढ़े-लिखे हो गए है ,प्रबुद्ध हो गए है ,तो उन मान्यताओं का …..उन परम्पराओं का ….उन विचारों का विरोध करें ..बदलाव करें ,तिरस्कार करें जो मान्यता ,परंपरा ,विचार समय के साथ –साथ अप्रासंगिक हो गए है या फिर सड़-गल गए है .यह है आपके समझदार होने का दायित्व .उन मूल्यों ,मान्यताओं और विचारों का आज भी सम्मान किया जाना चाहिए ,जिनका मूल्य आज भी वही है जो युगों पहले था .जिनकी चमक ज्यों की त्यों बरकरार है .सिर्फ तौलिया बदलने की मानसिकता से आप आधुनिक नहीं हो सकते .
आजकल अलग-अलग कामों के लिए अलग –अलग तौलिये इस्तेमाल होते है .इनमे से एक है पेपर तौलिया .जिसका इस्तेमाल रेस्त्रा और दावतों में खाना खाने के बाद हाथ पोछने के बाद फेंक दिया जाता है .यहाँ से भी आदमी ने अपने मतलब की बात ढूंढ ही ली –इस्तेमाल करों और फेंक दो .कागज़ी तौलिये से प्रेरणा लेकर आज का आदमी अपने आस-पास के लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार करने लगा है –वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए उस आदमी का इस्तेमाल करता है और काम निकल जाने के बाद उसे वैसे ही फेंक देता है जैसे कागज़ी तौलिये का इस्तेमाल के बाद उसे फेंक दिया जाता है .
तौलिया वैसे तो कपड़े का एक टुकड़ा है है जिसका उपयोग नहाने के बाद शरीर पोंछने के लिए किया जाता है।लेकिन जैसे इन्सान अलग अलग किस्म और स्वाभाव के होते है ,वैसे ही तौलिये की भी किस्म होती है,स्वाभाव होता है। .
आजकल कई प्रकार के तौलिये का इस्तेमाल होता है, जिसमें हाथ के तौलिये, स्नान के तौलिये, स्नान वस्त्र और रसोई के तौलिये शामिल हैं और विदेशों में समुन्द्र तट पर बीच पर लोग बीच टॉवल का इस्तेमाल करते हैं।आज का आदमी अलग-अलग किस्म के आदमियों से इसलिए संपर्क बढाकर रखता है कि न मालूम किस किस्म के आदमी से किस किस्म का काम पड़ जाये। इसलिए राजनीति ,सरकारी अधिकारी -कर्मचारी से -पहचान बनाकर रखता है और वक़्त आने उसका इस्तेमाल भी करता है,ठीक वैसे ही जैसे वह अलग- के लिए अलग-अलग तौलिये का इस्तेमाल करता है।
आदमी का जीवन भी बहुत कुछ तौलियों की तरह ही होता है .जैसे तौलिये का इस्तेमाल आदमी अपने लिए ही करता है ,वैसे ही कुछ लोग अपनी ज़िन्दगी का इस्तेमाल भी अपने लिए ही करता है ,आदमी जैसे अपना तौलिया दूसरों को देने में परहेज करता है वैसे ही अपने हिस्से का सुख-दुःख किसी दूसरे को नहीं देना चाहता .तौलिये की तरह ही आदमी एकाकी हो गया है ,
तौलिये मिनी रूप है -रूमाल ,लेकिन रूमाल में एकाकीपन है .तौलिया अनेक में एक और अनेक में एक है .अगर आप रूमाल रखते है तो यह आपके स्वार्थी होने की पहचान है क्योकि रूमाल से आप सिर्फ अपने आंसू पोछ सकते है किन्तु तौलिया हो तो उससे कई सारे रूमाल बनाये जा सकते है और आप कई लोगों के आंसू पोछ सकते है .तौलिये से बने रूमाल को आपस में बांटकर एक दूसरे के आंसू पोछ सकते है .
कभी यह तौलिया आदमी के सभ्य-असभ्य होने की पहचान हुआ करता था। घर पर अचानक किसी के आ जाने पर कमर में तौलिया लपेट कर बाहर आने वाले को सभ्य माना जाता था और जो पट्टेदार कच्छे में बाहर आ जाता था उसे बद्तमीज़ की श्रेणी में रखा जाता था। आजकल तो बुरमुडे ने तौलिये की जगह ले ली है।
आप जब भी कहीं अतिथि बनकर जाये ,अपना तौलिया ज़रूर साथ ले जाये अन्यथा आपको शर्मिंदा हो पद सकता है।
तौलिये की एक महिमा और याद आ रही है ,उस पर भी नज़र डाल लीजिये –
आप ट्रेन या बस में सफ़र करने जा रहे है .तो आप सीट पर रूमाल रखकर यह नोटिस छोड़ जाते है कि यह सीट रिज़र्व है ,रूमाल से तो एक ही सीट रिज़र्व हुई .समीप वाली सीट पर दूसरा हक जमा लेंगा .यदि श्रीमती जी साथ है तो वह कहाँ बैठेंगी ?आपने अपनी सीट श्रीमतीजी को दे दी ,तो आप कहाँ बैठेंगे ?यदि तौलिया होता तो दोनों की सीट रिज़र्व हो जाती न .है न तौलिया कमाल की चीज .
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