जिनकी दृष्टि धन और धर्म पर रहती है , उन्हें पराई स्त्री की तरफ देखने की मूर्खता नही करनी चाहिए।
मनुष्य कितना ही मान – प्रतिष्ठा प्राप्त क्यों न हो किन्तु उसकी वह मान – प्रतिष्ठा व्यर्थ है , यदि वह व्यभिचार से उत्पन्न लोक – लज्जा का ध्यान किए बिना परस्त्री गमन करता है।
व्यभिचार को घृणा ,पाप , भय और कलंक से कभी छुटकारा नही मिल सकता।
उस मनुष्य को धर्मात्मा ही नही , संत भी समझना चाहिए जो किसी पराई स्त्री पर कुदृष्टि नही डालता।
मनुष्य कोई भी अपराध या पाप न करे लेकिन उससे भी ज्यादा यह जरूरी है , कि किसी अन्य स्त्री का भी विचार मन मे न लाए।
सच्चा गृहस्थ वही है जो अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री का भी विचार मन में ना लाए
अच्छाई से मुँह फेर लेना और बंदी करना बुरा है , किन्तु उससे भी ज्यादा बुरा है मुह के सामने मीठा बोलना और पीठ पीछे निंदा करना।
झूठ और निंदा करके जीने से पहले ही मर जाना कहीं ज्यादा बेहतर है, क्योकि मरने के बाद लोग प्रशंसा में यह तो कहेंगे कि इस आदमी ने अपने जीते -जी कभी किसी की ना तो कभी निंदा की और ना कभी झूठ बोला।
उस आदमी की भी पीठ पीछे निंदा ना करें ,जिसने तुम्हे मुँह पर गाली दी हो।
मनुष्य जिस तरह दूसरों की बुराई करता है ,वैसे ही यदि वह अपने दोषों का चिंतन करें तो उसे बुराई छू भी नहीं पायेगी।
अपना मांस बढ़ाने के लिए दूसरों का मांस खानेवाला कभी दयालु नहीं हो सकता।
जिस तरह व्यर्थ धन खर्च करने वाले के पास धन नहीं ठहरता उसी तरह मांस खानेवाले के ह्रदय में दया भाव नहीं ठहरता।
मूक पशुओं की हत्या करना क्रूरता है किन्तु मांस खाना उससे भी बड़ा पाप है।
मूक पशुओं का मांस खानेवाला कभी नर्क से बाहर नहीं निकल पायेगा।
यदि मांस खानेवाले नहीं होंगे तो पशुओं को मारनेवाले और बेचने वाले भी नहीं होंगे।
जीवित पशु को मारकर खाने से बचना ,कई सैकड़ों यज्ञों से प्राप्त होनेवाले पुण्य जैसा है।
मांस खानेवाले लोग वे लोग है जो यह नहीं जानते कि सारे जीवों को बनाने वाला वही है ,जिसने उसे बनाया है। ऐसे लोग ही मांस खाते है।
दुर्जन उस मूर्खता से भयभीत नही होते , जिसे धर्म ग्रंथो मे पाप कहा गया है किन्तु सज्जन पाप कर्म को सर्प के समीप जाने जैसा समझते है।
आग से भी ज्यादा बुराई से दूर रहना चाहिए।आग से आग जन्म होता है ,उसी तरह बुराई से बुराई का जन्म होता है। बुद्धिमानी इसी मे है कि शत्रु को भी नुकसान पहुँचाने से बचा जाए।
मैं निर्धन हूं , ऐसा मानकर पाप कर्म करने को विवशता मानना और भी बड़ी भूल है , क्योकि ऐसा कर वह और भी निर्धन हो जाएगा। जो व्यक्ति दुखो से बचना चाहते है , उन्हें चाहिए कि वह दूसरों को नुकसान पहुँचाने का भाव भी मन मे न लाए। मनुष्य सभी तरह के शत्रु से तो बच सकता है , लेकिन अपने ही पाप कर्मो से भी नही बच सकता। पाप कर्म पापी को नष्ट किए उसे नही छोड़ते। जिस तरह आदमी का साया उसका उसे नही छोड़ता , वैसे ही पाप कर्म भी पापी का पीछा तब तक नही छोड़ते जब तक की पापी का सर्वनाश न कर दे। उस आदमी की भी पीठ पीछे निंदा न करो जिसने तुम्हे मुह पर गाली दी हो। मनुष्य जिस तरह दूसरो की बुराई करता है ,वैसे ही यदि वह अपने दोषो का चिंतन करे तो बुराई उससे चु भी नही पाएगी।
अपना माँस बढ़ाने के लिए दूसरों का माँस खाने वाला कभी दयालु नही हो सकता। जिस तरह व्यर्थ खर्च करने वाले के पास धन कभी नही ठहरता उसी प्रकार माँस खाने वाले के ह्रदय मैं दया नही ठहरती।
मूक पशुओ की हत्या करना क्रूरता है किन्तु माँस खाना उससे भी बढ़कर पाप है। मूक पशुओ का माँस खाने वाला भी कभी नरक से बहार नई निकल पत यदि मॉस खाने वाले न होंगे तो पशुओ को मारने और बेचने वाले भी नही होंगे। जीवित पशु को मारकर खाने से बचना ,कई सेकड़ो यज्ञ करने से प्राप्त होने वाले पुण्य जैसा है।
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