tiruvalluvar quotes in hindi-3
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संत महाकवि तिरुवल्लुवर की सीख
संत महाकवि तिरुवल्लुवर की सीख
चमरी मृग के केश कर्तन कर देने पर वह अपने प्राण त्याग देता है। स्वाभिमानी मनुष्य को भी ऐसा ही होना चाहिए। संसार ऐसे मनुष्य का उसके जीते -जी उसका गुणगान नहीं करेगा किन्तु मृत्योपरांत अवश्य यशोगान करेगा।
वैसे तो सभी जन समान ही पैदा होते है किन्तु उनके यश में विभिन्नता होती है। यशस्वी लोगों का जीवन सामान्य लोगों के जीवन से बिलकुल ही भिन्न होता है।
प्रतिष्ठत कुल में पैदा होकर भी कोई सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता जब तक कि वह सत्कर्म ना करें। दूसरा वह जो निम्न कुल में पैदा होकर भी अपने सत्कर्मों से उच्च कुल के समान ही सम्मान पाता है।
सज्जन दूसरों के अवगुणों को भी ढकने का प्रयास करते है ,जबकि औछे लोग दूसरों के मामूली अवगुण को भी पहाड़ जितना बड़ा करके बतलाते है। भैस जो पूरी काली होती है ,उसे अपना रंग नज़र नहीं आता किन्तु गाय की जरा सी काली पूछ में उसे बुराई नज़र आती है।
दुनिया में अच्छे लोग भले ही कम हो किन्तु ताक़त बुरे लोगों से ज्यादा है ,तभी तो दुनिया युगों -युगों से चली आ रही है। बुराई में ताक़त होती तो दुनिया अब तक नष्ट हो चुकी होती। बुराई थोड़ी देर के लिए परेशानी में डाल तो सकती है किन्तु अच्छाई को नष्ट करने की ताक़त उसमे नहीं।
तुच्छ विचारों वाले आरी की धार से तेज़ तो हो सकते है किन्तु लकड़ी के हथियारों से ज्यादा बेहतर नहीं हो सकते।
बुरे लोग अच्छे लोगों के संपर्क में आकर भी अपने अवगुण का त्याग नहीं करते बल्कि अच्छे लोगों को भी अपनी तरह बुरा बना देने की कोशिश करते है ,जैसे दही दूध के संपर्क में आकर दूध की मिठास ग्रहण करने की बजाय ,दूध को अपनी तरह खट्टा बना देता है।
कुलीन मनुष्य कभी सदाचरण और सत्यवादिता से विमुख नहीं होता।
कुलीन मनुष्य होगा तो उसमे ये चार गुण अवश्य होंगे –
प्रसन्न चित मुख मुद्रा
उदार हस्त
मृदु वाणी
निरभिमानी
पूर्वजों की अर्जित प्रतिष्ठा की रक्षा करने वाले को चाहिए कि कुकृत्य का विचार भी मन में पैदा ना होने दे।
उच्च कुल में पैदा हुआ मनुष्य यदि अमर्यादित एवम अपशब्द का प्रयोग करे तो उसके उच्च कुल के पैदा होने पर संदेह करेगे।
भूमि का गुण उस पर उगने वाली वनस्पति से होती है , उसी प्रकार मुख वाणी से निकलने वाले शब्द उस मनुष्य के कुल का संकेत दे देते है।
अपने पीछे अपनी प्रतिष्ठा छोड़ जाने की इच्छा रखनेवालों को चाहिय्रे कि ऐसा कोई कार्य न करें या ऐसा मार्ग ना चुने जो स्थापित प्रतिष्ठा को कलंकित कर सकता हो ,वह दुष्कृत्य चाहे कितना ही छोटा क्यों ना हो।
अपने अच्छे दिनों में तो विनम्र बने ही रहे किन्तु विपरीत स्तिथियों में अपनी विनम्रता का परित्याग ना करें।
पहाड़ जितना ऊँचा सम्मान रखनेवाला भी तिल के समान लगने लगेगा यदि वह कोई दुष्कर्म करेंगा ,चाहे वह दुष्कर्म घुघंची के समान ही छोटा क्यों ना हो।
जो हमसे घृणा करते है ,उसके पाव पकड़कर चापलूसी करने से अच्छा है कि स्वाभिमान के साथ भगय में लिखे कष्ट भोगने के लिए अपने आप को तैयार कर ले। हमसे घृणा करनेवालों की चापलूसी करने से ना तो यश की प्राप्ति होगी और ना स्वर्ग की ,तो फिर क्यों ऐसे लोगों की चापलूसी करके जिए ?
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