tiruvalluvar quotes in hindi-2
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संत तिरुवल्लुवर के अनमोल वचन
सात्विक सुखी पारिवारिक जीवन के लिए संत तिरुवल्लुवर के आदर्श वाक्य –
➽ प्रेम ब्रह्मचर्य आश्रम ,गृहस्थ आश्रम ,वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम इन चारों आश्रमों में गृहस्थ आश्रम ही मुख्य है।
➽गृहस्थ अनाथों का नाथ ,निर्धनों का सहायक और निराश्रितों का मित्र होता है।
➽जिस घर में स्नेह और प्रेम का निवास है ,धर्म का पालन होता है, उस घर में संतुष्टि तो होती ही है ,साथ में उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते है।
➽गृहस्थ के पांच कर्म है -पूर्वजों का श्राद्ध करना ,देव पूजन ,अतिथि सत्कार ,स्वजनों की सहायता और आत्म उन्नति करना।
➽मोक्ष की इच्छा रखनेवालों में शास्त्रानुसार गृहस्थ धर्म का पालन करनेवाले श्रेष्ठ है।
➽यदि पत्नी स्त्रीत्व गुण से परिपूर्ण हो तो उसके पास अन्य कुछ न होने पर भी सब कुछ है और यदि स्त्री के अयोग्य और स्त्रित्व गुणों से रहित हो तो सब कुछ होकर भी कुछ नहीं है।
➽सुपत्नित्व से संपन्न और पति की आय से अधिक खर्च न करने वाली स्त्री ही सहधर्मिणी कहलाने योग्य है।
➽सभी भौतिक सुखो के होते हुए भी वह गृहस्थ जीवन व्यर्थ है जिस घर की स्त्री स्त्रीत्व गुणों से रहित है।
➽अमृत से भी अधिक मधुर रस वह है जिसे अपने छोटे -छोटे बच्चे हाथ डालकर घोलते हो।
➽माँ उस समय भी उतनी खुश नही होती जब उसने अपने पुत्र को जन्म दिया था , जितनी उस समय होती है जब वह अपने पुत्र के अच्छे कार्यो की प्रशंसा अपने कानो से सुनती है।
➽अपने बच्चे का स्पर्श पाकर माता – पिता की देह पुलकित होती है और बोली सुनकर कानो को सुख मिलता है।
➽जो दूसरे से प्रेम नही करते , वे सिर्फ स्वहित के लिए जीते है किन्तु जो दूसरों से प्रेम करते है , ऐसे प्रेमी ह्रदय की अस्थियां भी परहित के लिए प्रयुक्त होती है।
➽यदि मनुष्य के ह्रदय मे प्रेम नही तो उसकी सारी अच्छाई वैसे ही जल जाएगी जैसे अस्थिहीन कीड़े को सूर्य जल डालता है।
➽प्रेम जो कि आत्मा का भूषण है , यदि ह्रदय मे प्रेम न हो तो मनुष्य का बाह्य सौंदर्य व्यर्थ है।
➽प्रेम रहित जीवन मॉस – मज़्ज़ा से घिरी हुई अस्थियो के ढेर से ज्यादा और कुछ नहीं। .
➽प्रेम रहित मनुष्य का जीवन उस दिन फलेगा – फूलेगा जिस दिन रेगिस्तान के ठूठ वृक्ष मे कोपले फूटगी , लेकिन आज तक ऐसा हुआ नहीं , और शायद कभी होगा भी नही।
➽पिता के प्रति पुत्र का कर्तव्य क्या हो ?पुत्र का कर्तव्य है कि वह कुछ ऐसा सुकृत्य करे कि लोग उसके पिता से पूछे कि तुमने किस प्रकार का तप किया जिसके प्रताप से ऐसा होनहार पुत्र रत्न प्राप्त हुआ।
➽योग्य संतान प्राप्ति से बढ़कर कोई दूसरा सौभाग्य नहीं।
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